view all

पत्रकारों का दौर खत्म हो चला है, पत्रकारिता जिंदाबाद

प्रिंट और टीवी दोनों या तो ढलान पर हैं या ठहराव के शिकार हैं. रेडियो ने खुद को संगीत से जोड़ लिया है. ऐसे में अगर आज के युवा सूचनाएं हासिल कर रहे हैं, तो वह मंच जाहिर तौर पर इंटरनेट है

Dilip C Mandal

यह वाकया राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के एक अपार्टमेंट का है, जिसमें कुल 2400 फ्लैट हैं. इस अपार्टमेंट में एक ही न्यूज पेपर वाला है, जिसके पास अखबार फेंकने वाले कई लोग हैं. हर घर से अखबार के पैसे की वसूली एक ही आदमी करता है. हर घर से पैसे लेने वाले उस आदमी की सूचना है कि अपार्टमेंट के जिन फ्लैट्स में स्टूडेंट या कॉल सेंटर या आईटी वाले या ऐसे ही यानी 25-26 साल से कम उम्र के लोग रहते हैं, वहां एक भी अखबार नहीं बिकता. यही 2017 की बात है.

पत्रकारिता और पत्रकारों के लिए इसका क्या मतलब है? कोई यह भी नहीं कह सकता कि इस अपार्टमेंट के जिन घरों में अखबार नहीं खरीदा जा रहा है, उन घरों में रहने वाले देश और दुनिया की कम खबर रखते हैं या कम जानकारियां रखते हैं. बल्कि ज्यादा संभावना इस बात की है कि वे युवा बेहतर इनफॉर्म्ड हों. बेशक सूचनाओं की उनकी परिभाषा अलग हो सकती है.


(फोटो: रॉयटर्स)

अखबारों की दुनिया के सिकुड़ने के लक्षण दिखने लगे हैं

1780 में भारत में पहला अखबार हिक्कीज गैजेट शुरू हुआ. तब से लेकर अब तक अखबारों की दुनिया कई तरह से बदली है. लेकिन अब वह कहानी संपन्न होती नजर आ रही है. किसी तरह की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी, रेडियो के बारे में ऐसी भविष्यवाणी गलत साबित हो चुकी है, लेकिन मौजूदा ट्रेंड जारी रहने का एक मतलब तो साफ है कि अखबारों की दुनिया के सिकुड़ने के लक्षण दिखने लगे हैं. विकसित देशों में यह हो चुका है. भारत में साक्षरता के क्षेत्र में मौजूद गैप की वजह से अखबारों के बंद होने या बिक्री घटने की प्रक्रिया रुकी हुई है.

फिक्की-केपीएमजी मीडिया एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट 2017 के मुताबिक, 2015 और 2016 के बीच भारत में प्रिंट मीडिया में बढ़ोतरी की रफ्तार सिर्फ 7% रही. यानी महंगाई दर को भी यह रफ्तार मुश्किल से छू पा रही है. इसी दौरान टीवी जगत के बढ़ोतरी की रफ्तार भी सिर्फ 8.5% ही रही. इन दो आंकड़ों ने किसी को चौंकाया नहीं है क्योंकि पिछले कई साल से तमाम रिपोर्ट में इसी तरह के मिलते-जुलते आंकड़े आ रहे हैं.

तेजी बढ़ रहा है डिजिटल सेक्टर

मतलब साफ है कि मीडिया जगत में प्रिंट और टीवी दोनों या तो ढलान पर हैं या ठहराव के शिकार हैं. रेडियो ने इस बीच अपने को मुख्य रूप में संगीत से जोड़ लिया है. ऐसे में अगर आज के युवा सूचनाएं हासिल कर रहे हैं, तो वह मंच जाहिर तौर पर इंटरनेट है. फिक्की-केपीएमजी मीडिया एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री रिपोर्ट के ही मुताबिक, 2015 और 2016 के बीच डिजिटल सेक्टर में 28% की बढ़ोतरी हुई. उसमें वीडियो का क्षेत्र सबसे तेजी से बढ़ रहा है.

डिजिटल क्षेत्र का सबसे तेज खिलाड़ी वीडियो

डिजिटल के बढ़ने और प्रिंट और टीवी के सिकुड़ने का पत्रकारिता और पत्रकारों पर तमाम तरह के असर हो रहे हैं और यह कहानी अभी पूरी नहीं हुई है. चूंकि सबसे तेजी से बढ़ते डिजिटल क्षेत्र का भी सबसे तेज खिलाड़ी वीडियो है तो वीडियो के रुझान को जानने के लिए यूट्यूब के ट्रेंड को देखना दिलचस्प होगा. आप पाएंगे कि किसी भी दिन भारत में सबसे ज्यादा देखे जाने वाले वीडियो किसी बड़ी मीडिया कंपनी के शायद ही हैं. वीडियो की एक कॉटेज इंडस्ट्री खुल गई है, जो तमाम तरह के, जिनमें अनाप-शनाप शामिल है, वीडिया बनाकर व्यूज बटोर रही है और वीडियो विज्ञापन से पैसा कमा रही है. इसमें से कई यूट्यूब चैनल को सिर्फ एक आदमी चला रहा है. यह एक अराजक स्थिति है क्योंकि इनका कोई गेटकीपर नहीं है, लेकिन यह सूचनाओं का लोकतंत्र भी है. सूचना अब कोई भी आदमी पहुंचा सकता है. बड़ी कंपनियों का एकाधिकार कमजोर हुआ है. अगर पत्रकारिता का बुनियादी काम ढेर सारे लोगों तक सूचनाएं और समाचार पहुंचाना है तो यह नए तरह की पत्रकारिता है. हालांकि इसे पत्रकारिता कहें भी या नहीं, इस पर विवाद है.

कौन पत्रकार है नहीं, पत्रकारिता कौन कर रहा यह महत्वपूर्ण

कोलंबिया में ग्रेजुएट स्कूल ऑफ जर्नलिज्म की शिक्षक ऐन कूपर का मानना है कि अब यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि कौन पत्रकार है बल्कि यह पूछा जाना चाहिए कि कौन पत्रकारिता कर रहा है. उन्होंने 1990 के दशक के आखिरी वर्षों में चीन में दिखी एक नई प्रवृत्ति का जिक्र किया है. उन दिनों कूपर कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स की कार्यकारी निदेशक थीं. चीन में परंपरागत मीडिया पर कड़ा सरकारी नियंत्रण है और इसके बीच कुछ लोग इंटरनेट के जरिए सरकार के बारे में आलोचनात्मक खबरें दुनिया तक पहुंचा रहे थे. 1999 में ऐसे छह लोगों को चीन में गिरफ्तार किया गया, जिन पर आरोप था कि वे इंटरनेट का इस्तेमाल सरकार विरोधी खबरों को फैलाने के लिए कर रहे थे. लेकिन वे लोग परंपरागत अर्थों में पत्रकार नहीं थे. पत्रकारिता न तो उनका पेशा था और न ही वे किसी परंपरागत मीडिया के लिए काम करते थे.

कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के सामने सवाल था कि इन छह लोगों की गिरफ्तारी को पत्रकारिता पर हमला माना जाए या नहीं. आखिरकार कमेटी ने उनका मामला अपने हाथ में लिया. इसके पीछे तर्क यह था कि उन्होंने पत्रकारीय तरीके से काम किया. उन्होंने समाचार, सूचना और विचारों को और लोगों तक पहुंचाया. हालांकि जब जूलियन असांज और विकिलीक्स ने अमेरिका को असहज बनाने वाली कुछ सूचनाएं साइट पर डालीं, तो उसी अमेरिका के जिम्मेदार राजनेताओं ने कहा कि असांज को घेरकर मार डालना चाहिए. उसके साथ ओसामा बिन लादेन की तरह बर्ताव करने की बात की गई.

बहरहाल कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स ने पत्रकार की जो परिभाषा चीन के सदर्भ में बनाई थी, उसका विस्तार भारत में करें, तो इस समय देश में कई लाख लोग बेशक पत्रकार के तौर पर नौकरी नहीं करते, लेकिन समाचार, सूचनाएं और विचार लोगों तक पहुंचा रहे हैं और इस मायने में पत्रकारिता कर रहे हैं. यह काम ज्यादातर इंटरनेट के जरिए हो रहा है. वाशिंगटन के वकील स्कॉट ग्रांट ने 2007 में एक किताब लिखी, जिसका नाम है- वी आर ऑल जर्नलिस्ट: द ट्रांसफॉर्मेशन ऑफ द प्रेस एंड रि-शेपिंग ऑफ द लॉ इन द इंटरनेट एज.

पत्रकारिता को नई तकनीक के जमाने में नए तरीके से परिभाषित करने की जरुरत है और इस मामले में अब तक की श्रेष्ठ परिभाषा यह है कि – जो भी कह रहा है कि वह पत्रकार है, उसे पत्रकार मान लेना चाहिए.

न्यूज मीडिया अब सिर्फ टीवी, रेडियो और प्रिंट नहीं

न्यूज मीडिया का मतलब अब सिर्फ टीवी, रेडियो और प्रिंट नहीं रह गया है. इंटरनेट पर काम करने वाले पत्रकारों को अब स्थापित पत्रकार मान लिया गया है. बराक ओबामा ने राष्ट्रपति बनने के बाद अपनी पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस में हफिंगटन पोस्ट नाम की वेबसाइट के एक पत्रकार को बुलाया और इस तरह इंटरनेट की पत्रकारिता को ह्वाइट हाउस ने मान्यता दे दी. राष्ट्राध्यक्षों के प्रेस कॉन्फ्रेंस में अब ब्लॉगर्स भी बुलाए जाते हैं. अब ज्यादातर बड़े माने जाने वाले मुख्यधारा के पत्रकार ब्लॉगिंग और ट्विट करते हैं. इस वजह से कई बार इनकी बात प्रिंट या टीवी से पहले इंटरनेट पर आती है.

भारत सरकार और विभिन्न मंत्रालयों की प्रेस विज्ञप्तियों के बारे में लोग या तो टीवी से या फिर अगले दिन के समाचार पत्रों के जरिए जानते थे. लेकिन इंटरनेट के आने के बाद अब तमाम सरकारी विज्ञप्तियां ऑनलाइन उपलब्ध हैं. एक समय था जब ये विज्ञप्तियां सिर्फ मान्यताप्राप्त पत्रकारों को ही दी जाती थीं. आज अगर आपके पास इंटरनेट है तो तमाम सरकारी फैसले और विज्ञप्तियां आप उसी तरह देख पाते हैं, जैसे कि कोई पत्रकार. सालाना आर्थिक समीक्षा, बजट के पेपर, चुनाव नतीजे और ऐसे ही कई सरकारी दस्तावेज अब पत्रकारों और आम लोगों को एक साथ उपलब्ध होते हैं.

इस मायने में, सूचनाओं को पहले प्राप्त करने का पत्रकारों का विशेषाधिकार टूटा है. कई लोग इंटरनेट के जरिए ये सूचनाएं मूल स्रोत से लेते हैं. परंपरागत मीडिया उनके लिए दोयम दर्जे का स्रोत है. कुछ कंपनियां अपने उत्पाद के बारे में पहली जानकारी मीडिया से भी पहले फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट पर डालती हैं.

शेयर मार्केट की ताजा जानकारियां हासिल करने के लिए अखबारों की कोई उपयोगिता नहीं है और टीवी के मुकाबले बेहतर पोर्टेबिलिटी के कारण ज्यादातर लोग और खासकर डे ट्रेडर्स टेलीविजन के मुकाबले इंटरनेट पर निर्भर रहते हैं. वैसे भी टीवी एक साथ सीमित संख्या में शेयरों के भाव ही बता सकता है जबकि इंटरनेट पर सभी शेयरों के भाव देख जा सकते है और हर शेयर का इतिहास और उससे जुड़ी जानकरियां हासिल की जा सकती हैं.

मोबाइल फोन ने आम लोगों के हाथों में पत्रकारिता के औजार पहुंचा दिए हैं

तकनीक की ताकत की वजह से इंटरनेट, कई बार मुख्यधारा के मीडिया से ज्यादा तेज और ताकतवर साबित होता है. कई बार किसी बड़ी घटना या दुर्घटना की पहली तस्वीर, ऑडिया या वीडिया सबसे पहले किसी ब्लॉग पर नजर आता है. मोबाइल फोन और डिजिटल कैमरे ने आम लोगों (गैर-पत्रकारों) के हाथों में पत्रकारिता के औजार पहुंचा दिए हें. इंटरनेट ने संवाद का मंच उपलब्ध करा दिया है. अब पत्रकारिता परंपरागत पत्रकारों की मोहताज नहीं है. तकनीकी तौर पर देखें तो आज भारत में कोई व्यक्ति फेसबुक पर अपनी बात ढाई करोड़ से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में सक्षम है. यह संख्या दुनिया में सबसे ज्यादा सर्कूलेशन वाले अंग्रेजी दैनिक होने का दावा करने वाले अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया की रीडरशिप से ज्यादा है. इंटरनेट पर कोई खबर टेक्स्ट, ग्राफिक्स, ऑडियो या वीडियो किसी भी या इन सभी फॉर्मेट में हो सकती है. हाइपरलिंक की सुविधा के कारण संदर्भ देना भी आसान होता है और इसमें शब्द या समय की सीमा नहीं होती. इस माध्यम में असीम विस्तार है.

भारत में भी होगी इंटरनेट पर पहरा बिठाने की कोशिश

हालांकि जैसे-जैसे अ-पत्रकार या नव-पत्रकार बिरादरी का असर बढ़ रहा है, उसका विरोध भी बढ़ रहा है. इंटरनेट पर किए जा रहे लेखन और पत्रकारिता को लेकर परंपरागत पत्रकार ही नहीं सरकार और कॉरपोरेट जगत भी लगातार चिंता जताता है. इस पर शिकंजा कसने के उपाय ढूंढे जा रहे हैं और इसके कुछ नमूने विकिलीक्स के साथ ही पूरी दुनिया ने देखा और महसूस किया. भारत में भी इंटरनेट पर पहरा बिठाने की कोशिशें आने वाले समय में तेज होगी. इंटरनेट पर पत्रकारिता करने वालों को भी सतर्क होकर काम करना होगा और मानहानि और अदालत तथा संसद-विधानसभा की अवमानना आदि कानूनी प्रावधानों को जानना होगा. परंपरागत पत्रकार आम तौर पर सत्ता के साथ तालमेल बिठाकर काम करता है और विषम परिस्थितियों में मीडिया संस्थान की ताकत उसके साथ होती है. यह सुविधा इंटरनेट पर काम करने वाले नए तरह के पत्रकारों को हासिल नहीं है.

मुख्यधारा की मीडिया द्वारा छोड़ी गई खबरें इंटरनेट पर सबसे ज्यादा हिट

अगर वे सत्ता के साथ मिलकर काम करते हैं तो उनके होने का कोई मतलब नहीं है और जब वे सत्ता के विरुद्ध होंगे, तो उन्हें सत्ता के क्रोध का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा. इंटरनेट पर की जा रही पत्रकारिता को लेकर कुछ लोगों की शिकायत है कि यह गैर-पेशेवर लोग हैं और इनकी बातों पर भरोसा कैसे किया जाए. उनके मुताबिक परंपरागत पत्रकारिता में कई गेटकीपर होते हैं इस वजह से सूचनाएं छनकर लोगों तक पहुंचती हैं. लेकिन जिस गेटकीपिंग को परंपरागत पत्रकारिता की ताकत बताया जा रहा है वह दरअसल उसकी कमजोरी भी है. कई बार वास्तविक समाचार गेटकीपिंग के दौरान छन और छंट जाता है. मुख्यधारा की पत्रकारिता की विश्वसनीयता में लगातार गिरावट ने भी इंटरनेट जैसे नए माध्यमों में पत्रकारिता के लिए स्पेस मुहैया कराया है. मुख्यधारा की पत्रकारिता जो छिपाती है, वही इंटरनेट की सबसे हिट खबरें हैं. यानी इंटरनेट पर पत्रकारिता के जरिए मुख्यधारा की पत्रकारिता के द्वारा खाली छोड़ी गई जगह को भरने की कोशिश की जा रही है. इंटरनेट जैसे माध्यम में अ-पत्रकारों द्वारा की जा रही पत्रकारिता में गेट कीपर नहीं हैं. इसके खतरे हैं. लेकिन यही इस तरह की पत्रकारिता की ताकत भी है.

मुमकिन है कि इन नव-पत्रकारों में से किसी ने भी पत्रकारिता का प्रशिक्षण न लिया हो. हो सकता है कि इन लोगों ने पत्रकारिता की पढ़ाई न की हो. मुमकिन है कि इन लोगों को यह न मालूम हो कि पत्रकारिता क्यों होती है. किसी सरकार से उन्हें पत्रकार के तौर पर मान्यता भी नहीं मिली होगी. पत्रकार की कोई भी परिभाषा ऐसे लोगों को पत्रकार साबित नहीं करेगी. लेकिन संवादकर्मी के तौर पर इन लोगों ने अपनी भूमिका निभाई है.

अभी के रुझान के हिसाब से ऐसे लोगों की पत्रकारिता बढ़ेगी. मुमकिन है कि परंपरागत पत्रकारों का दौर खत्म हो चला है.