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जब राजेश खन्ना से गर्दन हिलाकर और पलकें झुकाकर एक्टिंग करने की होती थी ‘डिमांड’

रागदारी में राग तिलंग के बहाने फिल्म ‘महबूब की मेंहदी’ के संगीत की कहानी जो फिल्म के हिट होने की वजह बनी

Shivendra Kumar Singh

70 के दशक की बात है. राजेश खन्ना सुपरस्टार बन चुके थे. परदे पर रोमांस करने का उनका अंदाज एक जादू की तरह था. जो दर्शकों के सिर चढ़कर बोलता था. राजेश खन्ना का फिल्म में होना कामयाबी की गारंटी थी. 1971 में राजेश खन्ना की ऑल टाइम हिट फिल्म- ‘आनंद’ रिलीज हुई. जिसके लिए उन्हें बेस्ट एक्टर के फिल्मफेयर अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया.

यही वो वक्त था जब राजेश खन्ना ने एक के बाद एक कई फिल्में साइन कीं, जिसमें ‘हाथी मेरे साथी’, ‘मर्यादा’, ‘दुश्मन’, ‘अंदाज’, ‘छोटी बहू’ और ‘महबूब की मेंदही’ जैसी फिल्में शामिल हैं. इनमें से ‘हाथी मेरे साथी’ और ‘महबूब की मेंहदी’ काफी हिट हुई. ये वो दौर था जब डायरेक्टर राजेश खन्ना से फरमाइश करने लगे थे कि वो फलां फिल्म की तरह गर्दन को हिलाएं और पलकों को झुका कर अपना अंदाज दिखाएं. राजेश खन्ना का ये अंदाज उस वक्त तक उनका ‘ट्रेडमार्क’ बन चुका था.


इसी दौरान निर्माता निर्देशक राहुल रवैल के पिता एचएस रवैल फिल्म बना रहे थे- ‘महबूब की मेंहदी’. राजेश खन्ना इस फिल्म में बतौर अभिनेता काम करने के साथ-साथ इसके को-प्रोड्यूसर भी थे. फिल्म में लीना चंद्रावरकर हीरोइन थीं. फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल ने तैयार किया था और गीत आनंद बक्शी ने लिखे थे. इसी फिल्म का एक सुपरहिट गाना आपको सुनाते हैं और उसके बाद कहानी को आगे बढ़ाएंगे.

आपने इस गाने में राजेश खन्ना का वो खास अंदाज जरूर नोटिस किया होगा जिसका जिक्र हमने शुरू में किया था. फिल्म-‘महबूब की मेंहदी’ की कामयाबी का बड़ा पक्ष उसका संगीत था. इस फिल्म में एक से बढ़कर एक गाने थे. ‘जाने क्यों लोग मोहब्बत किया करते हैं’, ‘मेरे दीवानेपन की भी दवा नहीं’, ‘ये जो चिलमन है’, ‘महबूब की मेंहदी हाथों में’ जैसे गाने आज भी खूब पसंद किए जाते हैं. फिल्म के हिट होने में उसके संगीत का फॉर्मूला कोई नया नहीं था ना ही कभी पुराना हुआ. तब से लेकर आज तक तमाम ऐसी फिल्में रिलीज हुई हैं जिसका संगीत पक्ष उसकी कामयाबी का आधार बना. फिल्म महबूब की मेंहदी का एक और दिलचस्प पहलू था. इस फिल्म में राजेश खन्ना ने एक अमीर मुस्लिम युवक का रोल किया था. जो एक वेश्या की बेटी से शादी करने को तैयार होता है.

इस फिल्म का संदेश महात्मा गांधी की मुस्लिमों में शिक्षा की वकालत को लेकर था. यही वजह थी कि फिल्म को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि 30 जनवरी को रिलीज किया गया था. खैर, जब एचएस रवैल ने राजेश खन्ना के उस खास अंदाज पर लिखे गाने को कंपोज करने के लिए लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को संपर्क किया तो उन्होंने उस गाने को शास्त्रीय राग तिलंग का आधार बनाकर कंपोज किया. जिसे लोगों ने बहुत सराहा.

महबूब की मेंहदी 70 के दशक की उन कामयाब फिल्मों में से एक है जिसकी कामयाबी में उसके संगीत का बड़ा रोल था. खैर, अब कहानी को आगे बढ़ाते है राग तिलंग से. हिंदी फिल्मों में इस राग के आधार पर कई सुपरहिट गानों को कंपोज किया गया है. जिसमें 1971 में ही रिलीज फिल्म शर्मीली का ये गाना भी गिना जाता है.

इसके अलावा 1951 में नौशाद साहब के संगीत निर्देशन में रिलीज फिल्म दीदार का 'मेरी कहानी भुलानेवाले तेरा जहां आबाद रहे', 1954 में रिलीज फिल्म शबाब का 'यही अरमान लेकर आज हम अपने घर से निकले', 1957 में रिलीज फिल्म देख कबीरा रोया का 'लगन तोसे लागी बालमा', 1959 में रिलीज फिल्म मैं नशे में हूं का 'सजना संग काहे नेह लगाए', 1960 में रिलीज फिल्म बिंदिया का 'मैं अपने आप से घबरा गया हूं' जैसे गाने हिट हुए. आइए इसमें से कुछ गाने आपको भी सुनाते हैं. ये दोनों ही गाने महान कलाकार मोहम्मद रफी ने गाए थे.

आइए अब आपको राग तिलंग के शास्त्रीय पक्ष से आपको परिचित कराते हैं. इस राग की उत्पत्ति खमाज थाट से है. राग तिलंग में ‘रे’ और ‘ध’ नहीं लगता है. इस राग की जाति औडव-औडव है. राग तिलंग के आरोह में शुद्ध और अवरोह में कोमल ‘नी’ का इस्तेमाल किया जाता है. इस राग का वादी स्वर ‘ग’ और संवादी स्वर ‘नी’ है और इस रात को गाने बजाने का समय रात का दूसरा प्रहर माना जाता है.

वादी और संवादी स्वर के बारे में हम आपको बता चुके हैं कि किसी भी राग में वादी संवादी स्वर का महत्व यही होता है जो शतरंज के खेल में बादशाह और वजीर का होता है. राग तिलंग को चंचल किस्म का राग माना गया है. यही वजह है कि इस राग में आपको ठुमरी और छोटा ख्याल सुनने को ज्यादा मिलेगा. आइए अब आपको राग तिलंग के आरोह अवरोह से परिचित कराते हैं.

आरोह- सा, ग, म, प, नी, सां

अवरोह- सां नी, प, म, ग, सा

पकड़- नी, प, ग, म, ग, सा

इस राग की बारीकियों को और विस्तार से समझने के लिए एनसीईआरटी का बनाया गया ये वीडियो देखिए-

इस राग की अदायगी को समझाने के लिए आपको एक दुर्लभ रिकॉर्डिंग सुनाते हैं, जो भारत रत्न से सम्मानित पंडित भीमसेन जोशी और गायक उस्ताद राशिद खान की आवाज में रिकॉर्ड किया गया है.

जैसा कि हमने आपको बताया था कि इस राग में ज्यादातर ठुमरियां सुनने को मिलती हैं. इस ठुमरी के बोल हैं- सजन तुम काहे को नेह लगाए. इसके बाद ठुमरी की रानी के नाम से मशहूर विश्वविख्यात गायिका गिरिजा देवी का राग तिलंग में गाया टप्पा सुनिए.

शास्त्रीय वाद्ययंत्रों में राग तिलंग की पेशकश को सुनने के लिए ये वीडियो देखिए. जिसमें सरोद के दिग्गज कलाकार उस्ताद अमजद अली खान साहब राग तिलंग बजा रहे हैं.

रागों की कहानी में आज बस इतना ही, अगले हफ्ते एक नए राग और उसकी कहानियों के साथ फिर हाजिर होंगे.