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कभी सुना है प्लास्टिक की बोतलों से भी बन सकता है 'आशियाना'

लोगों की इको फ्रेंडली खूबसूरत आशियाना देने का काम कर रहा है बैंबू हाउस इंडिया

Subhesh Sharma

मोदी सरकार ने भले ही स्वच्छता भारत अभियान की शुरुआत 2 अक्टूबर, 2014 से की हो. लेकिन प्रशांत और अरुणा ने स्वच्छता की मुहिम 2008 में बैंबू हाउस इंडिया के साथ ही कर दी थी. उनकी टीम ने शहर से गंदगी हटाने और शहरों को प्लास्टिक मुक्त बनाने का एक बेहद ही कमाल का नुस्खा ढूंढ निकाला है. लोग अक्सर एक बार इस्तेमाल करने के बाद प्लास्टिक की बोतलें फेंक देते हैं और इसकी रिसाइक्लिंग में भी काफी समय लगता है. लेकिन इसका इस्तेमाल घर बनाने में भी हो सकता है ऐसा शायद ही किसी ने कभी सोचा होगा.

हैदराबाद के इस दंपत्ति ने कभी नहीं सोचा था कि वो एक दिन लोगों के लिए ऐसे आशियाने खड़े करेंगे, जिनके निर्माण में लकड़ी, ईंट, सीमेंट या फिर स्टील की बजाए बैंबू और प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल किया जाएगा. बैंबू हाउस के ये इको-फ्रेंडली घर, फर्नीचर, बस शेल्टर, वॉटर टैंकर और गार्डन फेंसिंग बहुत से लोगों को रोजगार मुहैया कराने में भी अहम योगदान अदा करा रहे हैं.


हाल ही में हैदराबाद के स्वरूप नगर के निवासियों ने एक बस शेल्टर की कमी की बात कही थी. प्रशांत और अरुणा भी इसी कॉलोनी के रहने वाले हैं. लोगों की जरूरत को समझते हुए बैंबू हाउस ने ये चैलेंज लिया और इसे बखूबी पूरा कर के भी दिखाया. इसके लिए बैंबू हाउस की टीम ने एक शानदार प्लान बनाया कि वो प्लास्टिक की बोतलों और बैंबू की मदद से ये शेल्टर बनाएंगे और उनका ये कंस्ट्रक्शन पूरी तरह से इको-फ्रेंडली होगा. बैंबू हाउस इंडिया के फाउंडर प्रशांत का कहना है कि सिर्फ खड़े रहने के लिए 3.5 से 4 लाख रुपए क्यों खर्च करने हैं, जब ये काम प्लास्टिक की बोतलों की मदद से बेहद कम पैसे में हो सकता है.

उनकी टीम ने 8x4 का बस शेल्टर बनाने के लिए प्लास्टिक की 1000 बोतलें इस्तेमाल कीं. शेल्टर का फ्रेम बनाने के लिए बैंबू बीम्स का इस्तेमाल किया और रस्सी की मदद से बैंबू और प्लास्टिक की बोतलों को जोड़ा गया. साथ ही एयर वेंटिलेशन के लिए बोतलों के बीच में पर्याप्त गैप भी दिया गया. हाल ही में निगम कमिश्नर ने कंस्ट्रक्शन देखने के लिए कॉलोनी का दौरा किया. जिसके बाद वो बैंबू हाउस के इस काम को देख कर दंग रह गए. वो टीम के इस काम से बेहद खुश हुए और उन्होंने शहर की कई अन्य कॉलोनियों में इस तरह के निर्माण की इच्छा जताई.

कहां से हुई शुरुआत

प्रशांत बताते हैं कि मैंने अरुणा से 2006 में शादी की थी और यहीं से ये इनोवेटिव आइडिया भी मिला. वो (अरुणा) एक इको-फ्रेंडली सोफा खरीदना चाहती थी और इसके लिए हमने पूरा हैदराबाद तलाश लिया. लेकिन फिर भी हमें ऐसा सोफा नहीं मिला. फिर हमने गूगल की मदद ली और एक महीने की रिसर्च के बाद हम ऐसा सोफा ढूंढते-ढूंढते इंडो-बांग्लादेश बॉर्डर पहुंच गए. त्रिपुरा के कतलामारा गांव में हमने जो देखा उसे देख हमारी आंखे खुली की खुली रह गईं. हमने देखा कि पूरा गांव बैंबू से भरा हुआ है और यहां रहने वाले लोगों द्वारा बैंबू के इस्तेमाल के अनोखे ढंग को देखने के बाद ही हमें बैंबू के घर बनाने और यहां के स्थानीय लोगों की मदद करने का आयडिया आया.

झेलना पड़ा 60 लाख का नुकसान

प्रशांत ने कहा कि बैंबू को नॉर्थ ईस्ट से हैदराबाद लाना बेहद चुनौतीपूर्ण था. इसके लिए हमें इंडियन फॉरेस्ट एक्ट 1927 का सामना करना पड़ा, जोकि काफी पेचीदा है. रूल्स काफी बेतुके थे और हमें तीन राज्यों के एक्ट्स का सामना करना पड़ा. आयडिया दिमाग में था लेकिन फिर भी तीन सालों तक हमें कोई काम नहीं मिला. लोग बैंबू के घर बनाने में इंट्रेस्टेड नहीं थे. जिस कारण 2010 तक कोई काम नहीं हो सका. 2012 तक हमें करीब 60 लाख रुपए का नुकसान हुआ और हमारे सारे रिसोर्सेज ट्रेवलिंग और बैंबू की ट्रांसपोर्टिंग में खत्म हो चुके थे. प्रशांत एक कमर्शियल वेंचर के जरिए अच्छा पैसा कमा रहे थे, जबकि अरुणा पी.एचडी करने की तैयारी कर रही थीं. ऐसे में बैंबू हाउस का उनका ये आयडिया घर वालों को भी पसंद नहीं आया और उन लोगों ने भी इस आयडिया को छोड़ देने को कहा.

बैंबू से लेकर प्लास्टिक बोतलों तक का गजब इस्तेमाल

बैंबू के घर बनाने के बाद इस कपल ने कुछ ऑफ बीट करने का मन बनाया और कंस्ट्रक्शन के काम में प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल करने का फैसला किया. दोनों के लिए ये काफी चैलेंजिंग था, क्योंकि इसके बारे में उन्हें ज्यादा जानकारी नहीं थी. प्रशांत ने बताया कि रूरल एरियाज में हाउसिंग का प्रॉब्लम काफी ज्यादा है. हर साल पर्मानेंट घर बनाना मुश्किल होता है इसलिए हम इनको एक ड्यूरेबल घर देना चाहते थे और इनकी मुश्किलें दूर करना चाहते थे.

इसके चलते हमने 2015 में प्लास्टिक की बोतल से घर बनाने का सोचा. हमने 15x15 का पूरा घर प्लास्टिक की बोतल से बनाया. दीवार में प्लास्टिक की बोतलें टिकी रहें, इसके लिए उन्होंने चिकन मेश का इस्तेमाल किया. जबकि प्लास्टर बनाने के लिए मिट्टी और थोड़े सीमेंट का उपयोग किया. बोतले पिचक न जाए इसके लिए उन्होंने उसमें मिट्टी भरी. इस सबके बाद आखिरकार इस टीम ने 15x15 की एक दीवार खड़ी की, जिसमें निर्माण में करीब 7,000 बोतलें लगीं.

बैंबू हाउस की खासियत

इसकी ड्यूरेबिलिटी 30 साल है.

- तीन डिग्री का टेम्परेचर ड्रॉप रहता है.

- फायर प्रूफ एंड वॉटर प्रूफ है.

- पर्यावरण के लिए फायदेमंद है, क्योंकि बैंबू एक तरह की घांस है, जिसे जितना काटो वो उतना उगता है.

क्या है टारगेट

प्रशांत ने बताय कि आज हमारा टारगेट पेंट हाउसेस हैं. लोगों को घर की खाली पड़ी छत पर कंस्ट्रक्शन कराने के लिए काफी सीमेंट-कंक्रीट की जरूरत होती है, जोकि काफी मंहगा पड़ता है. इसके बाद नगर निगम का अप्रूवल लेना पड़ता है. लेकिन बैंबू हाउस बनाने में इन दोनों की ही जरूरत नहीं पड़ती. इसकी कीमत भी काफी कम होती है. बैंबू हाउस का प्राइस एक लाख रुपए से शुरू होता है. हमारा 2.5 लाख रुपए का एक स्टैंडर्ड पैकेज है, जिसमें हम बेडरूम, वॉशरूम, किचन, स्टोर रूम और हाल बना कर देते हैं. ज्यादातर लोग यही लेते हैं.

आगे का प्लान

प्रशांत ने बताया कि अभी हम पेट बोतल का फर्नीचर बना रहे हैं, जोकि हम एक सरकारी स्कूल को देंगे. यहां सरकारी स्कूल में सीटिंग अरेंजमेंट नहीं है. इसके अलावा हम टायर और ड्रम से फर्नीचर बना रहे हैं.

उन्होंने कहा, यही नहीं हम चिप्स और कुरकुरे के पैकेट से फर्नीचर बना रहे हैं. इसका इस्तेमाल हम रस्सी बनाने के लिए कर रहे हैं.