दूरदर्शन के शुरुआती दिनों की जब भी बात होती है, रामायण सीरीयल का जिक्र जरूर होता है. लोग बताते हैं कि कैसे उस दौर में टीवी देखने के चलते सड़कों पर अघोषित कर्फ्यू सा लग जाता था. मोहल्ले में एक घर में टीवी होता था और सब वहीं रामायण देखने जमा होते थे. मगर रामायण सीरियल की शुरुआत एक चीज़ के बिना नही हो सकती थी, रवींद्र जैन की ऊंचे सुर की आवाज में मंगल भवन अमंगल हारी द्रवहु सो दसरथ अजिर बिहारी. वैसे आपको बता दें कि रामायण के टाइटल सॉन्ग के तौर पर ये इस कंपोजीशन का पहला इस्तेमाल नहीं था.
पैदाइशी नेत्रहीन रवींद्र जैन ने रामानंद सागर की रामायण को अपने सुरों से बखूबी सजाया. बीआर चोपड़ा की महाभारत में जहां 'मैं समय हूं' कहता सूत्रधार कहानी कहने के ढंग को एक नया अंदाज देता है, रवींद्र जैन रामायण में यही काम संगीत के जरिए करते हैं. उत्तर कांड में लव कुश के जरिए 'हम कथा सुनाते पुण्य सकल गुणधाम की' जैसे भजन सुनिए. रवींद्र जैन की कंपोजीशन का असर ऐसा है कि उनके बाद जितनी भी रामायण बनीं हैं उनमें इन धुनों का असर कहीं न कहीं दिखता है.
रवींद्र जैन का अपने काम के प्रति डेडीकेशन इतना था कि 1970 की फिल्म सौदागर की रिकॉर्डिंग के वक्त उनके पिता की मौत की खबर आई. रवींद्र स्टूडियो से रिकॉर्डिंग पूरी होने के बाद ही गए. वो अपनी आंखों का इलाज भी नहीं चाहते थे, उन्हें लगता था कि ऐसा करने से उनका संगीत के प्रति फोकस खत्म हो जाएगा. हालांकि वो अक्सर कहते थे कि अगर उनकी आंखों की रौशनी वापस आए तो वो यसुदास को सबसे पहले देखना चाहेंगे. ये रवींद्र ही थे जिन्होंने 'गोरी तेरा गांव बड़ा प्यारा' जैसी कंपोजीशन के साथ यसुदास का तार्रुफ हिंदी सिनेमा के साथ करवाया.
एक कंपोजर के तौर पर रवींद्र जी ने काफी लंबा काम किया. रामायण ने उनको अमर कर दिया मगर उनकी कई गाने समय-समय पर सुपरहिट हुए. राम तेरी गंगा मैली और चितचोर के रुप में उन्होंने हमें कई सुकून वाले गाने दिए हैं. आइए सुनते हैं. रवींद्र जैन के कुछ प्रसिद्ध गाने
ये गीत खास तौर पर सुनिए रवींद्र जैन की ही रचना है