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ऐसा जोड़ा जिसके प्यार को तालिबानी खौफ के बाद हिंदुस्तान में मिली आजादी

समीरा और मजीद दिल्ली में किसी आजाद परिंदे की तरह हैं लेकिन अफगानिस्तान में उनकी जिंदगी मुश्किलों से भरी रही

Farah Khan

दिल्ली का भोगल वो इलाका है जहां अफगानिस्तान का दिल धड़कता है. यहां की गलियों में अफगानिस्तान से आए सैकड़ों शरणार्थी बरसों से बसे हैं. किराए के एक कमरे में समीरा और मजीद ने भी यहीं अपनी छोटी सी रंग-बिरंगी दुनिया आबाद कर ली है. समीरा कहती हैं कि उन्हें अपना मुल्क इसलिए छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्होंने एक शख्स से प्यार किया और शादी कर ली थी.

समीरा दिल्ली में अब किसी आजाद परिंदे की तरह हैं. लेकिन अफगानिस्तान में उनकी जिंदगी मुश्किलों से भरी रही. वो जब तीन साल की थीं तो एक बम धमाके में अपने घरवालों से बिछड़ गईं. समीरा खून से सनी लाशों के बीच घंटों तक पड़ी थीं. समीरा की परवरिश काबुल में हुई जहां का एक परिवार उन्हें लाशों के बीच से निकालकर अपने साथ ले गया था. परिवार इस भ्रम में था कि बच्ची के घरवाले धमाके में मारे गए.


जब मजीद ने कहा दिल का हाल 

समीरा की पढ़ाई-लिखाई काबुल में हुई. जब वो 8वीं क्लास में थीं, तभी उनके मोहल्ले में रहने वाले मजीद को उनसे प्यार हो गया. मजीद ने जब पहली बार समीरा को देखा था, तो वो कंधे पर बस्ता टांगकर स्कूल जा रही थीं. मजीद का घर समीरा के घर और उसके स्कूल जाने वाले रास्ते के बीच में था. लिहाजा, मजीद हर दिन समीरा के स्कूल जाने की राह तकता और फिर उसे आता देखकर उसके पीछे-पीछे लग जाता.

समीरा हंसते हुए कहती हैं, 'मैं स्कूल से कॉलेज पहुंच गई. लेकिन मजीद मुझसे कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. इस तरह आठ साल गुजर गए. फिर एक बार मजीद ने मेरा रास्ता रोक लिया और कहा, 'समीरा मैं तुम्हें बेहद चाहता हूं और तुमसे शादी करना चाहता हूं'.

समीरा और मजीद

वैसे तो मजीद के दिल का हाल समीरा पहले से जानती थी. लेकिन उसका प्रेम प्रस्ताव सुनकर वो ऐसे अनजान बन गई कि जैसे उसे कुछ पता ही नहीं. उस वक्त तो समीरा ने मजीद के प्रेम प्रस्ताव को ठुकरा दिया. लेकिन तमाम मिन्नतों के बाद वो मजीद की हो गई.

समीरा और मजीद दोनों शादी करना चाहते थे लेकिन उनके घरवाले इसके लिए तैयार नहीं थे. समीरा को पालने वाला परिवार ताजिक था जबकि मजीद पश्तून. तमाम कोशिशों के बावजूद जब दोनों परिवार इस शादी के लिए राजी नहीं हुए तो समीरा और मजीद घर से भाग निकले. भागकर दोनों मज़ार-ए-शरीफ़ पहुंचे, जहां मजीद के रिश्तेदार रहते थे. यहां चार गवाहों का इंतजाम किया गया और उनकी मौजूदगी में दोनों का निकाह हुआ.

अपने मुल्क में चुकानी पड़ी प्यार करने की कीमत

अफगानिस्तान जैसे युद्धग्रस्त मुल्क में औरतों की जिंदगी आसान नहीं है. लड़की के लिए प्यार और घर से भागकर शादी करने का फैसला जानलेवा होता है. समीरा के इस फैसले से उसके भी घरवाले शर्म से गड़ गए थे. वो समीरा और मजीद की हत्या के लिए उन्हें ढूंढ रहे थे.

समीरा याद करती हैं, 'एक बार मुझे और मजीद को मेरे घरवालों ने पकड़ लिया. वो हमें कत्ल करने के इरादे से आए थे लेकिन पड़ोसियों ने पुलिस को फोन कर दिया जिससे हमारी जान बच सकी. मगर बड़ा खतरा इससे कहीं ज्यादा था.

मजीद के कुछ रिश्तेदारों ने इस शादी की खबर तालिबान को कर दी थी. निकाह के दो दिन बाद आधी रात को इन्हें घर छोड़कर भागना पड़ा क्योंकि तालिबान के लड़ाके इनके घरों पर छापेमारी करने आ गए थे. मजीद कहते हैं, 'वो हमें पकड़ लेते तो बुरी से बुरी मौत मारते. मसलन- हमारी गर्दनें उड़ा देते, जिंदा जला देते या फिर संगसार कर देते.'

समीरा और मजीद का बेटा वारिस

रुंधे गले से मजीद कहते हैं, 'बेशक आज हम साथ हैं लेकिन हमारे मुल्क में हमें प्यार करने की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है. तालिबान के डर से हम अपने घर नहीं जा सकते थे. उनके लड़ाके हमारे घर पर छापेमारी करते और हमारी मां को धमकाते रहते. इस तनाव में उन्होंने वक्त से पहले दुनिया छोड़ दी.'

समीरा कहती हैं कि अफगानिस्तान में हम निकाह के बाद से बस जान बचाने के लिए भाग रहे थे. बचपन में मुझे बचाने वाला परिवार ही मेरा दुश्मन बन गया था. मैं एक बार फिर यतीम थी.

जब मजीद ने निभाया अपना वादा

मगर ये खुदा की खुदाई थी कि समीरा को दोबारा एक उम्मीद की किरण दिखाई दी. प्यार के शुरुआती दिनों में एक दफा मजीद ने समीरा से वादा किया था कि वह उसके असली मां-बाप को ढूंढ निकालेगा. मजीद उनकी तलाश में भी लगा रहता था. एक बार मजीद ने समीरा के अतीत के बारे में अपने एक दोस्त जुलमई से बताया. जुलमई ने इसका जिक्र अपने एक और दोस्त सलीम से किया और इसके बाद पता चला कि सलीम और समीरा सगे भाई-बहन हैं.

इस तरह समीरा अपने असली परिवार से दोबारा मिल सकीं. वो कहती हैं, 'मेरे असली परिवार ने हमारे जज्बात को समझा और घर में पनाह दी. घरवालों ने यह मशविरा भी दिया कि अगर इस तरह शादी के बाद सुकून से जिंदा रहना है तो अफगानिस्तान छोड़ देना चाहिए.

समीरा और उसका परिवार, जिनसे वह बचपन में बिछड़ गई थी

समीरा कहती हैं, 'अजीब-सी कशमकश का दौर था वो. 21 साल बाद मैं अपनी मां से मिल पाई थी. मैं उनके साथ रहना चाहती थी मगर मुझे अपना मुल्क छोड़ना पड़ा.'

मजीद चार साल पहले समीरा को लेकर हिंदुस्तान आए. उन दोनों का अब एक बेटा है जिसका नाम वारिस है. मजीद दिल्ली में अफगानी नागरिकों के लिए गाइड बन गए हैं और समीरा हाउस वाइफ हैं. मजीद कहते हैं, 'बेशक हिंदुस्तान पराया मुल्क है लेकिन यहां के लोग अपने से लगते हैं. हम यहां आजादी के साथ घूम पाते हैं और इस डर में नहीं जीते कि कोई हमें मार डालेगा.'

आखिर में दोनों मुस्कराते हुए कहते हैं इतना सब कुछ करने की ताकत हमें हमारे प्यार से मिलती है. हमें यकीन है कि जब तक साथ हैं हर मुश्किल आसान कर लेंगे.