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जन्मदिन विशेष: क्यों अब एक और आर के लक्ष्मण होना मुश्किल है

लक्ष्मण शायद इकलौते ऐसे शख्स हैं जो लगातार 50 साल तक टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर रोज छपते रहे.

Animesh Mukharjee

रासिपुरम कृष्णस्वामी अय्यर लक्ष्मण यानी आर के लक्ष्मण अपने बेटे के साथ अपने दफ्तर जाते थे. दोनों की उस दौर में कुछ खास पटती नहीं थी. दफ्तर में पहुंचकर दोनों अलग हो जाते थे. सिर्फ लंच के समय कृष्णा को अपने पिता और दुनिया के सबसे महान कार्टूनिस्ट्स में से एक आर के लक्ष्मण के साथ न चाहते हुए भी भोजन करना पड़ता था. खैर पिता पुत्र के बीच इस तरह की बातें होती रहती हैं.

लक्ष्मण शायद इकलौते ऐसे शख्स हैं जो लगातार 50 साल तक टाइम्स ऑफ इंडिया के पहले पन्ने पर रोज छपते रहे. उनका कॉमन मैन जवाहर लाल नेहरू के साथ शुरू हुआ और मनमोहन सिंह तक की नाक में दम करता रहा. वो टाइम्स के चीफ पॉलिटिकल कार्टूनिस्ट एडिटर रहे जो अपनी तरह का इकलौता पद है.


इत्तेफाक से भरी जिंदगी

आर के लक्ष्मण की जिंदगी में कई सारे इत्तेफाक हैं. इनमें से ज्यादातर सुखद रहे. लक्ष्मण हाईस्कूल में कन्नड़ में फेल हो गए थे, उन्हें जे जे स्कूल ऑफ आर्ट्स ने ड्रॉइंग में एडमिशन नहीं दिया. उनके बड़े भाई और अंग्रेजी के मशहूर लेखक आर के नारायण भी इसी तरह अंग्रेजी के पेपर में फेल हो गए थे. लक्ष्मण को कई साल बाद जे जे स्कूल ने बतौर गेस्ट अपने यहां बुलाया वहीं नारायण की किताबें हिंदुस्तान में अंग्रेजी के सिलेबस का अहम हिस्सा हैं.

लक्ष्मण ने कमला नाम की तमिल अभिनेत्री से शादी की. दोनों में बनी नहीं और वो अलग हो गए. इसके बाद लक्ष्मण ने अपनी रिश्ते की भांजी से शादी की उनका नाम भी कमला है. लक्ष्मण इंडियन एक्सप्रेस में नौकरी मांगने गए. वहां उनसे कहा गया कि कार्टूनिस्ट बनने में स्कोप नहीं है, कुछ और कर लो. बाद में उसी इंडियन एक्सप्रेस ने उन्हें कार्टून बनाने के लिए रामनाथ गोयनका अवॉर्ड से सम्मानित किया.

लक्ष्मण के निधन पर अमूल की उनको श्रद्धांजलि

बाल ठाकरे के साथ करियर की शुरुआत

लक्ष्मण स्कूल के समय से ही अखबार के लिए चित्र बनाते थे. कॉलेज के समय बतौर फ्रीलांसर उन्होंने स्वराज अखबार के लिए काम किया. उनकी पहली पूर्णकालिक नौकरी 250 रुपए महीने में फ्री प्रेस जर्नल के लिए थी. यहां उनकी बगल वाली डेस्क पर बतौर कार्टूनिस्ट नौकरी करते थे बाल ठाकरे. जो बाद में राजनीति में आए और शिवसेना प्रमुख बने.

फ्री प्रेस में विचारधारा के आधार पर कार्टून बनाने के दवाब के चलते उन्होंने नौकरी छोड़ दी. सीधे टाइम्स ऑफ इंडिया गए और नौकरी मांगी. टाइम्स के उस समय के आर्ट डायरेक्टर पहले ही फ्री प्रेस में लक्ष्मण का काम देख चुके थे. लक्ष्मण ने 300 रुपए महीने की नौकरी चाहते थे टाइम्स ने उन्हें 500 रुपए की नौकरी दी. इसके बाद जो हुआ वो इतिहास है.

काम में बारीकी

लक्ष्मण के काम में बहुत बारीक डीटेलिंग रहती है. जिसके चलते वो बाकी सबसे आगे पहुंच जाते हैं. उन्होंने अपने किसी कार्टून में जवाहर लाल नेहरू को टोपी पहने नहीं दिखाया. नेहरू ने खुद इसका कारण उनसे पूछा भी. लक्ष्मण ने कहा उन्हें नेहरू ऐसे ही अच्छे लगते हैं. नेहरू तमाम खुद की तमाम आलोचना के बाद भी लक्ष्मण के मुरीद रहे.

इसी तरह इंदिरा गांधी के स्वभाव को दिखाते हुए उन्होंने उनकी नाक हमेशा बहुत लंबी और ऊंची बनाई. इमरजेंसी में जब प्रेस पर सेंसरशिप लगी, लक्ष्मण खुलकर इंदिरा के विरोध में आए. सामने मुलाकात करके कहा कि वो सही नहीं कर रही हैं. इसके बाद उन्हें तमाम धमकियां मिलीं मगर लक्ष्मण पीछे नहीं हटे. उनके कार्टून से सिस्टम हिलता रहा. लोग रोज उनके पास अपनी समस्याएं आते रहे कि लक्ष्मण अगर कार्टून बना देंगे तो पब्लिक का काम हो जाएगा. कलम की धार के ऐसे उदाहरण कम ही देखने को मिलते हैं.

मुश्किल है दूसरा लक्ष्मण होना

अब जिस तरह से मीडिया नेता और समाज का चलन बदल रहा है, कार्टूनिस्ट इसके सबसे पहले शिकार हुए हैं. एक कार्टूनिस्ट को पूरे रंग में आने के लिए एक दशक का समय लग जाता है. आज के कॉर्पोरेट वाले मीडिया समूह में किसी को इतना समय देना मुश्किल है. बताया जाता है कि लक्ष्मण एक दिन में 15 अखबार पढ़ते थे फिर एक कार्टून बनाते थे. आज इतना धैर्य भी थोड़ा मुश्किल ही है.

बीबीसी के कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट कहते हैं कि लक्ष्मण अपने काम में जीनियस थे. वो अपने कार्टून को कॉमन मैन के इर्दगिर्द बुनते थे. कभी ऐसा नहीं हुआ कि कॉमन मैन उनके कार्टून में सिर्फ मौजूद रहने के हिसाब से रहा हो. कई दूसरे लोगों ने ऐसा करने की कोशिश की, मगर सफल नहीं हुए. इसके साथ ही उनके कार्टूनों में करारा तंज भी बड़ी नरमी से पेश किया जाता था. कार्टूनिस्ट आलोचना करने में कुछ ज्यादा ही तीखे हो जाते हैं.

वैसे गौर से देखें तो आज सबसे बड़ा अंतर है कि लक्ष्मण के कार्टून में कॉमन मैन भले ही रहता हो. वो हर नेता का कैरीकेचर इस्तेमाल करते थे, आज के कार्टूनिस्ट इसका शायद ही इस्तेमाल करते हैं. दो साल पहले अखिलेश यादव ने अपने ऊपर बने कार्टूनों की एक किताब का खुद विमोचन किया था. इस एक अपवाद को छोड़ दें तो बाकी नेताओं ने अपनी किसी भी आलोचना पर सीधे या घुमाकर इनको दबाने का दबाव ही बनाया है. नेता न भी करें तो ऑनलाइन ट्रोल अपने नेता की भक्ति में ऐसा करते हैं. लक्ष्मण के कार्टून भारतीय लोकतंत्र की धरोहर है. एक नजर आप भी डालिए.

साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया

साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया

साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया

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साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया

काले धन पर लक्ष्मण की टिप्पणि
साभार- टाइम्स ऑफ इंडिया