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जहां सोच वहां शौचालय: एक ऐसी महिला जिसने बदली लोगों की जिंदगी

शौचालय बनवाने की पहल की शुरूआत अपने घर से ही की. उनकी कहानी भी हाल ही में आई फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसी ही है

mohini Bhadoria

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में स्वच्छ भारत अभियान का मिशन शुरू किया था. इसके बाद से लाखों लोगों ने इसे फॉलो किया और कुछ ने अनदेखा कर दिया. अभी भी देश में बहुत सी जगह शौचालय नहीं है और लोग खुले में शौच करने पर मजबूर हैं. लेकिन समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जिनके मन में समाज को बदलने का जज्बा होता है. ऐसी ही एक कहानी है छोटे से गांव से दिल्ली जैसे बड़े शहर में अपने कदम जमाने वाली रामसुखी देवी की. जिन्होंने अकेले दम पर अपने मोहल्ले में शौचालय बनाया.

उन्होंने शौचालय बनवाने की पहल की शुरूआत अपने घर से ही की. उनकी कहानी भी हाल ही में आई फिल्म टॉयलेट एक प्रेम कथा जैसी ही है. जिसमें एक महिला के घर में शौचालय ना होने पर जमकर विरोध करती है. हालांकि सालों पहले शुरू हुई रामसुखी देवी की कहानी कोई फिल्म नहीं है.


1985 में उत्तर प्रदेश की रहने वाली रामसुखी अपने पति शिवनंदन सिंह के साथ दिल्ली शिफ्ट हुईं. लेकिन उन्होंने देखा की उनके घर में शौचालय नही था. और तो और आस-पास के किसी घर में भी शौचालय नहीं था. उन्होंने पाया कि सभी महिलाएं भैंस के खाली तबेले में शौच करने जाती हैं. शहर में नई आई हुई रामसुखी को भी ये सब करीब 10 दिनों तक झेलना पड़ा. लेकिन गांव में पली बड़ी 5वीं पास होने के बावजूद उनकी सोच किसी शिक्षित इंसान से कम नहीं है.

उन्होंने अपना बचपन यूपी के कन्नौज जिले में बिताया. घर के हालात खराब होने की वजह से वो केवल 5वीं तक ही पढ़ाई कर पाईं. उन्होंने बताया की उनके घर में बचपन से ही शौचालय था. इसलिए उन्हें शौच के लिए कभी बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ी. लेकिन जब वो दिल्ली आईं तो घर में शौचालय ना होने पर उन्होंने आपत्ती जताई और कुछ दिन बाद अपने पति की मदद से घर में खुद अपने हाथों से शौचालय बनाया, जिसमें उनके पति ने उनका काफी सहयोग किया था. उनके इस प्रयास को देख आस पड़ोस के लोगों पर भी प्रभाव पड़ा. मोहल्ले के लोगों ने भी तबेले में ना जाकर अपने घरों में शौचालय बनवाने के बारे में सोचना शुरू किया.

किन दिक्कतों का सामना करना पड़ा

रामसुखी बताती हैं कि जब घर में शौचालय नहीं था. तो उन्हें बाहर तबेले में जाने में बहुत शर्म आती थी. वहीं डर भी रहता था कि तबेले में कोई आदमी ना घुस जाए. उन्हें शौच पर जाने के लिए दिन छुपने का इंतजार करना पड़ता था. तबेले में सभी महिलाएं शौच करती थी तो उन्हें बीमार होने का डर बहुत सताता था.

ये सब देखते हुए उन्होंने खुद से शौचालय बनाने का फैसला किया और 10 दिन बाद अपने घर में कुछ ईटें लेकर शौचालय बना डाला.

वहीं वो बताती हैं कि एक दिन ऐसा हुआ कि किसी महिला की तबियत बहुत खराब हो गई थी. बीमारी और न बढ़े इसलिए डॉक्टर ने उसे खुले में शौच करने से सख्त मना कर दिया था. इस कारण मैंने उस महिला को अपने घर में कुछ दिन शौच करने की इजाजत दी.

उन्होंने बताया कि शौचालय बनाने की प्रेरणा मुझे किसी से नहीं मिली और ना ही उस वक्त स्वच्छ भारत जैसी कोई योजना शुरू हुई थी. योजना शुरू होने का इंतजार भी क्यों करती, क्योंकि ये मेरी खुद की जरूरत थी. फिर ख्याल आया कि वो ऐसे खुले में शौच नहीं कर सकती. इसलिए कुछ दिन पहले घर में हुई मरम्मत से बची हुई कुछ ईटें इस्तेमाल कर खुद शौचालय बनाया.

 पड़ोस के लोगों को मिली प्रेरणा

हमने सावित्री नाम की एक बुजुर्ग महिला से बात की, जो 1985 में रामसुखी के पड़ोस में रहा करती थी. उन्होंने बताया कि रामसुखी बड़े ही उच विचारों वाली हैं. उन्हें गलत चीजें बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं थी. उनके शौचालय बनाने के बाद आस पड़ोस की महिलाओं ने उन्हीं के घर जाना शुरू कर दिया. जिस पर रामसुखी देवी खुद आपत्ती नहीं जता सकती थी. फिर कई महिलाओं को इकट्ठा कर रामसुखी ने उन्हें समझाया कि ये हर घर की जरूरत है, कब तक मेरे घर से काम चलाओगी. जल्द से जल्द अपने घरों में टॉयलेट्स बनवाओ और बाहर गंदगी करना बंद करो. बस फिर उसी के बाद से धीरे-धीरे दिल्ली के मयूर विहार फेज-3 के हर घर में शौचालय बनते गए.

जहां सोच वहां शौचालय

मयूर विहार फेज-3 में ही रहने वाले एक बुजुर्ग व पूर्व बीजेपी नेता बलबीर सिंह ने बताया की रामसुखी की इस पहल को सुन हम काफी खुश हुए थे. और तो और जो प्रेरणा उन्होंने बाकी महिलाओं को दी थी, उससे ये साबित हो गया था कि वो काफी ऊंचे विचारों वाली हैं. उस वक्त हालात ऐसे थे कि कोई भी महिला अपने हक के लिए लड़ने से डरती थी. लेकिन बोलने और कर दिखाने में रामसुखी पीछे नहीं हटीं. उन्होंने जो बोला वो कर के दिखाया. इतने सालों में ऐसी हिम्मत दूसरी महिलाओं में नहीं देखी.

आज शौचालय बनवाने के लिए सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं. टीवी, रेडियो, अखबारों में शौचालय निर्माण को बढ़ावा देने के लिए विज्ञापन आने लगे हैं. फिल्में बनने लगी और लोग इसके लिए जागरुक भी होने लगे. लेकिन रामसुखी की पहल से साबित होता है कि अपने हक और अपनी जरूरत के लिए आवाज उठाने के लिए किसी भी सरकारी योजना या जारूकता फैलाने वाले विज्ञापन की जरूरत नहीं पड़ती. आपको बस आगे बढ़ने की जरूरत होती है.