29 मार्च 1871. उस रोज क्वीन विक्टोरिया की आंखों में आंसू थे. आज दुनिया भर में मशहूर हो चुके रॉयल एल्बर्ट हॉल की ओपनिंग उन्हें ही करनी थी. तमाम लोग जमा थे. लेकिन क्वीन विक्टोरिया अपनी भावनाओं को रोक नहीं पाईं. उनका गला भर आया. आवाज ने साथ देने से मना कर दिया. उनकी आंखों में अपने पति प्रिंस एल्बर्ट के साथ बिताए जाने कितने लम्हें घूम गए. प्रिंस एल्बर्ट इस हॉल की ओपनिंग से करीब एक दशक पहले दुनिया छोड़ चुके थे. उस वक्त उनकी उम्र सिर्फ 42 साल थी. उनकी मौत विक्टोरिया के लिए बड़ा सदमा थी.
प्रिंस एल्बर्ट जाने से पहले बहुत कष्ट में थे. जिसकी शुरूआत पेट में असहनीय दर्द से हुई थी. एक बार तो ऐसा भी हुआ था जब उन्हें अपनी चलती गाड़ी से घोड़ों को छोड़कर कूदना पड़ा था क्योंकि अगर वो ऐसा ना करते तो रेलवे ट्रैक पर खड़ी बोगी से टकरा जाते. उस दुर्घटना में भी उन्हें काफी चोट लगी थी. बावजूद इसके वो बच गए. लेकिन कुछ महीनों बाद ही उन्हें दर्द की तकलीफ हुई और आखिर में 14 दिसंबर 1861 को वो दुनिया छोड़ गए. उनकी मौत से सदमे में आईं क्वीन विक्टोरिया ने उसके बाद पूरे जीवन काले कपड़े पहने. उन्हीं की याद में इस हॉल का नाम भी रखा गया था. आखिर में जब क्वीन अपनी यादों के साए में इतना डूब गईं कि कुछ कह भी ना सकें, उनके बेटे और वेल्स के राजकुमार ने इस हॉल की ऑफिशियल ओपनिंग की.
इस हॉल के बनने की कहानी भी दिलचस्प है. दरअसल प्रिंस एल्बर्ट शिक्षा, समाज सुधार और संस्कृति में कई बड़े काम कर चुके थे. इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर उनके रहते-रहते कई प्रदर्शनियों का आयोजन हुआ था. ऐसी ही एक प्रदर्शनी में करीब 2 लाख पाउंड ‘एक्सट्रा’ बचे थे. आप यूं समझिए कि आज भी ये रकम डेढ़ करोड़ रुपए के करीब होगी. डेढ़ सौ साल पहले इस रकम की क्या वैल्यू रही होगी आप समझ सकते हैं.
उसी समय साउथ केंजिंग्टन में जमीन खरीदी गई थी. मकसद था शैक्षिक और सांस्कृतिक गतिविधियों के लिए संस्थान का बनाया जाना. नेशनल हिस्ट्री म्यूजियम, साइंस म्यूजियम जैसे संस्थान उसी दौरान बनाए गए. बाद में इसी का नाम रखा गया रॉयल एल्बर्ट हॉल. अगले ही साल 1872 में 8 मई को इस हॉल में पहला कॉन्सर्ट आयोजित किया गया. उस रोज भी क्वीन विक्टोरिया वहां मौजूद थीं. इसके बाद से इस हॉल को कला और संस्कृति की तमाम नुमाइशों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा. दुनिया का शायद ही कोई ऐसा बड़ा नामी कलाकार हो जिसने इस हॉल में कार्यक्रम ना किया हो. बल्कि यूं कहें कि कुछ समय बाद इस हॉल की प्रतिष्ठा ऐसी थी कि जिसने इस हॉल में कार्यक्रम पेश किया, उस कलाकार का स्तर अलग दर्जे का माना जाता था.
बीच बीच में खेलकूद के इवेंट्स भी इस हॉल में होते रहे. 70 के दशक में टेनिस से शुरूआत हुई थी. बाद में मोहम्मद अली ने भी इस हॉल में रिंग में उतरकर लोगों का मनोरंजन किया. करीब 6 हजार की क्षमता वाले इस हॉल को आज दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित हॉल में गिना जाता है.
करीब सौ साल बाद मिला था भारतीय कलाकार को मौका
1871 से लेकर अगले सौ साल से ज्यादा वक्त तक दुनिया भर के कलाकार रॉयल एल्बर्ट हॉल में प्रस्तुति दे चुके थे, लेकिन तब तक किसी भारतीय कलाकार ने वहां कार्यक्रम नहीं किया था. साल 1974 की बात है. मार्च का महीना था. लता मंगेशकर का कार्यक्रम वहां रखा गया. लता मंगेशकर के लिए सार्वजनिक तौर पर विदेश में कार्यक्रम पेश करने का ये पहला मौका था. साथ ही ये पहला मौका था जब लता मंगेशकर के तौर पर एक भारतीय कलाकार को इस हॉल में कार्यक्रम पेश करना था.
लता मंगेशकर उस वक्त करीब 45 साल की थीं. लेकिन उस वक्त उनका नाम हिंदुस्तानी फिल्मी संगीत में बहुत बड़ा हो चुका था. उनके खाते में नेशनल अवॉर्ड सहित कई बड़े सम्मान थे. लोग उन्हें सुनने को बेताब थे. 11, 12 और 14 मार्च की तारीख तय हुई. इस कार्यक्रम से जमा होने वाली रकम नेहरू मेमोरियल को दी जानी थी. लता जी जब पहले दिन कार्यक्रम प्रस्तुत करने गईं तो उन्हें अचंभा हुआ. पूरा हॉल भरा हुआ था. सभी लोग कार्यक्रम के तय समय सात बजे से पहले पहुंचकर अपनी अपनी जगह ले चुके थे. कमाल का अनुशासन था. लता मंगेशकर को और हैरत तब हुई जब बाद में उन्हें पता चला कि एक बार कार्यक्रम शुरू होने के बाद किसी को अंदर आने की इजाजत नहीं होती. दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं.
कमाल की बात ये भी थी कि लता जी के तीनों दिन के शो हाउसफुल थे. इसके बाद 1979 में भी लता मंगेशकर ने इस प्रतिष्ठित हॉल में अपना कार्यक्रम पेश किया था. 1979 में ही तलत महमूद को भी इस हॉल में कार्यक्रम के लिए न्यौता आया. तलत महमूद के कार्यक्रम से दो हफ्ते पहले ही सभी टिकट बिक गए. उनके कार्यक्रम के बाद उन्हें ‘स्टैंडिंग ओवेशन’ दिया गया था.
जगजीत सिंह के पसंदीदा हॉल में से एक
यूं तो लता जी के बाद और भी कई भारतीय कलाकारों ने रॉयल एल्बर्ट हॉल में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किए लेकिन ये हॉल गजल गायक जगजीत सिंह के पसंदीदा हॉल में एक था. एक दफे वो सिडनी के ओपेरा हाउस में कार्यक्रम पेश करने गए थे. कार्यक्रम शुरू होने से पहले श्रोताओं का अभिवादन करते वक्त उन्होंने कहा था कि ओपेरा हाउस के अलावा उनकी पसंदीदा जगहों में लंदन का रॉयल एल्बर्ट हॉल शामिल है. भजन सम्राट के नाम से मशहूर अनूप जलोटा कहते हैं ये इस हॉल की खूबी है कि जितने प्यार से वहां लोग वेस्टर्न म्यूजिक सुनते हैं, उतनी ही प्यार से फिल्मी संगीत, गजल या फिर भजन.