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नौशाद: 10 बातें जो बनाती हैं उन्हें संगीत-ए-आज़म

नौशाद हिंदी सिनेमा केएल सहगल से कुमार सानू तक को गवाने वाले इकलौते संगीतकार हैं

Satya Vyas

नौशाद साहब को हिंदुस्तानी फिल्म संगीत का पुरोधा कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी. बचपन में मजार से पैसे उठाकर कर फ़िल्म देखने वाले नौशाद साहब संगीत के लिए ही पैदा हुए थे.यही कारण था कि जब 17 साल की उम्र में पिता ने घर और संगीत दोनों में से एक चुनने को कहा तो नौशाद ने संगीत चुन लिया. उनकी पुण्यतिथि पर वो बातें जो उन्हें महान संगीतकार के साथ महान इंसान भी बनाती हैं.

1. फिल्म निर्देशक 'नक्शब' अपनी फिल्म में बतौर संगीत निर्देशक नौशाद को लेना चाहते थे. नौशाद साहब उन दिनों यानी सन 1953 में अति व्यस्त थे. वह नक्शब साहब की फिल्म न कर सके. इस इंकार से गुस्साए नक्शब ने दूसरे संगीतकार शौकत देहलवी न सिर्फ चुना बल्कि उनका नाम बदल 'नाशाद'  कर दिया. नौशाद के सामने खड़ा होने को नाशाद. वक्त ऐसा था कि धुन तो छोड़िए, नौशाद के नाम की भी चोरी होने लगी थी.


2. नौशाद साहब की पहली म्यूजिकल सुपरहिट फिल्म 'रतन' थी. इस फिल्म का कुल बजट 75 हजार रुपए था. मगर इस फिल्म के संगीत की रॉयल्टी ही कुल तीन लाख रूपए आ गई थी.

3. कला कभी धर्म के आड़े नहीं आ सकती, नौशाद इसका सजीव उदाहरण थे. सिने जगत की बेहतरीन भजन बनाने वाली टीम नौशाद, शकील बदायूंनी और मोहम्मद रफी साहब की रही.

4. लोकगीत और पूरबी संगीत को फिल्मोद्योग में प्रतिष्ठित करने का श्रेय नौशाद साहब को ही जाता है. उनसे पहले बंगाल और पंजाब के संगीत पर प्रयोग हुए थे पर उत्तर प्रदेश का लोक संगीत कमोबेश अछूता रहा था. वह लोक धुन और रागों का अद्भुत मिश्रण कर देते थे.

5. नौशाद साहब फिल्म की स्क्रिप्ट सुन कर ही धुन बनाया करते थे. अमान कहते थे कि नौशाद अगर फिल्म बनाता तो तारीखी बनाता. पाकीजा के प्रथम दृश्य को लेकर कमाल अमरोही परेशान थे. नौशाद ने ही उन्हें यह सुझाव दिया था कि आदमकद मोमबत्ती के साथ रक्काशा के नृत्य से अच्छा प्रभाव पड़ेगा.

पाकीजा की शुरुआत ऐसे ही होती है.

6. नौशाद साहब स्वयं भी एक उम्दा शायर थे. यही कारण है कि उनके संगीत में गीत के बोल भी अमर हो जाते थे. शकील बदायूंनी के साथ उनकी खूब जमती थी. यह भी कहते हैं की प्रसिद्ध गीत 'जब प्यार किया तो डरना क्या' चार मुखड़ों के साथ 105वीं बार में लिखी गई थी. कहने का अर्थ है कि बिना मुतमईन हुए नौशाद साहब काम खत्म ही नहीं करते थे.

7. नौशाद साहब संगीत के दर्जा कद्रदान थे. बड़े गुलाम अली खान साहब को मुगल-ए-आजम के 'जोगन बन के' 25000 रुपए में अनुबंधित करने की बात तो जगप्रसिद्ध है ही. कम लोग ही जानते हैं कि गुजरे दिनों की पार्श्व गायिका 'राजकुमारी' जी को अपने बुरे दिनों में कोरस में खड़ा देख नौशाद आहत हुए थे और फिल्म पाकीजा में एक गीत उनकी आवाज में रिकॉर्ड किया था.

8. नौशाद साहब को पसमंजर मौसिकी अर्थात बैक ग्राउंड म्यूजिक का पुरोधा भी माना जाता है. वह कहते थे कि बैक ग्राउंड म्यूजिक तब संवाद करते हैं जब अदाकार चुप रहते है. सच भी है उनके ऐतिहासिक फिल्मों में दिए गए संवाद इस बात को पुख्ता करते हैं.

9. पाश्चात्य संगीत के फिल्मोद्योग में प्रवेश के बाद नौशाद साहब ने समझौता करने के बजाय फिल्म न करने को चुना. बाद के दिनों में उन्होंने ऐतिहासिक सीरियल टीपू सुल्तान, अकबर द ग्रेट तथा अपने बेटे की फिल्म गुड्डू और 'तेरे पायल मेरे गीत' में संगीत दिया. उनकी आखिरी फिल्म अकबर खान की 'द ताजमहल' रही.

10. कहना न होगा कि अनिल बिश्वास सच ही कहते थे-

फिल्मों में संगीत जब तक है, संगीत में नौशाद तब तक रहेगा.

(ये लेख पहली बार 5 मई 2017 को प्रकाशित हुआ था. हम इसे दोबारा पढ़वा रहे )