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नागचंद्रेश्वर मंदिर: यहां विराजते हैं नागराज तक्षक, नागपंचमी पर ही खुलता है मंदिर

महाकाल की नगरी उज्जैन, सावन के इस पवित्र महीने में शिव भक्ति में लीन है.

Dinesh Gupta

महाकाल की नगरी उज्जैन, सावन के इस पवित्र महीने में शिव भक्ति में लीन है. सावन में लोगों को सबसे ज्यादा इंतजार श्रावण शुक्ल पंचमी (नागपंचमी) की तिथि का रहता है. इस दिन महाकाल मंदिर के शीर्ष पर स्थित नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट खुलते हैं. कहा जाता है कि इस मंदिर में नागराज तक्षक स्वयं वास करते हैं. मंदिर के पट सिर्फ 24 घंटे के लिए ही खुलते हैं.

इस बार नागपंचमी 28 जुलाई शुक्रवार को है. मंदिर के पट गुरूवार की रात 12 बजे खुलेंगे. शुक्रवार की रात बारह बजे बंद हो जाएंगे. मंदिर के पट खोलने से पूर्व महानिर्वाणी अखाड़े के महंत विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं. पट खुलने के बाद स्थानीय कलेक्टर मंदिर में सरकारी पूजा की रस्म पूरी करते हैं. उज्जैन का महाकाल मंदिर, सरकार द्वारा संचालित मंदिर है. देश के बारह ज्योर्तिलिंगों में एक महाकाल का मंदिर भी है.


श्रावण मास में महाकाल हर सोमवार को प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं. राज्य के मुख्यमंत्री इस यात्रा में प्राय: मौजूद रहते हैं. सिंधिया राजवंश के सदस्य भी महीने में एक बार जरूर महाकाल की सवारी में हिस्सा लेने के लिए आते हैं. उज्जैन सिंधिया राजवंश का हिस्सा रहा है. नागचंद्रेश्वर मंदिर महाकाल मंदिर के तीसरी मंजिल पर स्थित है.

नाग के आसान पर बैठे हैं शिव-पार्वती

हिंदू धर्म में नागों की पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. भगवान विष्णु का सिंहासन शेषनाग का है. भगवान शंकर ने नाग को गले में धारण किया हुआ है. उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर, दुनिया का एक मात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें भगवान शंकर और माता पार्वती फन फैलाए नाग के सिंहासन पर विराजमान हैं. यह प्रतिमा 11वीं शताब्दी की है. प्रतिमा नेपाल से लाई गई थी. मान्यता यह है कि नाग पंचमी के दिन नागराज तक्षक मंदिर में भक्तों को दर्शन देने के लिए मौजूद रहते हैं. मंदिर के पट पूरे साल बंद रखने के पीछे एक किवदंती यह भी है कि नागराज तक्षक यहां साक्षात रूप में रहते हैं.

सिर्फ नागपंचमी के दिन ही अदृश्य स्थिति में होते हैं. मंदिर में उनकी प्रत्यक्ष मौजूदगी की मान्यता के कारण ही मंदिर के पट रोज नहीं खोले जाते हैं. मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शय्या पर विराजित हैं. शिवशंभु के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं.

कहा जाता है कि नागराज तक्षक ने भोलेनाथ को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी. तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने नागराज तक्षक को अमरत्व का वरदान प्रदान किया. मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने भोलेनाथ के सान्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया. महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं. शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है.

मंदिर दर्शन से दूर होता है कालसर्प दोष

यह मंदिर काफी प्राचीन है. माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था. इसके बाद सिंधिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था. उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था.

ज्योतिषियों की ऐसी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन इस मंदिर में नागराज तक्षक के ऊपर विराजित शिव-पार्वती के दर्शन मात्र से कालसर्प दोष शांत हो जाता है. इसी मान्यता के चलते हर साल नागपंचमी पर लाखों लोग देश-विदेश से उज्जैन नागचंद्रेश्वर मंदिर के दर्शन के लिए आते हैं.