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पंचम जन्मदिन विशेष: तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी तो नहीं

पंचम दा की कहानी को किसी एक खांचे में नहीं बांध सकते.

Shailesh Chaturvedi

विधु विनोद चोपड़ा एक फिल्म बना रहे थे. नाम था 1942 अ लव स्टोरी. उन्हें एक खास किस्म के संगीत की तलाश थी. वह आरडी बर्मन से मिलने पहुंचे. लोगों ने मान लिया था कि बर्मन दा यानी पंचम का जादू तो ढल चुका है. इसके बावजूद विधु विनोद चोपड़ा उनसे मिलना चाहते थे. पंचम दा ने धुन सुनानी शुरू कीं. एक के बाद एक. हर धुन में 80 के दशक की खासियत थी. तड़क-भड़क थी. विधु विनोद चोपड़ा खारिज करते गए. ये किस्सा उन्होंने एक रेडियो इंटरव्यू में सुनाया था.

एक वक्त ऐसा आया कि पंचम दा थक गए. उन्होंने कहा – मेरे से नहीं होगा, तू किसी और को ले ले. विधु विनोद चोपड़ा ने कहा – दादा ऊपर देखिए. पंचम दा ने ऊपर देखा. वहां उनके पिता सचिन देव बर्मन की तस्वीर थी. चोपड़ा ने कहा- दादा, मुझे वैसा म्यूजिक चाहिए. पंचम दा की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने विधु विनोद चोपड़ा को एक हफ्ते बाद बुलाया. फिर से धुन सुनाई. कुछ ना कहो... कुछ भी न कहो..... हर गाना लाजवाब. एक लड़की को देखा की धुन उन्होंने सिर्फ 15 मिनट में बना दी थी.


नहीं देख सके फिल्म और  संगीत की कामयाबी

पंचम दा को इंतजार था इस फिल्म के रिलीज का. लेकिन जिंदगी बड़ी क्रूर होती है. फिल्म अप्रैल में रिलीज होनी थी. चार जनवरी 1994 का दिन था. रिलीज से चंद महीने पहले. सुबह तीन बजकर 45 मिनट का समय था. एक के बाद एक पंचम दा को दो दिल के दौरे पड़े. उनका निधन हो गया. अजिताभ मेनन ने अपने एक लेख में उस समय का जिक्र किया है.

आशा भोसले को संभालना मुश्किल हो रहा था। वो लगातार कह रही थीं- मैं उस कमरे में नहीं जाऊंगी। उसको मरा हुआ नहीं देख सकती. मैं उसे जिंदा देखना चाहती हूं. गुलजार उन्हें संभालने की कोशिश कर रहे थे. उनका नौकर सुदामा साथ था, जिसके आंसू नहीं थम रहे थे. उसे पंचम दा बच्चे की तरह प्यार करते थे. जया बच्चन गीता का पाठ कर रही थीं, ताकि उनकी आत्मा को शांति मिले.

अंतिम संस्कार के दौरान राखी घर के सारे इंतजाम देख रही थीं. उनके शव पर राखी ने सुगंध छिड़के और सिल्क की धोती और कुर्ता रखा. ये वो उपहार थे, जो उन्होंने पंचम के लिए खरीदे थे, लेकिन दिए जाने से पहले ही वो दुनिया छोड़ गए. पंचम दा की मां मीरा यह मानने को तैयार नहीं थी कि पार्थिव शरीर उनके बेटे का है- ये कोई और है, पंचम नहीं.

टबलू से पंचम और आरडी तक...

पंचम दा की कहानी को किसी एक खांचे में नहीं बांध सकते. कामयाबी, नाकामयाबी, शोहरत, एकाकीपन... सब कुछ इसमें मिलेगा. कलकत्ता में उनका जन्म हुआ था. जीनियस पिता के जीनियस पुत्र होने के लक्षण बचपन में ही दिखने लगे थे. पिता ने नाम रखा था टबलू. लेकिन एक दिन उन्हें रोते देखा तो अशोक कुमार ने कहा कि ये तो पंचम में रोता है. नाम पड़ गया पंचम.

परिवार कलकत्ता से बंबई (अब मुंबई) आया, तो उन्होंने अली अकबर खां साहब से सरोद सीखा. हार्मोनिका भी सीख लिया. समता प्रसाद से तबला सीखा. संगीतकार सलिल चौधरी को उन्होंने हमेशा अपना गुरु माना. नौ साल के थे, जब पहला गाना कंपोज किया. यह गाना सचिन देव बर्मन ने फिल्म फंटूश में इस्तेमाल किया, जो 1956 में रिलीज हुई थी.

महमूद के साथ की पहली फिल्म

उसी दौरान महमूद एक फिल्म के लिए सचिन देव बर्मन से मिलने आए. बर्मन दा व्यस्त थे. उन्होंने मना कर दिया. महमूद ने देखा कि बड़ा चश्मा लगाए एक छोटा बच्चा कोने में तबला बजा रहा है. वो पंचम दा थे. महमूद ने सचिन देव बर्मन से इजाजत ली कि पंचम को उनके लिए काम करने दें और इस तरह पंचम को वो फिल्म मिली. फिल्म थी छोटे नवाब, जिसका गाना घर आजा घिर आए बेहद मकबूल हुआ.

निजी जिंदगी में नाकामी, संगीत हिट

60 का दशक पंचम दा के लिए कामयाबी और कड़वाहट दोनों लेकर आया. उनका विवाह 1966 में रीता पटेल से हुआ. लेकिन वैवाहिक जीवन सुखद नहीं रहा. 1971 में उनका तलाक हो गया. 1975 में पिता सचिन देव बर्मन नहीं रहे. इन सारी बातों के बीच उनका संगीत फलता-फूलता रहा. एक के बाद एक ऐसी फिल्में आईं, जिनका संगीत बेमिसाल था. उसी दौरान आशा भोसले का साथ भी उन्हें मिला. 80 के दशक में दोनों ने साथ जीवन बिताने का फैसला किया.

पंचम दा की पहली सुपरहिट फिल्म थी तीसरी मंजिल. इसके बाद वो लगातार नासिर हुसैन की फिल्में करते रहे. उन्हें तब झटका लगा था, जब कयामत से कयामत के लिए उन्हें नहीं लिया गया. नासिर हुसैन के बेटे मंसूर खां ने उन्हें न लेने का फैसला किया. ये वो दौर था, जब पंचम की फिल्में फ्लॉप हो रही थीं. कहा जाता है कि सुभाष घई ने राम लखन के लिए पहले आरडी बर्मन से बात की थी. लेकिन फिर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को साइन किया। कहा जाता है कि पंचम इससे बहुत दुखी थे कि उन्हें बताने की भी जरूरत नहीं समझी गई.

हां, गुलजार के साथ जरूर उनके यादगार गाने आते रहे. चाहे फिल्म किनारा हो या इजाजत या मासूम. गुलजार हमेशा ही उनके सबसे अच्छे दोस्तों में थे. गुलजार का ही एक गीत है, जो हमेशा पंचम दा की याद दिलाएगा – तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नहीं... तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी तो नहीं. संगीत हमेशा रहा है और रहेगा. लेकिन पंचम सुर की कमी संगीत में हमेशा महसूस की जाती रहेगी.