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जसपाल भट्टी पुण्यतिथि: इंजीनियरिंग छोड़कर बने व्यंग्य के बादशाह

उल्टा-पुल्टा और फ्लॉप शो के जरिए जसपाल भट्टी ने मिडिल क्लास के दिल में जगह बनाई, सिस्टम की बुराइयों पर बेदह तीखे होते थे भट्टी के व्यंग

Sumit Kumar Dubey

आम आदमी से जुड़ी परेशानियों को हास्य-व्यंग के जरिए दुनिया के पटल पर रखने का चलन तो पुराना है. अखबारों में कार्टूनों के जरिए तीखी से तीखी बातों को भी हंसी-मजाक में सामने लाया जाता है. लेकिन वीडियो के जरिए या यूं कहें कि टीवी शो या सीरियल के जरिए इन परेशानियों को पहचान कर, उन पर सटीक तंज कसने की शुरुआत करने का श्रेय अगर किसी शख्स को जाता है तो वो हैं जसपाल भट्टी.

1980 के दशक के अंत में जब टेलीविजन भारत के घर-घर में अपनी जगह बना रहा था तब जसपाल भट्टी ने बुद्धू बक्से पर एक ऐसी शुरुआत की, जिसने हंसी-हंसी में ही जनता को एहसास करा दिया उसे  किस तरीके से वाकई में बुद्धू बनाया जाता है.


टेलीविजन के इतिहास में सबसे पहले सटायर शो उल्टा-पुल्टा के जरिए जसपाल भट्टी ने देश के लोगों की समस्याओं को सटीक व्यंग्य के माध्यम कुछ इस तरह सामने रखा रखा कि लोग हर सुबह उनके इस शो का इंतजार करने लगे और जसपाल भट्टी घर-घर में पहचाना जाने वाला नाम बन गए.

इंजीनियरिंग छोड़कर बने कॉमेडियन

हंसी-मजाक में ही गंभीर से गंभीर मसले को सामने लाने वाले जसपाल भट्टी शुरुआत में पेशे से इंजीनियर थे. 3 मार्च 1955 को पंजाब के अमृतसर में जन्मे जसपाल भट्टी ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी. लेकिन जो काम वह करना चाहते थे उसके लिए इंजीनियरिंग की पेचीदा पढ़ाई की नहीं बल्कि एक खुले दिमाग और समझ की जरूरत थी.

जैसे पूत के पांव पालने में ही दिखाई दे जाते हैं ठीक वैसे ही जसपाल भट्टी कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर करते थे मगर इसके साथ-साथ उन्होंने कुछ साथियों के साथ ‘नॉनसेंस क्लब’ भी बनाया और नुक्कड़ नाटक करने लगे. उनके ऐसे व्यंगात्मक नाटक पंजाब की गलियों में काफी प्रसिद्ध हुए. उन्हें इस बात का पूरा एहसास था कि वह किस काम के लिए बने हैं. लिहाजा इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद उन्होंने एक अखबार में कार्टूनिस्ट की नौकरी शुरू की.

सबसे जुदा था जसपाल भट्टी का अंदाज

उल्टा-पुल्टा के बाद 90 के दशक की शुरुआत में उन्होंने एक और सटायर शो बनाया जिसका नाम था फ्लॉप शो. इस शो में वह अपनी विशुद्ध सामाजिक कॉमेडी के जरिए सीधे मिडिल क्लास के जीवन से जुड़ी परेशानियों पर बेहद कड़ा व्यंगात्मक प्रहार करते थे. यह शो बहुत ज्यादा पसंद किया गया और एक कॉमेडियन के तौर पर जसपाल भट्टी की पहचान पूरे मुल्क में स्थापित हो गई.

उनकी कॉमेडी आज के तमाम कॉमेडी शो से बेहद अलग होती थी. ना फूहड़ता ना अश्लीलता और ना ही द्विअर्थी संवाद. सीधे-सपाट तरीके से अपनी बात को रखना और दर्शकों के दिल को छू लेना. यही थी जसपाल भट्टी की खासियत. आज के दौर में चल रहे कुछ कॉमेडी शो की तरह वह कभी किसी दूसरे पर कटाक्ष करके लोगों को नहीं हंसाते थे बल्कि उनके शो में वह खुद ही हंसी के पात्र बनते थे.

टेलीविजन के अलावा उन्होंने बड़े पर्दे पर भी अपना जलवा बिखेरा और बॉलीवुड की 25 से ज्यादा फिल्मों में छोटी बड़ी भूमिकाएं निभाई. उन्होंने 1999 में पंजाब पुलिस पर तंज कसते हुए ‘माहौल ठीक है’ नाम की एक फिल्म भी बनाई जिसमें हास्य के जरिए इस विषय पर कड़े प्रहार किए.

भ्रष्टाचार के खिलाफ हमेशा रहते थे तैयार

राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों में जागरूकता लाने के लिए उन्होंने पॉलिटिकल पार्टी का भी गठन किया लेकिन अंदाज वही था. 1995 में जैन हवाला कांड सुर्खियों में था और उस वक्त उन्होंने ‘हवाला पार्टी’ के नाम से एक राजनीतिक पार्टी का गठन किया. साल 2002 में उन्होंने ‘सूटकेस पार्टी’ बनाई.

2009 में आर्थिक मंदी से जब पूरी दुनिया जूझ रही तो तब भट्टी ने ‘रिसेशन पार्टी’ बनाकर उस वक्त की व्यवस्था पर सीधा कटाक्ष किया. सामाजिक और राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग के लिए भट्टी हमेशा तैयार रहते थे और उनका अंदाज भी निराला होता. भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना हजारे के आंदोलन में जसपाल भट्टी भी शामिल थे.

2012 में उन्होंने सिस्टम पर तंज कसते हुए ‘पावरकट’ नाम की फिल्म बनाई. इसी फिल्म के प्रमोशन के दौरान वह भ्रष्टाचार के विरुद्ध अपनी ही शैली में आवाज उठा रहे थे. ऐसे ही एक प्रमोशन के लिए जाते वक्त जालंधर में आज ही के दिन यानी 25 अक्टूबर 2012 को एक सड़क दुर्घटना में उनका निधन हो गया. वह महज 57 साल के थे. उनकी मौत के एक साल बाद 2013 में उन्हें नागरिक सम्मान पद्म श्री (मरणोपरांत) सम्मानित किया गया.

जसपाल भट्टी आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन सिस्टम में मौजूद बुराइयों के खिलाफ जंग लड़ने का उन्होंने  एक ऐसा तरीका ईजाद किया जिसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.