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जॉन एलिया: सोशल मीडिया पर स्टीरियो टाइप कर दिए गए शायर

जॉन की शायरी में एक खलिश और फ्रस्टेशन दिखता है जो सोशल मीडिया के मिजाज़ को खूब भाता है

Animesh Mukharjee

नुसरत फतेह अली खान महान संगीतकार हैं. उनकी मौसीकी के कद्रदानों की कमी नहीं. पिछले साल नुसरत साहब की लोकप्रियता अचानक से इतनी बढ़ गई कि डीजे और बारातों में नुसरत की कव्वाली सुनाई पड़ने लगी. पिछले साल नुसरत की एक कव्वाली 'मेरे रश्के कमर' का वीडियो वायरल हो गया था. इसको सुनकर जो नुसरत के ऐसे कई फैन बने जिनकी रूह सिर्फ रश्के कमर सुनकर ही आफरीं हो जाती है.

खैर यहां बात नुसरत साहब की बात नहीं हो रही है. उन फैन्स की हो रही है जो एक महान प्रतिभा को किसी एक ट्रेंड या हैशटैग में सीमित कर देते हैं. बात जॉन एलिया की हो रही है. पाकिस्तान के मरहूम शायर जॉन एलिया का भारतीय समाज में पुनर्जन्म सोशल मीडिया के जरिए हुआ.


उत्तर प्रदेश से कराची तक

8 नवंबर 2002 को दमे के दौरे से जॉन का निधन हो गया था. उत्तर प्रदेश के अमरोहा में पैदा हुए जॉन मशहूर फिल्म निर्देशक कमाल अमरोही के सबसे छोटे भाई थे. इनके बाकी भाई भी जाने-माने विद्वान और पत्रकार रहे. खुद जॉन पाकिस्तान के मशहूर अखबार जंग के संपादक रह चुके थे. जॉन शिया थे मगर उनकी शिक्षा सुन्नियों के गढ़ देवबंद में हुई थी. अपने जीवन में अरबी की कई किताबों का अनुवाद जॉन ने उर्दू में किया. मगर उनका ज्यादातर काम उनके जीवन में प्रकाशित नहीं हो पाया.

तन्हाई के शायर

जॉन का अपनी पत्नी से अलगाव हुआ था. इसके अलावा भी कई अधूरे प्रेम रहे होंगे जो रह-रहकर अशार बनकर निकलते रहे. इन सारे अशारों में एक कॉमन चलन है. जॉन की शायरी में प्रेम को लेकर एक तरह की खलिश दिखती है. जब वो नाराज़ होते हैं तो भी,

अपना खाक लगता हूं

एक तमाशा लगता हूं

वो जब प्रेम भी जताते हैं तो नाराज़ होकर,

आप, वो, जी, मगर यह सब क्या है

तुम मेरा नाम क्यों नहीं लेती

इसी तरह से उनके अंदर का अवसाद ग्रस्त आदमी सहानुभूति चाहता है. वो चाहता है कि कोई उसे टोके,

अब मुझे कोई टोकता भी नहीं

यही होता है खानदान में क्या

जॉन का प्रेम के हर भाव में एक खलिश ले आने का ये फन ही उनकी सोशल मीडिया पर छा जाने का मूल कारण है. ऐसे मंचों पर जहां लोग एक दूसरे को ट्रोल करना चाहते हैं. अपनी तमाम तरह की भड़ास निकालना चाहते हैं, वहां जॉन के शेर उन्हें तीखी बात को रदीफ और काफिए में पिरोकर कहने की गुंजाइश देते हैं. यह खूबी जॉन को सबसे अलहदा भी बनाती हैं और कहीं न कहीं उनका दायरा भी तय करती है.

जॉन एलिया ने प्रेम पर बहुत कुछ लिखा मगर उनके कहे शेर कहीं न कहीं प्रेम की गहराई में उर्दू के दूसरे आला शायरों जितना नहीं पहुंच पाते हैं. प्रेमिका की तमाम नाराज़गियों के बाद भी तारीफ करने के मूड में अहमद फराज, फैज़ और बशीर बद्र जैसे कई शायरों शेर हैं जो प्रेम के दूसरे आयामों को गहराई से छूते हैं.

जनता ने किया स्टीरियोटाइप

जॉन के कुछ शेर टूटे हुए दिल और फ्रस्टेशन से भरे हुए थे. उन्हें एक कवि सम्मेलन के महाकवि ने अपनी कविताओं के बीच सुनाना शुरू किया. इसके बाद वो अशआर हिंदी में तमाम स्टेटस बनने लगे. इस चलन का सबसे बड़ा नुकसान अगर किसी को हुआ है तो वो खुद जॉन एलिया हैं. कविता के नाम पर उर्दू शब्दों को ऊपर से नीचे लिख देने वाली जमात ने एक अच्छे भले शायर को स्टीरियोटाइप कर दिया.

जबकि जॉन के पास अपना एक अलग स्पेस है. ये स्थिति तब और खराब हो जाती है जब ये जमात जॉन को सबसे बड़ा शायर साबित करने लग जाती है. निसंदेह जॉन साहब उर्दू गज़लगोई की धरोहर हैं मगर फैज़, फराज़, ग़ालिब और फिराक जैसे तमाम नाम भी हैं जो अपनी-अपनी शायरी में तुलना से परे हैं.