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अवसाद: एक बीमारी जो सफल और ताक़तवर ज़िंदगियों को भी हरा सकती है!

दुनिया भर में हर 40वें सेकेंड पर एक इंसान की मौत आत्महत्या के कारण हो रही है, इनमें वो भी शामिल हैं जो अपने क्षेत्र में न सिर्फ़ सफल बल्कि मार्गदर्शक भी रहे हैं

Swati Arjun

मंगलवार सुबह जब पूरा देश बार-बार टीवी और अन्य समाचार माध्यमों की तरफ़ नज़रें गड़ाए, अस्पताल में भर्ती पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के मेडिकल बुलेटिन के जारी होने का इंतज़ार कर रहा था, तब ठीक उसी वक्त़ एक चौंकाने वाली ख़बर, टीवी स्क्रीन की ब्रेकिंग न्यूज़ की पट्टियों पर नज़र आने लगी.  जिसने लोगों को बेचैन कर दिया. ये ख़बर थी मध्प्रदेश से संबंध रखने वाले मराठा आध्यात्मिक गुरू भय्यू जी महाराज की आत्महत्या की.

भय्यू जी महाराज ने इंदौर के अपने घर पर ही लाइसेंसी रिवॉलवर से खुद को कनपटी में गोली मारकर आत्महत्या कर ली. लेकिन मौत से कुछ मिनटों पहले तक वे न सिर्फ सोशल मीडिया पर एक्टिव थे, बल्कि एक के बाद एक कई सामाजिक और राजनीतिक पोस्ट भी कर रहे थे. जो न सिर्फ़ अटपटा है बल्कि परेशान करने वाला भी है. एक ज़मींदार परिवार से संबंध रखने वाले भय्यू जी महाराज की गिनती मौजूदा समय में देश के प्रभुत्वशाली व्यक्तित्वों में से एक की थी. वे धर्म, अध्यात्म, समाजसेवा, राजनीति, ग्लैमर वर्ल्ड, सरकार से लेकर नौकरशाही तक हर जगह अपनी मज़बूत पकड़ बनाए हुए थे.


उनका पीएम मोदी से लेकर लता मंगेशकर, कांग्रेस से लेकर बीजेपी और एनसीपी तक दबदबा कायम था, इतना कि उन्हें राष्ट्र-संत की उपाधि भी दी गई थी. मध्यप्रदेश की शिवराज सरकार ने कुछ महीनों पहले ही उन्हें राज्यमंत्री का दर्जा देने का ऐलान किया था जिसे उन्होंने मना कर दिया था. उन्होंने साल 2016 में सार्वजनिक जीवन से संन्यास लेने की घोषणा कर दी थी.

निजी जीवन में तीन साल पहले अपनी पहली पत्नी की मृत्यु के बाद पिछले साल उन्होंने डॉ आयुषी से दूसरी शादी की थी और जिससे उन्हें एक तीन महीने की बेटी भी है. भय्यू महाराज की पूर्व पत्नी माधवी से भी एक बेटी है, जिसका नाम कुहू है. कुहू की उम्र लगभग 18 साल है और ऐसा कहा जा रहा है कि कुहू और आयुषी के बीच के विवाद के कारण ही भय्यू जी महाराज मानसिक तौर पर काफी परेशान थे. वे दोनों के बीच की तक़रार को सुलझा पाने में असमर्थ होने के कारण मानसिक अवसाद में चले गए और जिसका अंत इस आत्मघाती कदम के साथ हुआ. इसकी तस्दीक पुलिस को मिली उनकी सुसाइड नोट से भी पता चलता है जिसमें उन्होंने लिखा है कि, 'मैं घर के कलह से थक चुका हूं, इन मसलों की देखरेख के लिए किसी और का होना ज़रूरी है, मैं ये सब छोड़कर जा रहा हूं.'

भय्यू जी महाराज के घर से बरामद हुआ सुसाइड नोट

ज़रा सोचकर देखिए एक व्यक्ति जो राष्ट्रीय मसलों को सुलझा रहा हो, नेताओं और सरकारों के बीच मध्यस्थता कर रहा हो, अन्ना का उपवास तुड़वा रहा हो. भला ऐसी कौन सी मजबूरी या यूं कहें कि मानसिक अवस्था थी जिसे झेल पाने में वो खुद को टूटा हुआ और असहाय महसूस कर रहा था? क्या और क्यों होता है ये डिप्रेशन. और इतना शक्तिशाली कैसे कि वो सफलता और ताक़त के शिखर पर बैठे व्यक्ति को भी इतना अकेला और असहाय कर देता है कि आदमी बस अपनी जान ले बैठता है.

अभी कुछ ही दिन हुए जब 29 मई को यूपी एटीएस के अफसर राजेश साहनी का शव उनके दफ्तर में मिला था, ऐसा कहा जा रहा था कि वे काम को लेकर दबाव में थे और ठीक एक महीने पहले मुंबई एसटीएफ के सुपर-कॉप कहे जाने वाले जांबाज़ अफ़सर हिमांशु रॉय ने भी खुद को गोली मार ली थी. वे दो साल से कैंसर से पीड़ित थे और इलाज से थक चुके थे. कैंसर के इलाज के दौरान हिमांशु का ट्रांसफर एक कम महत्व वाले विभाग में भी कर दिया गया था जिससे वे दुखी थे. ये तीनों मौतें पिछले एक महीने में हुई हैं.

केट स्पेड और एंथनी बोर्देन ने भी आत्महत्या का रास्ता चुना

पश्चिम की तरफ़ देखें तो वहां भी कमोबेश हाल ऐसा ही है पिछले एक हफ्त़े में एक के बाद एक दो ऐसी शख़्सियतों ने मौत को गले लगाया है जो अपने-अपने क्षेत्र में न सिर्फ सफल थे बल्कि सफलता के प्रतिमान के तौर पर जाने जाते थे. इनमें सिलेब डिज़ाइनर केट स्पेड और शेफ़ एंथनी बोर्देन की असामायिक और दुखद आत्महत्या है. एंथनी अपने ट्रैवल और फूड शो के साथ पिछले 17 सालों में 100 से भी ज़्यादा देशों की यात्रा कर चुके थे. अगर कहें कि उनकी ज़िंदगी का सबसे बड़ा हिस्सा सड़क पर यात्रा करते हुए बीता है तो ये ग़लत नहीं होगा. वे अपनी बेटी और गर्लफ्रेंड से बहुत प्यार करते थे. उनके मुताबिक उन्हें पिता का रोल निभाना बहुत पसंद था. लेकिन, साल के 365 में से 250 दिन सड़क पर बंजारों की तरह घूमते हुए यह आसान नहीं होता. उनके नज़दीकी दोस्तों के अनुसार- किसी को इस बात का एहसास तक नहीं था कि वे डिप्रेस्ड हैं, पर मरने से पहले वो हल्के मूड में थे. उनके पब्लिसिस्ट करेन रेनॉल्ड्स के मुताबिक मौत को गले लगाने से पहले वे उन्हें लगातार मोबाइल पर मेसेज और ईमेल कर रहे थे, जो आमतौर पर वे नहीं करते थे. ये एक असामान्य बर्ताव था उनका.

5 जून को सेलिब्रिटी फैशन एसिसरी डिज़ाइनर केट स्पेड ने भी अपने घर में आत्महत्या कर ली थी. उनके दोस्तों के मुताबिक उनके जीवन में अपनी कुछ असुरक्षाएं थीं, कुछ डर था, कुछ दुख़ और कुछ निराशा थी. जिसका वो मज़बूती से सामना कर रहीं थीं लेकिन उन्हें ये पता नहीं था कि वे इस हद तक जा सकतीं हैं. केट की मौत के बाद उनके पूर्व पति ने बताया कि वे दोनों 10 महीने पहले अलग हो चुके थे और केट पिछले कई सालों से डिप्रेशन और एंजाईटी के लिए डॉक्टर की मदद ले रहीं थीं. केट के पिता ने तो यहां तक कहा कि अगर उनकी बेटी की मौत के बाद लोग मेंटल इलनेस की समस्या के बारे में बातें करना शुरू करते हैं तो इससे उनकी मरहूम बेटी को शांति मिलेगी.

डिप्रेशन के शिकारों में दीपिका पादुकोण से लेकर शाहरुख खान

भारत में भी ये लिस्ट लंबी है जहां जाने-माने और सेलिब्रिटी आईकॉन ने पिछले कुछ समय में अपनी इस समस्या के बारे में खुलकर बात की है. इनमें दीपिका पादुकोण, करण जौहर, दंगल गर्ल ज़ायरा वसीम, अनुष्का शर्मा, शाहरुख खान, हनी सिंह और मनीषा कोईराला जैसे सेलिब्रिटीज़ शामिल हैं, जिन्होंने अपनी इस बीमारी के लिए न सिर्फ़ मेडिकल हेल्प ली बल्कि खुलकर उसपर बात भी की है. डब्लूएचओ यानि वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाईज़ेशन के अनुसार, 'दुनिया भर में हर 40वें सेकेंड पर एक इंसान की मौत आत्महत्या के कारण हो रही है, इनमें वो भी शामिल हैं जो अपने क्षेत्र में न सिर्फ़ सफल बल्कि मार्गदर्शक भी रहे हैं, दुनिया की नज़रों में वे सबसे ज्य़ादा संपन्न और खुश व्यक्ति होते हैं लेकिन फिर भी वे हारकर अपनी जान ले लेते हैं.”

दीपिका पादुकोण पूछती हैं कि हम कभी भी ये सवाल नहीं करते हैं कि दुनिया के सबसे खुशहाल या सफल आदमी का पांव कैसे टूट गया. या फिर उसका एक्सिडेंट कैसे हो गया? ठीक जैसे अन्य कोई बीमारी या हादसे इंसानों में फर्क़ नहीं करते वैसे ही डिप्रेशन या मेंटल इलनेस या मानसिक अवसाद भी किसी व्यक्ति की सफलता, पैसा और पहुंच को देखकर नहीं आता. अगर किसी को लगता है कि उसकी भौतिक समृद्धि उसके मानसिक अवसादों को कंट्रोल कर लेगी तो वो गलत है. असल में अवसाद वो बीमारी है जो हमारे जीवन को अपने आगोश में ले लेती है, फिर हम वही करते हैं जो वो हमें कहती है. इंसान एक तरह से इस बीमारी या डिप्रेशन के हाथों में बस एक खिलौना भर रह जाता और वही करता है जो वो हमसे करवाती है.

इसलिए, अपने आपको इससे बचाने के लिए दूसरों के सामने खुलने की, अपनी बात कहने की और अपनी तकलीफ़ बयां करने की कोशिश करें और दूसरों को बचाने के लिए उन्हें ये सब कुछ करने के लिए प्रेरित करें. तभी हम खुद भी जी पाएंगे और औरों को भी जीने का हौंसला देने में मदद कर पाएंगे.