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नहीं रहे पंचम दा के करीबी साथी संतूर वादक पंडित उल्हास बापट

आज से 24 साल पहले 4 जनवरी को ही पंचम दा का भी निधन हुआ था

FP Staff

इस खूबसूरत नगमे को आपने जरूर सुना होगा. जो 1981 में आई फिल्म ‘हरजाई’ का है. इस फिल्म में संगीत आरडी बर्मन का था. गाने की शुरुआत में जो संतूर आपने सुना वो पंडित उल्हास बापट ने बजाया था. पंचम दा और पंडित उल्हास बापट ने लंबे समय तक साथ काम किया.


इससे बड़ा दुखद संयोग शायद ही आपने सुना होगा. पंचम दा की आज पुण्यतिथि है. आज से 24 साल पहले पंचम दा का सिर्फ 54 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया था. दुखद संयोग देखिए कि आज 24 साल बाद ठीक 4 जनवरी को ही उनके करीबी दोस्त और संतूर वादक उल्हास बापट ने भी दुनिया को अलविदा कहा.

पंडित उल्हास बापट पिछले काफी समय से बीमार चल रहे थे. वो करीब 67 साल के थे. फिल्म घर से लेकर पंचम दा की आखिरी फिल्म-1942 ए लव स्टोरी तक में उल्हास बापट ने संतूर बजाया था. पंचम दा से उनकी नजदीकी ऐसी थी कि पंचम दा अपने संगीत में संतूर का बड़ा खास रोल रखते थे.

इस वीडियो को देखिए आप समझ जाएंगे कि पंचम दा के संगीत में संतूर और उल्हास बापट की क्या जगह थी. इस वीडियो में बर्मन दा के कई ऐसे गाने हैं जिसमें उन्होंने संतूर का इस्तेमाल किया था.

पंडित उल्हास बापट की पंचम दा से ऐसी यारी कि उन्होंने बाकायदा पंचम दा के लिए एक गाना लिखा, उसे कंपोज किया और गाया भी.

पंडित उल्हास बापट का जन्म 31 अगस्त 1950 को हुआ था. पांच साल के थे तब उन्होंने पंडित रमाकांत से तबला सीखना शुरू किया. पिता यूं तो पुलिस में थे लेकिन संगीत के जानकार थे. पिता ने अपने बेटे को शास्त्रीय गायकी की बारीकियां भी सिखाईं. इसके बाद उल्हास बापट को संतूर की लहरियों ने भी अपनी तरफ खींचा. संगीत का सफर और साधना शुरू हो गई.

श्रीमती जरीन दारूवाला शर्मा, पंडित केजी गिंदे, पंडित वामनराव साडोलिकर जैसे दिग्गज गुरुओं की देखरेख में उनकी परंपरागत शिक्षा चलती रही. करीब 25 साल के हुए थे उल्हास बापट, जब उन्हें पंडित रविशंकर की बनाई संस्था में कार्यक्रम प्रस्तुत करने का मौका मिला. ये पहला मौका था जब उल्हास बापट इतने बड़े मंच पर अपनी कला को प्रस्तुत कर रहे थे, लेकिन इस मौके के बाद उन्हें मौकों की नहीं बल्कि मौकों को उनकी तलाश रहने लगी.

करीब तीन दशक तक उन्होंने शास्त्रीय कार्यक्रमों से लेकर फिल्मों तक संतूर की शानदार लहरियों से लोगों को अपना दीवाना बनाया. उनकी ख्याति ऐसी हो गई थी कि 1988 में जब पहली बार अमेरिका के दौरे पर गए तो 20 कार्यक्रम अलग अलग देशों में करते रहे. इस दौरान उन्होंने देश विदेश के बड़े नामी गिरामी कलाकारों के साथ कार्यक्रम किए.

पंडित उल्हास बापट के संतूर ट्यून करने के अंदाज की भी संगीत के जानकारों में बड़ी चर्चा होती थी. उनका संतूर को ट्यून करने अंदाज कुछ खास था. वो अपने संतूर को ‘क्रोमेटिक’ तरीके से ट्यून करते थे. इससे वो अपने संतूर में सभी 12 नोट्स ट्यून किया करते थे.

ऐसा करने के बाद वो भारतीय शास्त्रीय संगीत के सभी 10 थाट एक साथ बजा सकते थे. जिससे उन्हें अपने कार्यक्रमों के दौरान एक राग से दूसरे राग में जाने में खास सहूलियत होती थी.

एक कार्यक्रम में उन्होंने संतूर पर नाट्यगीत बजाने का अनोखा प्रयोग कर डाला. राग ललित और भटियार में बजाया गया उनका वो ‘पीस’ चर्चा में रहा. इसी कार्यक्रम की शुरुआत में उन्होंने महान सरोद वादक उस्ताद अली अकबर खान का बनाया राग चंद्रबदन बजाया था.

इससे पहले किसी भी संतूर वादक ने इस राग को संतूर पर नहीं बजाया था. पंडित उल्हास बापट इस तरह के अनोखे प्रयोग करते रहते थे और बड़ी संजीदगी से कहते थे कि उन्हें कार्यक्रमों के दौरान चुनौतियों का सामना करने में मजा आता है.

पंडित उल्हास बापट से पहले संतूर वादकों में पंडित शिवकुमार शर्मा और पंडित भजन सोपोरी का नाम ही लिया जाता था. इन दोनों कलाकारों ने भी संतूर को एक अलग पहचान दिलाई थी. अलग-अलग प्रयोग किए थे. पंडित उल्हास बापट ने प्रयोगों की इसी परंपरा को और आगे ले जाते हुए संतूर को और पहचान दिलाई.

कहा जाने लगा कि ये तय करना मुश्किल है कि संतूर ने पंडित उल्हास बापट को खोजा है या पंडित उल्हास बापट ने संतूर को. परफेक्शन इतना कि वो कहा करते थे कि संगीत में लय और ताल सिर्फ दो चीजें होती हैं, कार्यक्रम के दौरान या तो वो सही लगती हैं या फिर गलत. ‘ऑलमोस्ट करेक्ट’ यानी सही के बिल्कुल करीब जैसा कुछ नहीं होता है. फ़र्स्टपोस्ट परिवार की तरफ से संगीत के इस बड़े साधक को विनम्र श्रद्धांजलि.