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...जब लता मंगेशकर को जहर देकर जान से मारने की हुई थी कोशिश

मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मी लता मंगेशकर करोड़ों लोगों के दिलों में राज करती हैं

FP Staff

28 सितंबर भारतीय संगीत के लिए बेहद खास है. इस दिन स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर का जन्म हुआ था. 1929 की 28 सितंबर को लता जी का जन्म मध्य प्रदेश के इंदौर में  हुआ था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि अगर सही इलाज नहीं होता, तो लता जी की जिंदगी को खतरा हो सकता था.

बात है 55 साल पहले की. लता जी जब 33 साल की थीं, तो किसी ने उन्हें जहर देने की कोशिश की थी. 1962 की बात है. लेखिका पद्मा सचदेव के शब्दों में- एक सुबह जब वो सो कर उठीं, तो उन्हें पेट में तेज दर्द था. उल्टियां हुईं, जिसमें हरे रंग का पदार्थ था. वो हिलने की हालत में नहीं थीं. शरीर में तेज दर्द था. डॉक्टर को बुलाया गया. वो एक्स-रे मशीन लेकर आया. लता जी को इंजेक्शन दिए गए, ताकि दर्द कम हो और वो सो जाएं. स्वर कोकिला ने उस वाकये को याद करके एक इंटरव्यू में कहा था, 'मैं बहुत बीमार हुई थी और तीन महीने तक गा नहीं पाई थी.'


दस दिन के बाद उनकी सेहत में सुधार हुआ. उन्हें डॉक्टर ने बताया कि जहर दिया गया था. कहा जाता है कि जिस दिन उल्टियां हुईं, उस दिन उनका खानसामा यानी कुक नौकरी छोड़ गया. बचे हुए पैसे लिए बगैर वो भाग गया. उसने पहले कई फिल्मकारों के साथ काम किया था.

बहन ने संभाला रसोई का जिम्मा

लता मंगेशकर को धीमा जहर देने के बाद उनके घर के इंतजाम पूरी तरह से बदल गए. उनकी छोटी बहन उषा मंगेशकर ने घर की रसोई का काम अपने हाथों में ले लिया. वही खाना बनाने लगी और लताजी के खानपान से जुड़ी हर बात पर उनकी पैनी नजर रहती थी.

कहा जाता है कि जिस समय लता जी बीमार थीं, गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी हर रोज उनके घर शाम को आते थे. लता जी के लिए बना खाना पहले खुद खाकर देखते थे. उसके बाद उन्हें दिया जाता था. मजरूह उन्हें अपनी शायरी और कहानियां सुनाया करते थे.

जिंदगी का सबसे मुश्किल दौर

पद्मा सचदेव की पुस्तक ‘ऐसा कहां से लाऊं’ में भी इस वाकये का जिक्र है. लताजी ने पुस्तक लेखिका को बताया था कि वे तीन दिन उनके लिए जिंदगी का सबसे तकलीफदेह समय था. दर्द बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा था. कमजोरी इतनी हो गई थी कि वह हिल भी नहीं पा रही थीं. लेखिका के साथ अपने अनुभव को शेयर करते हुए लताजी ने कहा था कि दर्द बढ़ता देखकर डॉक्टरों ने उन्हें बेहोशी का इंजेक्शन लगाया था. तीन दिन तक जिंदगी और मौत के संघर्ष के बाद आखिरकार लताजी को एक तरह से नया जीवन मिला था. हालांकि, इस बीमारी की वजह से वे काफी कमजोर हो गई थी कि और तीन महीने तक गाना नहीं गा सकी थीं.