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पद्मावती: गुंडागर्दी की रूपरेखा भंसाली की और क्लाइमेक्स करणी सेना का

इस पूरे विवाद में पद्मावती को अलाउद्दीन खिलजी से बीजेपी सरकार ने जोड़ा और अब वही विरोध कर रही है

Animesh Mukharjee

संजय लीला भंसाली की फिल्म पद्मावती पर विवाद इस साल की शुरुआत में ही हो गया था. शूटिंग कर रहे भंसाली को करणी सेना के लोगों ने थप्पड़ मारा था. इसके बाद उनका सेट जलाया गया. अब रिलीज रोकने की बात हो रही है. विवाद की जड़ में एक कथित सीन है जिसमें सपने में पद्मावती को अलाउद्दीन खिलजी से मिलते हुए दिखाया गया था.

भंसाली ऐसे किसी भी सीन को अपनी फिल्म में होने से इंकार कर चुके हैं. मगर विवाद शांत नहीं हो रहा. फिलहाल इस विवाद के दो पक्ष हैं, एक ओर अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले का मामला है दूसरी तरफ इतिहास के साथ छेड़-छाड़. पूरे मुद्दे में कई परतें हैं जिन्हें एक-एक कर समझने की जरूरत है.


राजस्थान सरकार ने बताया था पद्मावती को खिलजी की प्रेमिका

आज बीजेपी को इस मुद्दे पर चाहे जितना राजपूताना गौरव और इतिहास याद आ रहा हो. पद्मावती को खिलजी की प्रेमिका बताने की शुरुआत वसुंधरा राजे सरकार ने की थी. राजस्थान टूरिज्म ने अपनी एक झील का विज्ञापन इसके जरिए किया था. चूंकि वसुंधरा बीजेपी से हैं तो उनकी सरकार की सारी गलतियां राष्ट्रवाद की धारा में धुल जाती हैं. करोड़ों की लागत दांव पर लगाने वाले किसी एक आदमी पर जोर दिखाना आसान होता है.

राजस्थान सरकार का ट्वीट

नहीं है इतिहास में जिक्र

लगभग सारे इतिहासकार पद्मावती को एक काल्पनिक किरदार बताते हैं. जबकी पद्मावती (कई जगहों पर पद्मिनी) को इतिहास मानने वाले लोग मलिक मोहम्मद जायसी के ग्रंथ ‘पद्मावत’ का हवाला देते हैं.

जायसी एक सूफी कवि थे जिन्होंने अवधी में पद्मावत लिखी. जायसी की किताब में पद्मावती सिंहल द्वीप (श्रीलंका) की राजकुमारी है. जायसी की पूरी कथा में कहीं भी इतिहास के तौर पर ये इन पात्रों का जिक्र नहीं आता है. सारी कहानी एक राजा था एक रानी थी के मोड में चलती है. पद्मावत के अंत में खुद जायसी इस कहानी को काल्पनिक बताते हैं.

”तन चितउर, मन राजा कीन्हा. हिय सिंघल, बुधि पदमिनि चीन्हा

गुरू सुआ जेइ पंथ देखावा. बिनु गुरु जगत को निरगुन पावा?”

मतलबः आदमी का तन चित्तौड़ है और मन राजा रत्नसेन

हृदय सिंघल द्वीप है और बुद्धि पद्मिनी

तोता गुरू है जो रास्ता दिखाता है,

बिना गुरू के संसार में संसार में किसे परमात्मा मिलता है.

क्या खिलजी ने आक्रमण किया था?

अमीर खुसरो के लिखे विवरण में खिलजी के आक्रमण का जिक्र मिलता है मगर इसमें पद्मावती या उसकी प्रेम कहानी का कोई जिक्र नहीं आता. खिलजी का शासन सन 1316 ईसवी में खत्म हो जाता है. जबकि पद्मावत 1520 में लिखा गया है.

हां, इतिहास में एक राजा रत्नसेन भी हुए हैं. मगर उनकी कहानी जायसी की पद्मावत की कहानी है इस बात का कोई सबूत नहीं है. दूसरी तरफ 14वीं शताब्दी में एक तोते की बात को सुनकर उसके पीछे-पीछे श्रीलंका तक चले जाने वाले राजा की कहानी को कैसे विश्वसनीय माना जा सकता है!

राजपूत कैसे हुई पद्मावती

चलिए एक बार को पद्मावती के होने की कहानी को वैसे ही मान लेते हैं जैसे करणी सेना जैसे तमाम गुंडागर्दी करने वाले संगठन कह रहे हैं. अगर पद्मावती श्रीलंका की थी तो राजपूत कैसे हुई? जन्म के आधार पर तो वो सिहंली हुई न. अगर आप ये तर्क दें कि उसकी शादी राजपूत से हुई थी, तो इस आधार पर जोधाबाई मुगल हुईं. जब जोधा-अकबर रिलीज हुई थी तो जोधाबाई के नाम पर राजपूत गौरव की गुंडागर्दी देखने को मिली थी. इतिहास तय करने से पहले एक मानक तय कर लेना चाहिए.

इसके अलावा एक राजा का अपने राज्य की रक्षा न कर पाना और उसकी पत्नी का इसके बाद आक्रमणकारियों से बचने अपनी जान दे देती है. इस कहानी में करुणा और त्याग तो दिखता है मगर गौरव?

भंसाली भी नहीं है पाक साफ

भंसाली इस समय जिस चरमपंथ का नतीजा भुगत रहे हैं, उसे अपने फायदे भुनाने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी है. पद्मावती के ट्रेलर में जिस तरीके से शाहिद कपूर राजपूत होने का मतलब सुपरमैन, टोनी स्टार्क या शक्तिमान जैसा कुछ होना बताते हैं वो घोर जातिवादी है. एक बार को ये माना जा सकता है कि करणी सेना को खुश करने के लिए उन्होंने ऐसा किया.

मगर फिल्म बाजीराव मस्तानी की शुरुआत में ही वॉइस ओवर आता है कि चेहरे पर चितपावन ब्राह्मणों सा तेज. उनसे पूछा जाना चाहिए कि ब्राह्मण होने पर किसी के चेहरे में कौन सा अलग तेज पैदा हो जाता है और भंसाली जी को इसके दर्शन सर्वप्रथम कहां हुए? अब उसी प्रकार के तेज का प्रदर्शन उनकी फिल्म को रोक रहा है.

इसके अलावा अलाउद्दीन खिलजी राजस्थान के भारत के मैदानों में ध्रुवीय प्रदेशों वाले फर के कोट पहने हुए है. उसके खेमे में ऑस्ट्रेलियन लव बर्ड है. फिल्म बाजीराव मस्तानी में पूरी फिल्म में बुंदेलों के लिए राजपूत शब्द इस्तेमाल किया जाता है. पेशवाओं का नाच तो दिखाया जाता है मगर उनके समय में चितपावन ब्राह्मण होने के चलते हुए भेदभाव को पूरी तरह से गायब कर दिया जाता है.

कुल मिलाकर पद्मावती चरमपंथ और मिथक को इतिहास मानने के पागलपन का शिकार हो चुकी है जिसको फैलाने में एक दो आहुतियां खुद संजय लीला भंसाली ने भी डाली हैं