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इतना बौद्धिक दिवालियापन क्यों है भाई?

चोर दरवाजे से इतिहास बदलने की कोशिश हमारे समय पर आए एक बड़े संकट की कहानी बयान करती है.

Rakesh Kayasth

इस गंभीर सवाल पर चर्चा शुरू करने से पहले आपको बहुत संक्षेप में इससे जुड़ी एक खबर बताना चाहूंगा. महाराष्ट्र सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में बदलाव करते हुए इतिहास की किताबों से कई चैप्टर हटा दिए हैं. देश के प्रमुख अख़बारों में छपी खबरों को आधार मानें तो महाराष्ट्र के स्कूलों में अब यह नहीं बताया जाएगा कि कुतुब मीनार, ताजमहल या लालकिला जैसी इमारतें किन शासकों ने बनवाई थीं.

भारत के पिछले एक हजार साल के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण शासक अकबर के बारे में सिर्फ तीन लाइनों में बताया जाएगा. रजिया सुल्तान और शेरशाह सूरी जैसे शासको के जिक्र भी कोर्स की किताब से हटा दिये गए हैं. इतना ही नहीं इतिहास की किताबों में इस बात का उल्लेख भी नहीं होगा कि रुपए को अफगान शासकों ने मुद्रा के रूप में स्थापित किया था.


फेरबदल वाली यह लिस्ट बहुत लंबी है. ऐसा सिर्फ महाराष्ट्र में नहीं हुआ बल्कि बीजेपी के शासन वाले तमाम राज्यों में हो रहा है. इतिहास को मनचाहे ढंग से बदलने, मिटाने, तोड़ने और मरोड़ने की होड़ लगी है. राजस्थान के इतिहास की किताबों में महाराणा प्रताप को हल्दीघाटी युद्ध का विजेता बताया जाना ऐसे अनेक उदाहरणों में एक है.

किसी भी शिक्षित और सभ्य समाज के लिए यह चिंता की एक बड़ी वजह होनी चाहिए. शिक्षा की बुनियाद ही अगर झूठे तथ्यों पर आधारित होगी तो फिर समाज कैसा बनेगा? केंद्र और राज्य सरकारों से यह पूछा जाना चाहिए कि इतिहास को लेकर उनका नजरिया क्या है?

आखिर इतिहास का क्या है?

प्रतीकात्मक तस्वीर

क्या सरकार इतिहास को टोकरी में पड़े अमरूद मानती है, जिन्हे अपनी मर्जी से छांटकर और मोलभाव करके खरीदा जा सकता है? क्या इतिहास कनपटी के पास के सफेद होते कुछ बाल हैं, जिन्हे डाई लगाकर काला किया जा सकता है? क्या इतिहास आपके मोबाइल का कॉलर ट्यून या रिंगटोन है, जिन्हे आप अपनी मर्जी से कस्टमाइज कर सकते हैं, ताकि आप जैसा सुनना-सुनाना चाहें, ठीक वैसा ही सुनाई दे?

जाहिर है, इतिहास इनमें से कुछ भी नहीं है. इतिहास समय के साथ घटित होनेवाली घटनाओं का सिलसिला है, जिसे तथ्यों की कसौटी पर कसने के बाद स्वीकार किया जाता है. तथ्य किसी की मर्जी या रुचि के हिसाब से ना तो तय हो सकते हैं और ना बदले जा सकते हैं. ऐसी कोशिश देश और समाज ही नहीं बल्कि मानवता के प्रति भी एक अपराध है. लेकिन तथ्यों को बदलने की कोशिशें लगातार चल रही हैं.

पसंद आए वही इतिहास, बाकी बकवास

सवाल ये है कि आखिर देश की सरकारें गुजरे हुए कल से इतना क्यों घबरा रही हैं? क्या बीजेपी का वोटर उससे ये पूछने जाएगा कि कुतुब मीनार इल्तुतमिश ने क्यों बनवाई थी, किसी हिंदू राजा ने क्यों नहीं बनवाया था? क्या अकबर ने हिंदुओ पर लगा जजिया कर हटवा दिया था, यह बता देने से बीजेपी के वोट कम हो जाएंगे? अगर नहीं तो फिर बीजेपी की सरकारें इतनी कमअक्ली और इतना छोटा दिल क्यों दिखा रही हैं?

इस बौद्धिक दिवालिएपन के पक्ष में एक बड़ी मासूम सी दलील दी जाती है. कहा यह जाता है कि इतिहास लेखन अब तक अंग्रेज और वामपंथी इतिहासकारों के हाथ में था, इसलिए उन्होने सबकुछ तोड़-मरोड़ दिया, अब ठीक किया जा रहा है. क्या आरएसएस के आने से पहले तक देश के सारे हिंदु अनपढ़ थे? क्या उनमें इतनी समझ नहीं थी कि वे ऐतिहासिक साक्ष्यों को प्रमाणिकता की कसौटी पर कस सके?

अगर सचमुच ऐसा था तो फिर आप किस मुंह से विश्वगुरु होने का ढोल पीटते हैं? स्पष्ट है कि संघ परिवार की दलीले पिलपिली और अंतर्विरोधों से भरी हुई हैं. इतिहास लेखन की दक्षिणपंथी धारा इस देश में हमेशा से रही है और कांग्रेस शासन के दौरान भी कोर्स की किताबों में इस धारा को पर्याप्त जगह मिली है.

इतिहास बदलने का राजनीतिक एजेंडा

दरअसल इतिहास को मनचाही शक्ल देने की कोशिश आरएसएस के राजनीतिक मिशन का हिस्सा है. आरएसएस भी मुस्लिम लीग की तरह द्विराष्ट्रवाद की थ्योरी में यकीन रखता है. मुहम्मद अली जिन्ना की तरह संघ के नेता भी ये मानते रहे हैं कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग संस्कृतियां और दो राष्ट्रीयताएं हैं, इनमें कुछ भी साझा नहीं हो सकता.

लेकिन मध्यकालीन इतिहास के अनगिनत तथ्य इस बात के साफ प्रमाण देते हैं कि उपासना पद्धतियों के अलग होने के बावजूद इन दोनो संस्कृतियों में बहुत कुछ साझा रहा है. नृत्य शैलियों से लेकर संगीत और साहित्य तक अनगिनत प्राचीन भारतीय कलाएं मुसलमानों के शासन काल में ना सिर्फ बची रहीं बल्कि लगातार फली-फूली.

भारतीय राष्ट्रीयता की प्रतीक हिंदी को अमीर खुसरो ने स्वीकार्य भाषा बनाया तो उर्दू के विकास में ना जितने हिंदू शायरों ने भूमिका निभाई. जिन मुगलों से नफरत के आधार पर आज मुगलसराय स्टेशन का नाम बदला जा रहा है, उन्ही मुगलों के शासनकाल में सबसे ज्यादा मंदिर बने, यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है.

लेकिन संघ को इन सच्चाइयों से एतराज है. उसे लगता है कि ये तथ्य मुसलमानों के खिलाफ हिंदू आवाम की गोलबंदी की कोशिशों को कमज़ोर करते हैं. जाहिर है, इन तथ्यों को चुन-चुनकर मिटाने की कोशिश की जा रही है.

वैचारिक विरोधियों को निशाना बनाने की रणनीति

चलिए थोड़ी देर के लिए बीजेपी और आरएसएस के नजरिए से सोचते हैं. पूछा जाता है कि क्या बौद्धिकता पर सिर्फ एक तरह की विचारधारा के लोगो का एकाधिकार होना चाहिए? क्या अगर सरकार को लगता है कि इतिहास लेखन में कुछ गलतियां हुई हैं, तो उन्हे सुधारा भी नहीं जा सकता? दोनो दलीलें स्वीकार किए जाने लायक हैं.

बौद्धिकता पर किसी का एकाधिकार नहीं हो सकता. लेकिन संघ परिवार ने कितने ऐसे बौद्धिक बनाए हैं, जो वामपंथी या दूसरे इतिहासकारों की बातों का तर्क और तथ्यों के आधार पर जवाब दे सकें? पूरा संघी इतिहास इस बात की अनगिनत गवाहियां देता है.

पाकिस्तान दौर पर बीजेपी के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने जिन्ना के एक भाषण का जिक्र किया. वह एक ऐतिहासिक तथ्य था जो आडवाणी ने पाकिस्तानी आवाम को याद दिलाया था, अपनी ओर से उन्होने भाषण की कोई व्याख्या नहीं की थी. लेकिन नतीजा क्या हुआ? आरएसएस ने आडवाणी को इस्तीफा देने पर मजबूर कर दिया.

यही हाल अरुण शौरी का हुआ. अरुण शौरी वे व्यक्ति थे, जिन्होने अंग्रेजी मीडिया में बरसो तक संघ के वैचारिक पक्ष को मजबूती से रखा. लेकिन उनकी राय जरा सी अलग हुई तो अपनी ही पार्टी के लोगों ने उन पर हमले शुरू कर दिए और उन्हें लगातार मानसिक रूप से प्रताड़ित किया, जिसका जिक्र शौरी कई बार कर चुके हैं.

इतिहास की व्हाट्स एप फैक्टरी

ऐसे में आरएसएस और उसकी राजनीतिक इकाई बीजेपी से इस बात की उम्मीद करना बेकार है कि वे इतिहास लेकर इस देश में किसी एकेडमिक विमर्श को आगे बढ़ाएंगे. वे किताबों में बदलाव के लिए चोर दरवाज़े का सहारा लेंगे. ऐतिहासिक तथ्यों को अपनी सहूलियत के हिसाब से तोड़-मरोड़कर ऐसे करोड़ों लोगो तक पहुंचाएंगे जिनके लिए सूचना का साधन व्हाट्स एप है.

देश के प्रति हो रहे इस भयंकर अपराध पर जो भी ऐतराज जताएगा उसके नाम के साथ देशद्रोही का टैग चिपकाया जाएगा. रोमिला थापर से लेकर इरफान हबीब तक ना जाने के कितने लोग इस आक्रामक कैंपेन का शिकार हुए हैं.

जब इतिहास गलत पढ़ाया जाता है तो कौमें दिशाभ्रम का शिकार होती हैं. नतीजा वही होता है, जो अफगानिस्तान के बामियान में हुआ था. मानव इतिहास की बेशकीमती धरोहर बामियान की बौद्ध मूर्तियों को तालिबानियो ने मोर्टार से उड़ा दिया. आखिर इतना बड़ा पाप तालिबान ने क्यों किया?

जवाब बहुत साफ है, उन्हें एक महजब को श्रेष्ठ मानते और बाकियों को नीचा देखने की तालीम मिली थी. उन्हें गलत इतिहास पढ़ाया गया था. हम अपने बच्चो को किस तरह का इतिहास पढ़ाना चाहते हैं, ये हमें तय करना होगा.