view all

पुण्यतिथि विशेष: जब दिलीप कुमार ने मुकरी को चम्मच चुराते पकड़ा था

दिलीप कुमार और मुकरी बड़े करीबी दोस्त थे और एक दूसरे के साथ लंबा वक्त गुजारते थे

Nazim Naqvi

17 बरस पहले आज ही के दिन मुंबई के लीलावती अस्पताल में एक छोटे से कद का आदमी अपनी जिन्दगी के नाटक का आखिरी सीन दे रहा था. हिंदी फिल्म के परदे पर जब-जब वो आता था, दर्शकों के चेहरे खिल उठते थे. लेकिन आज आंखें नम थीं.

मुकरी अब इस दुनिया में नहीं रहे. ये खबर दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन और उन लाखों लोगों के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी जिन्होंने मुकरी को जाना-समझा था. लेखक भी अपनी छोटी-मोटी यादों के साथ उनमें शामिल है. जीवन के इस सफर में हम अनगिनत लोगों से मिलते हैं. लेकिन कितने उसकी याददाश्त का हिस्सा बनते हैं?


मुकरी साहब के पास मजेदार किस्सों का एक न खत्म होने वाला सिलसिला होता था. 95-96 की बात है, लेखक एक इंटरव्यू के सिलसिले से उनके फ्लैट पर पहुंचा. दोपहर का वक्त था और मुकरी साहब नमाज अदा कर रहे थे. लेखक वहीं उनके करीब एक कुर्सी पर बैठ गया. एक छोटे से कद का आदमी कुर्सी पर बैठ कर (सेहत की वजह से, उस वक़्त शायद खड़े होकर नमाज पढना उनके लिए नामुमकिन था) बारगाहे-इलाही में झुक के सजदा अदा कर रहा था.

नमाज खत्म हुई और मैंने लपक कर मुकरी साहब से मुसाफह (हाथ मिलाया) किया. अगले चंद मिनटों में मुकरी साहब अपने अंदाज में आ गए और फिर वो-वो किस्से सुनाए कि हमारे पास सिवाय हंसते रहने के और कोई चारा न था.

नाट्यशास्त्र के नौ रसों में हास्य-रस भी है. संस्कृत-नाटकों में विदूषक के महत्त्व को बहुत सराहा गया है और उससे कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण काम लिया गया है. पारसी थिएटर में भी (जिसका बड़ा असर हमारे मंचों और फिल्मों पर रहा है) हास्य यानी कॉमेडी-आर्ट पर गंभीर काम हुआ है.

सिगमंड फ्रायड ‘द जोक एंड इट्स रिलेशन टू द अनकांशस’ में लिखते हैं – ‘लोगों के अन्दर का हास्य फूट पड़ता है जब, दिमाग में छुपे हुए अनजाने खयालात और भावनाएं, जान-बूझकर व्यक्त की जाएं’.

हमारी हिंदी फिल्मों में ज्यादातर, कहानी भावनाओं के सम्मोहन में आगे बढ़ती है, जिसे ‘मेलोड्रामा’ कहा जाता है. ऐसे नाटकों में बात कहने के लिए जितनी जरूरत ट्रेजेडी की होती है उतनी ही तलाश कॉमेडी की होती है. और जब-जब इन दोनों विधाओं की जुगलबंदी अपने कमाल पर होती है तो फिल्में यादगार बन जाती हैं. सोच कर देखिए अगर ‘अमर, अकबर, अन्थोनी’ की कहानी से तय्यब अली को निकाल दिया जाय तो क्या बचा रह जाएगा. सुपर स्टार अमिताभ बच्चन ने कहीं कहा था कि ‘ये सिनेमा की कामयाबी है कि जब आप थिएटर से निकल रहे हों तो आपके होंठों पर मुस्कुराहट और आंखों में नमी हो’.

अमिताभ के यादगार डायलॉग का हैं हिस्सा

फिल्म शराबी में अमिताभ बच्चन का एक डायलॉग तो आपको याद ही होगा ‘भई वाह जवाब नहीं आपकी मूंछों का... मूंछें हों तो नत्थूलाल जी जैसी, वर्ना न हों...’

70 और 80 के दशक में टिंकू जी यानी मोहम्मद उमर ‘मुकरी’ की जोड़ी लम्बू जी यानी अमिताभ के साथ खूब जमी थी. शराबी, नसीब, मुक़द्दर का सिकंदर, लावारिस, महान, कुली और फिर ‘अमर अकबर अन्थोनी’ में तय्यब अली का रोल, मुकरी ने अपनी अदायगी से अमर कर दिया था.

दिलीप कुमार से पहले आए फिल्मों में

5 जनवरी 1922 में जन्मे मुकरी और दिलीप कुमार बम्बई के एक ही स्कूल में पढ़े. जिन दिनों दिलीप कुमार अपनी पढ़ाई खत्म करके और एक दिन घर में अपने वालिद की डांट से गुस्सा होकर, पूना की मिलिट्री कैंटीन में नौकरी कर रहे थे, उनका दोस्त मुकरी एक मदरसे में बच्चों को इस्लाम की तालीम देने लगा था. कहते हैं कि मदरसे की मामूली तनख्वाह से घर परिवार का गुजारा करना मुश्किल था, इसीलिए उनका रुझान फिल्मों की तरफ हुआ.

ये भी पढ़ें : पुण्यतिथि विशेष ए.के. हंगल: ‘फ्रीडम फाइटर’ से एक्टर तक...

मुकरी खुद लिखते हैं 'जब यूसुफ मियां दिलीप कुमार बनकर ‘ज्वार भाटा’ में आये तो मैं उस वक़्त के.आसिफ साहब का चीफ असिस्टेंट हुआ करता था. आसिफ साहब उन दिनों ‘फूल’ बना रहे थे'. इस बयान से पता चलता है कि मुकरी, दिलीप कुमार से पहले फिल्म इंडस्ट्री में आ गए थे. 'हालांकि मैंने बहैसियत एक अदाकार टुन-टुन के साथ एक फिल्म में काम किया था लेकिन यूसुफ मियां की दूसरी फिल्म ‘प्रतिमा’ (1944) में मुझे एक साथ काम करने का मौका मिला'.

78 बरस के जीवन में मुकरी 50 साल तक फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहे और करीब 600 फिल्मों में अपनी अदाकारी के जौहर दिखाए. वैसे तो महत्वपूर्ण होने के बावजूद, एक हास्य कलाकार, सिर्फ एक हास्य-कलाकार ही होता है लेकिन मुकरी अपनी इन 600 फिल्मों में कुछ ऐसी फिल्में भी दे गए जिनमें से अगर उनके रोल को निकाल दिया जाय तो पूरी फिल्म लड़खड़ाने लगेगी.

दिलीप कुमार से थी खास दोस्ती

उस दिन जो किस्से मुकरी साहब ने लेखक को सुनाए उनमें एक किस्सा खुद उनकी शादी का था. बात यूसुफ मियां यानी दिलीप कुमार की चल रही थी तो बोले- ‘मेरा और यूसुफ मियां का याराना कुछ ऐसा था जिसे बस हम ही समझ सकते थे. जब मेरी शादी हुई तो वो इतने खुश थे जैसी खुद उनकी शादी हो रही हो. मेरे साथ शरारत का कोई मौका छोड़ते नहीं थे. शादी वाले दिन मैं अरबी लिबास में दूल्हा बना था.

एक तरफ शेख मुख्तार मेरी ऊंगली पकडे हुए थे और दूसरी तरफ यूसुफ भाई. जब हम लोग पैदल भिन्डी बाजार से गुजरे तो मैं कभी शेख मुख्तार के चेहरे को देखता कभी यूसुफ मियां की शक्ल को. ऐसा लग रहा था जैसे ये दोनों मेरी ऊंगली पकड़ कर मेरा खतना कराने ले जा रहे हों’. ये किस्सा जिस मासूमियत से उन्होंने सुनाया, बड़ी देर तक हम हंसते रहे.

ये भी पढ़ें : शकील बदायूंनी : सिलसिला खत्म न होगा मेरे अफसाने का...

दिलीप कुमार ने जिन चंद दोस्तों का ज़िक्र अपनी आत्मकथा में किया है, उनमें राजकपूर, प्राण, डायरेक्टर एस.यू.सन्नी के साथ मुकरी की यादें भी सहेजी हैं. मुकरी ने हमें, फिल्म ‘आन’ के प्रीमियर का एक मजेदार किस्सा भी सुनाया उस दिन. ‘आन’ का प्रीमियर लंदन में हुआ था. ‘फिल्म का सारा क्रू, हवाई-जहाज से लंदन ले जाया गया. प्रीमियर के बाद वहां एक बड़ी दावत थी जिसमें पूरे शाही अंदाज से हमारा स्वागत हुआ, खाने को जो बैठे तो मैंने देखा चम्मच और कांटे चांदी के हैं’.

दिलीप कुमार ने पकड़ ली थी चोरी

‘मैं बम्बई से आते समय ही सोच रहा था की वहां से कोई चीज़ यादगार के लिए ज़रूर लाऊंगा, हालांकि हमारे पास पैसे-वैसे नहीं होते थे. ये वो दिन थे जब हम और यूसुफ मियां बॉम्बे-टाकीज से घर लोकल ट्रेन से आते-जाते थे’.

‘तो साहब मेरी कुछ समझ में नहीं आया और मैंने चुपके से एक चमची अपनी जेब में डाल ली. मैं बेफिक्र था कि किसी ने मुझे नहीं देखा है लेकिन यूसुफ़ भाई ने देख लिया था. जब खाना ख़त्म हुआ तो यूसुफ मियां खड़े हुए और उन्होंने दावत में मौजूद लोगों का शुक्रिया अदा किया और फिर कहा कि आप लोगों ने हिन्दुस्तान के जादू के बारे में बहुत सुना होगा. आज मैं ‘रिटर्न-गिफ्ट’ के तौर पर आपको जादू दिखता हूं’.

‘सब लोग दम साधे देखने लगे की देखें दिलीप कुमार क्या करते हैं. तो यूसुफ मियां ने एक चमची अपनी जेब में डालते हुए कहा- ‘साहिबान ये देखिए मैं अपनी जेब में ये चम्मच डाल रहा हूं. अब इसे आप मुकरी, जो मेज के दूसरी ओर बैठे हैं, की जेब से निकाल सकते हैं’.

एक अंगरेज झिझकते हुए मेरे पास आया और मेरी जेब से उसने चमची निकाल ली. पूरा हाल तालियों से गूंज रहा था और मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि कहां अपना मुंह छुपाऊं. खैर जब हम दिल्ली के लिए रवाना हुए तो यूसुफ भाई ने पूछा की मैंने ऐसा क्यों किया ‘मैंने बच्चों की तरह उन्हें बता दिया की मैंने ऐसा एक यादगार सहेजने के लिए किया था. यूसुफ मियां मुस्कुराए और अपनी जेब से चमची निकाल के मुझे देते हुए बोले- ऐसा था मुझे बोले देते’.

तो ये थे मुकरी साहब, जो तय्यब अली बनके अपने दर्शकों के दिलों पर आज भी राज करते हैं. चलते-चलते याद ताजा कीजिए तय्यब अली का वो सदाबहार किरदार.फिल्म ‘अमर अकबर अन्थोनी’ अमिताभ बच्चन, ऋषि कपूर, नीतू सिंह और सदाबहार ‘मुकरी’.