view all

women's day 2018: अरे यार मेरी तुम भी हो गज़ब

महिला दिवस एक दिन का त्योहार नहीं जीवन स्तर सुधारने का लगातार सुधार करने वाला उत्सव होना चाहिए

Pratima Sharma

8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस. हर साल जब भी यह दिन आता है तो भाई, पिता और दोस्त आपको महिला होने की बधाई देते हैं. यह अहसास करवाने की कोशिश करते हैं कि आज का दिन कितना खास है. लेकिन महिलाओं को महिला होने का अहसास दिलाने की क्या जरूरत है. इस कोशिश का सीधा मतलब यही है कि महिलाओं को कम से कम एक दिन उनकी कामयाबी, जोश और जुनून की तारीख करके उनका मनोबल बढ़ाया जाए. ऐसा नहीं है कि अगर यह दिन साल में ना आए तो महिलाएं अपना लक्ष्य खो देंगी या उनके काम करने का जुनून समाप्त हो जाएगा.


आप अपने आसपास किसी कामकाजी जोड़े को देखिए. पुरुष और स्त्री दोनों ऑफिस में काम करते हैं. पुरुष घर आकर न्यूज चैनल का बटन दबाएगा और महिलाएं घर के कामकाज, बच्चों के देखरेख की जिम्मेदारी निभाएंगी. ऐसे में यह कहना कि स्त्री शारीरिक तौर पर कमजोर है, सरासर गलत है. भावनाओं की बात करें तो ऐसा नहीं है कि 'मर्द को दर्द नहीं होता.' मर्द को भी दर्द होता है, उनकी आंखों से भी आंसू निकलते हैं. फर्क बस इतना है कि कमजोर बताकर महिलाओं पर दया दिखाई जाती है पुरुषों पर नहीं.

शारीरिक रूप से कमजोरी की बात करूं तो कुछ लोगों को ये ख्याल भी आया होगा कि महिलाएं अपनी सुरक्षा नहीं कर सकती हैं. महिलाओं को किसी इनसान से खतरा नहीं है लेकिन पुरुष अगर जानवर बन जाए तभी महिलाओं की अपनी सुरक्षा की फिक्र सताती है.

बराबरी के लिहाज से देखें तो महिलाएं न तो शारीरिक और न ही मानसिक तौर पर पुरुषों से कमजोर है. एक दिन महिलाओं के नाम करने से बेहतर है कि पुरुष उनके साथ बराबरी की रिश्ता रखे और बराबरी का सम्मान दे. अगर ऐसा होता है तो साल में एक दिन के बजाय हर दिन महिलाओं को कुछ करने दिखाने की हिम्मत मिलेगी.

ऐ औरत तुम्हें क्या चाहिए?

कुछ मामलों में ये कह सकते हैं कि महिलाओं की तरक्की पुरुषों के बराबर नहीं हुई है. लेकिन इसकी वजह महिलाओं की नाकाबिलियत नहीं बल्कि विकास के दौर में उनका देर से शामिल होना है.

इन महिलाओं में अपने-अपने क्षेत्र में कामयाबी हासिल की है

पेप्सिको की सीईओ और चेयरविमेन इंद्रा नूयी, एक्सिस बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ शिखा शर्मा या आईसीआईसीआई बैंक की मैनेजिंग डायरेक्टर और चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर चंदा कोचर ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने यह साबित कर दिया कि काबिलियत जेंडर नहीं देखती. ये आज अपने सेक्टर के सबसे जाने माने नाम हैं. बैंकिंग सेक्टर में जहां अभी तक पुरुषों का दबदबा था वहां शिखा शर्मा और चंदा कोचर ने मिसाल कायम की है.

हाल ही में ईटी मैगजीन के एक सर्वे में दिलचस्प खुलासा हुआ कि आज ज्यादातर महिलाओं को अपनी मर्जी से जिंदगी जीने की आजादी चाहिए. मैगजीन ने करीब 900 महिलाओं पर यह सर्वे किया. इसमें 50 फीसदी से ज्यादा महिलाओं का जवाब था कि वह अपना करियर बनाना चाहती है. अपने सपनों को पूरा करना चाहती हैं. 26 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वो दुनिया में बदलाव लाना चाहती हैं. सिर्फ 13 फीसदी महिलाओं की यह राय थी कि वह प्यार चाहती हैं.

पिछले एक दशक के दौरान महिलाओं में आया यह दिलचस्प बदलाव है. आज महिलाएं ऑफिस दबकर रहने के बजाय पलट कर जवाब देने की हिम्मत दिखाती हैं. कुछ लोगों को छोड़कर यह बात भी पुरुषों के लिए हजम करना मुश्किल है. लेकिन कुछ करना है तो महिलाओं को थोड़ा टेढ़ा होना होगा. यह सिर्फ आज की बात नहीं है. हॉलीवुड की जानीमानी कलाकर मर्लिन मुनरो ने कहा था, 'well behaved women rarely make history.' यानी बहुत सौम्य व्यवहार के साथ इतिहास में बदलाव करने वाली महिलाएं बहुत कम हैं. अब वक्त है कि इस बात को सही साबित किया जाए.

जो खूबसूरती, एटीट्यूट, स्टाइल, नजाकत आप में हैं, उसे छिपाइए नहीं. मुमकिन है कि आप जब अच्छा काम करेंगे तो लोग आपको ऑपर्च्यूनिस्ट मानेंगे, काम ना करो तो नाकाबिल. लेकिन ये वक्त डरकर, छिपकर और दबकर रहने का नहीं है. बिंदास रहिए और अपने हुनर को निखारिए.

सोच बदलने के लिए यह गाना देखिए.