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एसडी बर्मन दा और पंचम दा की जुगलबंदी में तैयार एक अमर गीत की कहानी

राग पटदीप की कहानी, जिसके स्वरूप को लेकर हैं कई मत

Shivendra Kumar Singh

हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सुबोध मुखर्जी का नाम बड़ी इज्जत से लिया जाता है. 1950 से लेकर अगले करीब तीन दशक तक उन्होंने करीब एक दर्जन फिल्में बनाई. इसमें मुनीमजी, पेइंग गेस्ट, जंगली, साज और आवाज, शागिर्द और शर्मीली जैसी फिल्मों को खूब सराहा गया. इन फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कारोबार भी किया.

सुबोध मुखर्जी के बड़े भाई सशाधर मुखर्जी भी बड़े सम्मानित लोगों में से एक हैं. उन्होंने ही अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर फिल्मिस्तान स्टूडियो की स्थापना की थी. बाद में 1950 में उन्होंने फिल्मालय के नाम से अपना अलग स्टूडियो बनाया. सशाधर मुखर्जी ने भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को लव इन शिमला, लीडर और जागृति जैसी फिल्में दीं. खैर, सुबोध मुखर्जी की फिल्मों पर वापस लौटते हैं.


सुबोध मुखर्जी की फिल्मों में दो पक्ष हमेशा से बहुत सराहे जाते थे. एक तो उनकी फिल्मों में कहानी कहने की कला जबरदस्त होती थी और दूसरे उनकी फिल्मों का संगीत पक्ष बहुत मजबूत होता था. आप फिल्म-पेइंग गेस्ट के गाने ‘चांद फिर निकला’, ‘माना जनाब ने पुकारा नहीं’ को याद करें या फिर फिल्म-जंगली का गाना ‘एहसान तेरा होगा मुझ पर’ याद करें, सुबोध मुखर्जी की फिल्मों की कामयाबी में हमेशा उनके संगीत का बड़ा रोल रहा. सुबोध मुखर्जी के करियर की आखिरी बड़ी हिट फिल्म मानी जाती है शर्मीली. जिसे समीर गांगुली ने डायरेक्ट किया था. इसके बाद भी उन्होंने तीसरी आंख और उल्टा सीधा नाम की दो फिल्में बनाईं लेकिन वो फिल्में ज्यादा चली नहीं. लिहाजा सुबोध मुखर्जी की आखिरी हिट फिल्म शर्मीली ही उनके करियर का अंत मानी जाती है. इस फिल्म में शशि कपूर और राखी ने अभिनय किया था. आपको फिल्म शर्मीली का एक सुपरहिट गाना सुनाते हैं, फिर उसके राग की कहानी पर आएंगे.

मेघा छाए आधी रात के अलावा भी इस फिल्म में एक से बढ़कर गाने थे. जिसमें ‘खिलते हैं गुल यहां’, ‘आज मदहोश हुआ जाए रे’ और ‘ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मीली’ गाने आसानी से याद आ जाते हैं. इन गीतों को संगीतबद्ध किया था उस दौर के लाजवाब संगीतकार एसडी बर्मन ने. 1971 की बिनाका गीतमाला में इन गानों की धूम थी. इस फिल्म ने उस दौर में करीब तीन करोड़ रुपए का कारोबार किया था. फिल्म में डबल रोल करने वाली अभिनेत्री राखी को बाद में कई बड़ी फिल्में भी मिलीं. अपनी शास्त्रीय धुनों के लिए मशहूर बर्मन दादा ने मेघा छाए आधी रात को अपेक्षाकृत फिल्मी संगीत में कम प्रचलित राग पददीप की जमीन पर तैयार किया था.

लता मंगेशकर इस गाने को अपने करियर के बेहतरीन गानों में गिनती हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि इस गाने का संगीत आम फिल्मी गानों के संगीत से अलग था. आप भी इस गाने को सुनेंगे तो पाएंगे कि मुखड़े और अंतरे के बीच संगीत में क्या बारीकी से काम किया गया है. गाने के बीच बीच में पाश्चात्य इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल जबरदस्त तरीके से किया गया है. बावजूद इसके ये गाना अपनी गंभीरता को नहीं खोता. दरअसल, बर्मन दा के बेटे और मशहूर संगीतकार आरडी बर्मन काफी पहले से अपने पिता को असिस्ट करने लगे थे और इस तरह के प्रयोग वो अपने पिता के साथ मिलकर किया करते थे. खैर, आज का राग पटदीप है इसलिए इसी राग की जमीन पर तैयार किया गया एक और फिल्मी गाना आपको सुनाते हैं.

ये गाना नौशाद साहब ने फिल्म साज और आवाज के लिए कंपोज किया था. ये संयोग की बात ही है कि इस फिल्म के निर्देशक सुबोध मुखर्जी ही थे. खैर चलिए आपको अब राग पटदीप के शास्त्रीय पक्ष के बारे में बताते हैं. राग पटदीप काफी थाट का राग है. इस राग के आरोह में ‘रे’ और ‘ध’ नहीं लगता है. अवरोह में सभी सातों स्वर लगते हैं. इसलिए इस राग की जाति औडव संपूर्ण हो जाती है. इस राग का वादी स्वर ‘प’ है और संवादी स्वर ‘स’ है. वादी संवादी स्वर के बारे में हम आपको बता चुके हैं कि शतरंज के खेल में जो महत्व बादशाह और वजीर का होता है वही महत्व किसी राग में वादी और संवादी स्वर का होता है. राग पटदीप में ‘ग’ कोमल लगता है. इसके अलावा बाकी सभी स्वर शुद्ध लगते हैं.

राग पटदीप को गाने बजाने का समय दिन का तीसरा पहर है. राग पटदीप से जुड़ी कई दिलचस्प जानकारियां हैं. मसलन यूं तो इसे काफी थाट का राग माना गया है, लेकिन किसी भी थाट में ऐसा कोई राग नहीं है जिसमें सिर्फ ‘ग’ को छोड़कर बाकी स्वर शुद्ध लगता हो. कहा जाता है कि राग भीमपलासी से निकला राग है, जिसमें कोमल ‘नी’ को शुद्ध ‘नी’ में बदल दिए जाने से राग पटदीप बन गया और प्रचलित भी हो गया.

आइए आपको राग पटदीप का आरोह अवरोह और पकड़ बताते हैं-

आरोह- ऩी सा, ग म प नी, सां

अवरोह- सां नी S ध प, म ग रे सा

पकड़- ग म प नी सां, नीध S प

इस राग के बारे में और विस्तार से समझने के लिए आप ये वीडियो देख सकते हैं-

राग की कहानी और उसके शास्त्रीय रूप को बताने के बाद हम हमेशा उस राग के शास्त्रीय अदायगी पर बात करते हैं. हम आपको दिग्गज कलाकारों के ऐसे वीडियो दिखाते हैं जिससे आपको राग के शास्त्रीय स्वरूप का बेहतर अंदाजा लग सके. आज हम आपको दो वीडियो दिखा रहे हैं जिसमें पहला वीडियो दिग्गज फनकार उस्ताद सलामत अली खान और उस्ताद शराफत अली खान की जोड़ी का है. दूसरे वीडियो में डॉ. प्रभा आत्रे जी राग पटदीप गा रही हैं. डॉ. प्रभा आत्रे मौजूदा समय में किराना घराने के बड़े कलाकारों में शुमार हैं.

आखिर में हमेशा की तरह राग की शास्त्रीय वादन प्रस्तुति के लिए आपको दिखाते हैं पंडित हरिप्रसाद चौरसिया का बजाया राग पटदीप. पंडित हरिप्रसाद चौरसिया ने ‘अनहर्ड रागा’ के नाम से एक सीरीज निकाली थी. इसी सीरीज में उन्होंने राग पटदीप को भी शामिल किया था. आप उनकी बांसुरी की मधुर तानों में राग पटदीप सुनिए और हम अगली बार आपसे एक नई राग और उससे जुड़े किस्से कहानियों के साथ फिर मिलेंगे.