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मानसिक गुलामी से भी भारत को स्वतंत्र करने के संकल्प के साथ मनाएं स्वतंत्रता दिवस

हम 1947 में आजाद हो गए थे किन्तु मानसिक रूप से आज भी हम कई मायनों में गुलाम रह गए हैं

Saket Bahuguna

15 अगस्त 1947 को भारत अंग्रेजी दासता से मुक्त हुआ और 1000 वर्षों से अधिक लंबे गुलामी के कालखंड के बाद आधुनिक युग में एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्थापित हुआ.

‘स्वतंत्रता’ या ‘आजादी’ हमारे लिए पवित्र शब्द हैं; हम भारत के नागरिक खुद को आजाद कह सकते हैं तो यह हमारे देश के ज्ञात और अज्ञात लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के त्याग और बलिदान का परिणाम है.


आज 71वां स्वतंत्रता दिवस मनाते हुए हम उन सभी वीर स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को याद कर उन्हें नमन करें और इस आजादी को बरकरार रखने में और देश के विकास में योगदान करने की अपनी जिम्मेदारी को समझें.

स्वतंत्रता दिवस उत्सव है लोकतंत्र को मनाने का, इस आजादी को और हमें प्राप्त अधिकारों को मनाने का, लेकिन हम अधिकारों के साथ-साथ संविधान में उल्लेखित कर्तव्यों को भी याद रखें यह हमारी जिम्मेदारी है.

युवाओं की भागीदारी से बनेगी बात

भारत के आजादी के इस 70 वर्षों के कालखंड में झांकें, तो लगता है कि हम कई क्षेत्रों में आगे तो बढ़े हैं लेकिन अभी भी कई मूलभूत विषयों पर ध्यान बहुत कम दिया गया है. आज भी हम गरीबी, अशिक्षा, महिला हिंसा, जातिगत वैमनस्य जैसी कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जूझ रहे हैं.

देश की स्वतंत्रता को उत्सव रूप में मनाते हुए हमें व्यापक परिवर्तन के लिए समाज का मन तैयार करना चाहिए. इसमें सरकारों की बड़ी भूमिका है लेकिन व्यापक और स्थाई परिवर्तन अकेले सरकारों से संभव नहीं होते, उसमें संपूर्ण समाज की भागीदारी जरूरी है खासकर युवाओं की.

हम 1947 में आजाद हो गए थे किन्तु मानसिक रूप से आज भी हम कई मायनों में गुलाम रह गए हैं. हम ऐसे गुलाम बने हुए हैं जो अपने प्रति हीन-भावना से ग्रसित हैं; जिन्हें इस देश की प्रत्येक वस्तु कमतर लगती है और विदेशी वस्तुएं श्रेष्ठ; जिनमें अपने देश और समाज के प्रति गौरव का भाव नगण्य है.

यह प्रक्रिया केवल स्वाभाविक ही नहीं हुई; आज भी इस देश में ऐसे जयचंद हैं जो इस हीन-भावना को जस का तस बनाए रखने का प्रयास करते रहते हैं. आज भी हमारे पढ़े-लिखे वर्ग में ऐसे लोग अधिक हैं जिनको केवल भारत की कमियां ही दिखाई देती हैं, जो नहीं चाहते कि हम भारतीय अपने देश की अच्छी बातों पर गर्व करें.

न्यून इतिहासबोध वाली शिक्षा प्रणाली को बदलने की जरूरत

आज भी हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी है जिसमें अपने राष्ट्र का इतिहासबोध न्यून है जिससे हीन भावना से ग्रसित अधिक लोग पैदा हो रहे हैं. आवश्यकता है कि इस गुलामी की जंजीर को भी हम तोड़ें. अपने गौरवशाली इतिहास के बारे में जानें. भारत कैसे सोने की चिड़िया था यह जानें और पुनः भारत को विश्वगुरु बनाने की दिशा में अग्रसित हों. इस हेतु समाज में जागरुकता और शिक्षा प्रणाली में व्यापक परिवर्तन जरूरी है.

हमारे इतिहास में सभी कुछ अच्छा ही था यह मेरा कहना नहीं है. निश्चित रूप से हमारे देश-समाज में जो विषमता और बुराइयां रही हैं उनके बारे में जानकार उनको दूर करने की जिम्मेदारी भी हमारी है. लेकिन आजकल के कुछ स्वघोषित बुद्धिजीवी केवल समस्याएं गिनाते हैं; उसका न कोई समाधान बताते हैं और न ही उस दिशा में कोई व्यक्तिगत प्रयास करते हैं. बल्कि हमारे इतिहास को भी विकृत रूप से पेश करके हमें ही सब समस्याओं की जड़ घोषित कर देते हैं.

ये लोग हमारे बीच मौजूद समस्याओं को हथियार रूप में इस्तेमाल कर हमको बांटने के षड्यंत्र रचते हैं. कभी स्त्री-पुरुष कभी हिंदू-मुसलमान तो कभी सवर्ण-दलित को दो भागों में विभाजित कर ऊपरी तौर पर देखने वाले लोगों को उन दो भागों के बीच के विरोधाभास और उससे उत्पन्न संघर्ष ही दिखता है.

ऐसे लोग किसके एजेंडा पर काम कर रहे हैं यह स्पष्ट है इसलिए देशभक्त लोग उनको बेनकाब करते रहे यह हमारी जिम्मेदारी है. हमारे देश का दुर्भाग्य रहा है कि इसको समय-समय पर अपने ही अंदर के जयचंदों की वजह से गुलामी का सामना करना पड़ा है.

देशद्रोही तत्वों से सावधान रहने की जरूरत

आज हमारे देश में माओवादी, अलगाववादी और आतंकवादी इस देश से युद्ध कर रहे हैं और कुछ देशद्रोही तत्त्व इन लोगों के समर्थन में विश्वविद्यालयों में माहौल बनाने का प्रयास कर रहे हैं. ऐसे लोगों को चिह्नित कर उनको बेनकाब और उन पर कार्यवाही सुनिश्चित होनी चाहिए, अन्यथा भविष्य में हमारे विश्वविद्यालय शिक्षा के नहीं, देशविरोधी गतिविधियों के केंद्र बन जाएंगे.

एक सतत् प्रवाहमान अविरल धारा है हमारा भारत. यह न केवल एक राजनीतिक देश है बल्कि एक सनातन राष्ट्र है. कितने ही आक्रांता आए, हमारे भूभागों पर उन्होंने कब्जा किया, हमारे लोगों पर कई प्रकार के अत्याचार किए; कुछ एक ऐसे भी रहे जिन्होंने कई सौ वर्षों तक राज किया लेकिन आज देखिए वो सभी काल के गर्त में समा गए हैं; लेकिन भारत तब भी था, चाहे दुरावस्था में रहा हो, भारत आज भी है जब हम एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक गणराज्य हैं.

राजनीतिक ही नहीं सांस्कृतिक राष्ट्र भी है भारत

भारतीय राष्ट्र का आधार केवल राजनीतिक नहीं बल्कि सांस्कृतिक है जो अपनी मूल धारा और विचारों से कभी विमुख नहीं हुआ. भारत कोई संकुचित कोटि नहीं बल्कि एक विशाल समुद्र-रूपी जीवित राष्ट्र है जो समावेशी, परिवर्तनशील, विविधतापूर्ण, समन्वयी, सृजनात्मक, प्रगतिशील और विश्वकल्याण की भावना से ओत-प्रोत है.

भारतीय राष्ट्र पश्चिम के राष्ट्रों की तरह किसी विशेष भाषा, जाति, पंथ पर आधारित न होकर अपने विशेष जीवन-मूल्यों और विचारों यानी अपनी संस्कृति पर आधारित है. इसमें संकीर्णता, मतांधता या पक्षपात का कोई स्थान नहीं. हम युवा अपनी इस गौरवशाली परंपरा के वाहक बनें. हम अपने बीच व्याप्त विषमताओं और कुरीतियों पर प्रहार करें; जाति-पंथ के बधनों से मुक्त हों.

हम अपने देश के आत्मगौरव को अपने मन-मस्तिष्क में स्थापित करें और इसकी सामाजिक और आर्थिक प्रगति में अपना योगदान दें ताकि भविष्य में यह पूरे विश्व का नेतृत्व कर सके. इस स्वतंत्रता दिवस को हम अपने प्यारे भारत को इस मानसिक दासता से भी आजाद कराने के संकल्प के साथ मनाएं. वंदे मातरम्!

(साकेत बहुगुणा, आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् (एबीवीपी)के राष्ट्रीय मीडिया संयोजक और लोकप्रिय छात्रनेता हैं.)