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जन्मदिन विशेष: एक जीवन में कई बिंदुओं को छूने वाली रेखा

रेखा कहती हैं कि वो किताबें और अखबार पढ़ने के लिए नहीं उन्हें भरने के लिए बनी हैं

Animesh Mukharjee

रेखा की परिभाषा हम सबने बचपन में पढ़ी है. कई बिंदुओं से मिलकर बनी एक ऐसी रचना जिसका कोई अंत या शुरुआत नहीं होती. एक सीधी रेखा किसी को एक बिंदु पर एक बार ही काटती है. 10 अक्टूबर को जिस रेखा, यानी भानुरेखा गणेशन का जन्मदिन होता है, वो भी ऐसी ही हैं. एक जिंदगी में कई सारे बिंदु हैं, कई सारी चीजों को छुआ है मगर सिर्फ एक ही बार, दोबारा नहीं.

पिता को देखना पर मिलना नहीं


रेखा की मां पुष्पावल्लि एक्ट्रेस थीं. अगर फिल्म डर्टी पिक्चर का डायलॉग याद हो तो समझ लीजिए कि पुष्पवल्लि को काम देने वाले स्टूडियो के मालिक के साथ ट्यूनिंग करनी पड़ती थी. इसी बीच उनके जीवन में आए स्टार जैमिनी गणेशन. जैमिनी के प्रेम में पुष्पवल्लि ने करियर छोड़ दिया. सोचा कि पति का नाम, परिवार का सुख मिलेगा.

रेखा के पिता जैमिनी गणेशन ने पुष्पावल्लि को सबकुछ दिया सिर्फ नाम छोड़कर. जैमिनी पहले से शादीशुदा थे, पुष्पा और सरला उनकी दो उपपत्नियां थीं. दोनों से उनके बच्चे थे जिन्हें जैमिनी ने कभी नहीं अपनाया. जैमिनी को बहुत बाद में जब रेखा के हाथों लाइफटाइम अचीवमेंट मिला, तब उन्होंने उन्हें बॉम्बे वाली बेटी कहकर खुशी दिखाई.

रेखा बताती हैं कि सारे सौतेले भाई-बहन एक ही स्कूल में पढ़ते थे. जैमिनी अपनी पहली पत्नी से हुए बच्चों को छोड़ने स्कूल आते थे पर रेखा से कभी मुखातिब नहीं हुए. 13 साल की उम्र में पढ़ाई छोड़कर फिल्मों में आ गई भानुरेखा इस पर अफसोस भी नहीं करती हैं. बेपरवाह अंदाज में कह देती हैं कि साउथ में तब ऐसे ही चलता था.

ककून से तितली की तरह चमक उठना

15 साल की भानुरेखा का एक ही सपना था, कोई सपनों का राजकुमार हो छोटा सा परिवार हो. मगर घर का खर्च चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर थी. मां एक्ट्रेस रह चुकी थीं तो एक ही काम आता था, फिल्मों में ऐक्टिंग करना. मगर हर किसी को भानुरेखा में एक और पुष्पावल्लि दिखाई देती थी. सब जानते थे कि गणेशन सरनेम के बावजूद इस लड़की के पीछे किसी पुरुष या स्टार का हाथ नहीं है.

ऐक्टर विश्वजीत के साथ पहली हिंदी फिल्म मिली ‘अनजाना सफर’ एक दिन एक रोमांटिक सीन शूट होना था. विश्वजीत ने कैमरे के सामने ही बिना बताए रेखा को पकड़कर किस करना शुरू कर दिया. डायरेक्टर कैमरा रोल करता रहा यूनिट के लोग 5 मिनट तक सीटियां बजाते रहे. रेखा रोती रहीं मगर सीन ऐसे ही शूट हुआ.

फिल्म 'सावन भादो' की हीरोइन पर एक डांस नंबर शूट होना था. गीतकार वर्मा मलिक ने जब हीरोइन को देखा तो लगा मोटा-मोटा काजल लगाए मोटी सी ये लड़की भला कैसे इस गाने पर फिट बैठेगी. गीत था कान में झुमका, चाल में ठुमका कमर पे चोटी लटके. गीत बना भी और हिट भी हुआ. इसके साथ ही रेखा ने खुद को बदलना शुरू किया.

शुरुआती दिनों में रेखा

हफ्तों तक पॉपकॉर्न और इलायची वाला दूध पीकर रहने वाली लड़की बदल रही थी. दूसरी हीरोइनों और मॉडल्स को देखकर मेकअप और फैशन के गुर अपना रही थी. दो साल बाद जब 'घर' फिल्म आई तो बड़ी-बड़ी आंखों में करीने से लगे काजल और गहरे रंग की लिपस्टिक वाली रेखा ने लोगों के होश उड़ा दिए. अंग्रेजी में उपमा है, एजिंग विद द ग्रेस मतलब उम्र के साथ निखरना, रेखा के इसी दौर की शुरुआत हो चुकी थी. अनंतकाल के लिए.

दीदीभाई के बॉयफ्रेंड से मुलाकात

रेखा की एक बड़ी बहन जैसी दोस्त थीं, जया बच्चन. जिन्हें रेखा अभी भी दीदीभाई कहकर बुलाती हैं. बांग्ला का ये संबोधन अक्सर किसी बहन से अधिक आत्मीयता दिखाने के लिए इस्तेमाल होता है. रेखा को दीदी भाई के बॉयफ्रेंड और बाद में पति बने अमिताभ के साथ फिल्म मिली. अब तक रेखा बेपरवाही से काम करती आ रही थीं और अमिताभ 'दीवार' की सफलता से पूरे देश की धड़कन बने हुए थे.

एक इंटरव्यू में रेखा बताती हैं कि अमिताभ के साथ इस पहली मुलाकात ने उनपर जादू कर दिया. सेट पर काम को लेकर प्रतिबद्धता, बैरीटोन वाली भारी आवाज में बात करना. एक अलग ही स्टाइल के साथ कुर्सी पर बैठना. अपनी निजी समस्याओं, भावनाओं को जनता के सामने न आने देना, सबकुछ जादुई था. रेखा को लगा इस इंसान जैसा बनना चाहिए. रेखा बनीं भी. अगर गौर करेंगे तो पाएंगे कि रेखा ने वक्त के साथ-साथ अपने अंदर इन आदतों को बहुत सलीके से अपनाया.

रेखा कहती हैं कि उन्हें औसत दर्जे की चीजें कभी पसंद नहीं आती हैं. अमिताभ भी औसत से ऊंचा कद रखते थे. दोनों की जोड़ी खूब जमी. 10 फिल्में साथ में करने के बाद ये कहानी फिल्म के बाहर भी आ गई. तमाम मसालों के साथ कई तरह की बातें की गईं. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर बनी फिल्म 'सिलसिला' में रेखा और उनकी दीदीभाई जया भी थीं. संबंध इतने कड़वे हुए कि कुली के हादसे के बाद अमिताभ को मिलने पूरी फिल्म इंडस्ट्री आई मगर रेखा के लिए दरवाजे बंद थे. हालांकि रेखा बताती हैं कि उनकी और अमिताभ की ‘जान-पहचान’ में कुछ भी निजी नहीं था.

खून भरी मांग ने बदला नजरिया

रेखा के खाते में उमराव जान, मुकद्दर का सिकंदर, सिलसिला और खूबसूरत जैसी तमाम फिल्में हैं मगर खुद रेखा के लिए सबसे खास फिल्म खून भरी मांग है. रेखा कहती हैं कि इससे पहले वो ऐक्टिंग को अपने काम की तरह लेती हैं. मगर खून भरी मांग की सफलता और उसके लिए मिले अवॉर्ड ने उन्हें अहसास दिलाया कि सिनेमा ही वो चाबी है जो रेखा को अमिट बना सकता है. इस फिल्म ने उनका अपने प्रति नजरिया बदल दिया.

दशकों के सफर में रेखा की सुंदरता भव्यता में बदली है

किताबें या अखबार नहीं पढ़ती

रेखा कहती हैं कि उन्होंने ताजिंदगी कोई किताब या अखबार नहीं पढ़ा. 13 साल की उम्र में कमाई करने के लिए पढ़ना छोड़ना पड़ा था. इसके बाद की तालीम रेखा ने लोगों और जिंदगी को पढ़कर पाई. वो कहती हैं कि मैं किताब और अखबार भरने के लिए बनी हूं, पढ़ने के लिए नहीं. हां उनकी सेक्रेट्री रही फरजाना ने रेखा को कई किताबें, कहानियां कविताएं पढ़कर सुनाई हैं जो उन्हें अच्छे से याद हैं.

एक ख्वाहिश जो अधूरी रहेगी

रेखा बताती हैं कि उनका बचपन से एक ही सपना था, परिवार हो, प्रेम करने वाला पति और बच्चे हों. विनोद, मुकेश, किरण और जीतेंद्र जैसे कई नाम उनकी जिंदगी में जिस तेजी से आए, चले भी गए. उनके पति मुकेश अग्रवाल ने शादी के कुछ महीने बाद ही आत्महत्या कर ली. रेखा दुनिया भर के लिए घर तोड़ने वाली औरत बन गईं. हिंदी सिनेमा के एक मशहूर अभिनेता ने उन्हें उस समय नेशनल वैम्प भी कह दिया. रेखा खामोश रहीं.

अपनी निजी चीजों को जनता के सामने न लाने वाली जो आदत उन्होंने अमिताभ बच्चन से सीखी थी, उसे ही दोहराती रहीं. मगर सबकुछ पाने के बाद भी रेखा की वो शादी करके परिवार बसाने की ख्वाहिश अधूरी ही रही.

आज रेखा किसी भी कार्यक्रम में दिखती हैं तो किसी नवविवाहिता की तरह सिंदूर लगाए, श्रृंगार किए दिखती हैं. मगर किसी में हिम्मत नहीं है कि उनसे सवाल पूछे कि ये किसी अधूरे सपने के पूरे होने का श्रृंगार है या किसी की याद में की गई सज्जा. रेखा वो शय हैं जिन पर कई ग़ज़लें मुकम्मल हो सकती हैं, पूरे दीवान लिखे जा सकते हैं. फिलहाल दो अलग-अलग मिज़ाज के शेर हैं इनमें से उनके लिए आप जो चाहें चुन लें...

मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीका,

चुपचाप से बहना औ अपनी मौज में रहना.

या फिर

हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पर दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमां मगर फिर भी थे कम निकले.