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मुलायम-अखिलेश का झगड़ा : यूपी में नया समीकरण

समाजवादी पार्टी के भीतर बाप-बेटे की लड़ाई में पार्टी का भारी नुकसान तय है.

Amitesh

समाजवादी पार्टी के भीतर बाप-बेटे की लड़ाई में पार्टी का भारी नुकसान तय है. आर-पार की इस लड़ाई के बाद पार्टी के भीतर ऐसे हालात बन गए हैं, कि अगर समाजवादी पार्टी एकजुट होकर चुनाव लड़ती भी है, तो 404 सदस्यीय विधानसभा में 75 से ज्यादा सीटें लाना मुश्किल दिख रहा है.

अगर अखिलेश यादव अलग होकर नई पार्टी के बैनर तले चुनाव मैदान में उतरते हैं, तो उन्हें 125 के आस-पास सीटें मिल सकती हैं.


क्योंकि लोगों की नजर में अखिलेश की छवि मुलायम से कहीं ज्यादा अच्छी है.

परिवार में झगड़े के पूरे एपिसोड ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा की है.

उनकी छवि एक ऐसे बेचारे मुख्यमंत्री की हो गई है, जिन्हें जानबूझकर काम नहीं करने दिया जा रहा है.

पार्टी के भीतर की तमाम खींचतान के बावजूद अखिलेश यूपी के भीतर जाति-समुदाय के बंधन को तोड़कर लोकप्रिय बने हुए हैं.

अगर अखिलेश यादव के नेतृत्व में नई पार्टी कांग्रेस, आरएलडी, जेडीयू और दूसरे छोटे दलों के साथ एक महागठबंधन बना कर चुनाव मैदान में उतरती है, तो फिर बिहार की तरह यहां भी चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिल सकते हैं.

यूपी में समाजवादी पार्टी की फूट का फायदा उठाने में जुटी बीजेपी या बीएसपी के लिए ये महागठबंधन भारी पड़ सकता है. मुलायम की समाजवादी पार्टी का तो और भी बुरा हश्र होगा.

हवा का रुख क्या है

ये पूरा विश्लेषण यूपी के जिला स्तर के कई पत्रकारों और राजनतिक कार्यकर्ताओं से बातचीत के बाद दिया गया है. स्थानीय स्तर के ये लोग बड़े-बड़े सैफोलॉजिस्ट से बेहतर आकलन करते हैं. इनसे सही मायनों में हवा के रुख की जानकारी मिलती है.

लेकिन सवाल है कि अगर अखिलेश यादव महागठबंधन बनाने में सफल नहीं हो पाए और अकेले चुनाव मैदान में उतरने की नौबत आ गई तो क्या होगा?

फिर, पांच कोणीय मुकाबले में मायावती सत्ता के करीब होंगी और अखिलेश यादव 2017 की विधानसभा में मुख्य विपक्षी नेता की भूमिका में होंगे.

इन सबके बीच समाजवादी पार्टी के भीतर के लेटर बम के दौर को देखें, तो साफ हो जाता है कि पार्टी किस दिशा में बढ़ रही है.

अखिलेश खेमे के चाणक्य और मुलायम सिंह यादव के चेचेरे भाई रामगोपाल यादव ने सागर किनारे मुंबई से सुबह-सुबह जो पत्र लिखा, उस पत्र से भी साफ हो गया कि ये लड़ाई किस दिशा में जा रही है.

अखिलेश के घर हुई बैठक के बाद चाचा शिवपाल यादव और उनके समर्थक मंत्रियों को हटाया गया, तो ये साफ हो गया कि अब पीछे हटने की गुंजाइश ना के बराबर है. बस, एक औपचारिक ऐलान भर रह गया है.

वैसे समाजवादी राजनीति में टूटने की प्रक्रिया काफी लंबी है. कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रान्ति दल, भारतीय लोकदल, दलित मजदूर किसान पार्टी, लोकदल, लोकदल (ए), लोकदल (बी), लोकदल (सी), राष्ट्रीय लोकदल, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल-यू, जनता दल-एस, समाजवादी पार्टी, ना जाने ये फेहरिस्त कहां जाकर रुकेगी.

अब देखने वाली बात है कि समाजवादी पार्टी क्या एसपी (मुलायम) और एसपी (अखिलेश) के नाम से दो दलों में बंट जाएगी और ऐसा कब तक होगा.

अगले 24 घंटे समाजवादी पार्टी के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण होने वाले हैं.