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इंटरनेशनल टाइगर डे: बाघों के वो किस्से जिन्हें पढ़कर आप चौंक जाएंगे

बाघों की यह कहानी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं है

Ankita Virmani

दिन बाघों का है तो आप बाघों को लेकर बहुत सारे आंकड़े पढ़ चुके होंगे, हमने कितने बाघ खो दिए, और कितने बचा लिए... आप ये भी पढ़ चुके होंगे कि बाघ कैसे बचेंगे, बाघ हमारे इकोलॉजिकल सिस्टम के क्यों लिए जरूरी हैं, वगैरह वगैरह.

हम आपको बताते हैं बाघों की दुनिया के कुछ ऐसे किस्से जो आपने इससे पहले शायद ही पढ़े होंगे. जिम कॉर्बेट क्यों बाघ को एक परफेक्ट जेंटलमेन कहते थे कि इसका अंदाजा इस लेख के अंत में आपको लग जाएगा.


टी-25 की अनोखी कहानी

शुरू करते है रणथंभौर से. साल था 2011 और महीना था जनवरी. उस वक्त रणथंभौर में आने वाला हर टाइगर प्रेमी देखना चाहता था टी-5 नाम की बाघिन और उसके दो नन्हें शावकों को. सब अच्छा ही चल रहा था, पर मानो जैसे इस हंसते खेलते परिवार को किसी की नजर सी लग गई हो. फरवरी आते आते इंफेक्शन के चलते टी-5 की हालत बिगड़ने लगी. वन अधिकारियों ने टी-5 को बचाने की पूरी कोशिश की पर टी-5 ने दुनिया को अलविदा कह दिया.

टी-5 की मृत्यु बाघ प्रमियों और वन अधिकारियों के लिए एक बड़ा झटका तो थी ही. लेकिन उससे भी बड़ी परेशानी टी-5 के दो नन्हें शावक, जिन्हें वो पीछे छोड़ गई थी. दोनों शावक इतने छोटे थे कि न तो वो जंगल में रहने के तौर तरीके जानते थे, न ही शिकार करना.

अक्सर ऐसे मामलों में वन अधिकारियों के पास एक ही विकल्प था कि वो इन शावकों को चिड़ियाघर भेज दें. मां बाघिन के बाद अक्सर शावकों की जिंदगी भी पिंजरें में कैद हो जाती है.

लेकिन इस मामले में कुछ ऐसा देखने को मिला जो आज से पहले शायद ही भारत के किसी और जंगल में देखने को मिला हो. 14 मई 2011 को ट्रैप कैमरा में कैद हुई एक तस्वीर ने सबको चौंका के रख दिया. तस्वीर में एक शावक एक बड़े नर बाघ के साथ दिखा. वन अधिकारी पहले तो इसे देखकर चिंता में आ गए.

ऐसा माना जाता है कि बाघों की दुनिया में शावकों को पालने-पोसने से लेकर शिकार करना सिखाना, बाघिन की जिम्मेदारी होती है. नर बाघ अक्सर बच्चों को मार देता हैं. अधिकारियों के लिए इस तस्वीर ने एक नई मुसीबत खड़ी कर दी. उन्हें ऐसा लगने लगा कि अब इन बच्चों का बचाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

पर तकदीर को कुछ और ही मंजूर था. वो नर बाघ और कोई नहीं बल्कि इन बच्चों का पिता था, इन नन्हें शवाकों का रखवाला. नर बाघ की पहचान टी-25 के तौर पर हुई जिसे कुछ बाघ प्रेमी जालिम के नाम से भी जानते होंगे.

पिता टी-25 ने हर वो फर्ज निभाया जो बाघों की दुनिया में मां बाघिन निभाती है. जालिम ने ना सिर्फ इन शावकों जंगल की दुनिया के बाकी खतरों से बचाया बल्कि दोनों को अपनी टेरिटरी में जगह दी, उन्हें शिकार तक करना सिखाया.

आज दोनों नन्हें शावक बड़े हो चुके है और राजस्थान के ही दूसरे जंगल सरिस्का में अच्छा जीवन बीता रहे हैं.

टी-25 की इस कहानी ने बाघों की दुनिया के जानकारों को एक बार फिर ये एहसास करा दिया कि बाघों की दुनिया के बारे में वो कितना कम जानते हैं.

बांधवगढ़ में बदले की दास्तान

अगली कहानी मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ जंगल की है. बांधवगढ़ नेशनल पार्क बाघों को देखने के लिए एक परफेक्ट जगह है. इस जंगल की जो कहानी हम आपको सुनाने जा रहे है वो पूरी फिल्मी हैं. इसमे बदला भी हैं, इंतजार भी, और यकीन मानिए इस कहानी का क्लाइमेक्स किसी बॉलीवुड फिल्म से कम नहीं.

इस कहानी के दो हीरो है, बल्कि हीरोइन कहिए. लंगड़ी और कनकटी. बांधवगढ़ की दो मशहूर बाघिनें.

साल था 2010 और महीना दिसंबर. बांधवगढ़ का चक्रधारा इलाका बाघिन लंगड़ी और उसके दो शावकों का घर था. पैर में परेशानी के वजह से बचपन से ही लंगड़ा के चलने के कारण इस बाघिन का नाम लंगड़ी पड़ गया लेकिन इस वजह से उसे शिकार करने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.

चक्रधारा बांधवगढ़ जंगल का एक मुख्य इलाका था, जहां शिकार की कोई कमी नहीं थी. लेकिन तब तक कनकटी नाम की एक बाघिन की इस इलाके पर नजर नहीं पड़ी थी. हल्के से कटे हुए कान के कारण इस बाघिन को कनकटी नाम से जाना जाता था. बांधवगढ़ के वन अधिकारियों की नजर इन दोनों बाघिन के बीच बढ़ती दरारों पर थी. लंगड़ी और कनकटी के बीच पहली लड़ाई साल 2011 के जनवरी महीने में हुई. इस लड़ाई में कनकटी हार गई और चुपचाप चक्रधारा को छोड़ लौट गई.

लंगड़ी और उसके दो शावकों ने इसके बाद राहत की सांस ली. बाघों की दुनिया में ऐसा माना जाता है कि टेरिटरी की लड़ाई में एक बार हारने के बाद, बाघ कभी उस इलाके में लौट कर नहीं आता.

लेकिन किसे पता था कि कनकटी हार कर बांधवगढ़ के किसी कोने में नहीं छुपी थी बल्कि वो तो एक बड़ी लड़ाई की तैयार में थी. 2011 का मार्च महीना और कनकटी एक बार फिर चक्रधारा में लौटीं. चक्रधारा पर कब्जा पाने के लिए इस बार वो पूरी तरह से तैयार थी. कनकटी ने न सिर्फ लंगड़ी को जान से मार दिया बल्कि वो इस मार कर खा गई. बांधवगढ़ के वन अधिकारी जब तक हाथी से वहां पहुंचे तब तक लंगड़ी के शरीर का कुछ ही हिस्सा बचा था. एक बाघ का दूसरे बाघ को मार कर खा जाना शायद ही पहले किसी ने देखा हो. ये शायद कनकटी का गुस्सा और बदले की आग ही थी जो वो उसे मार कर खा गई.

इस हादसे ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि बाघों की दुनिया के बारे में हम इंसान बहुत कम जानते है.

मां लंगड़ी को कनकटी के हाथों खोने के बाद दोनों शावक चक्रधारा इलाके को बांधवगढ़ के खितौली इलाके में जा बसे. बांधवगढ़ के वन अधिकारी भी कनकटी पर लगातार नजर बनाए हुए थें. उन्हें भी इस बात का डर था कि कहीं कनकटी, लंगड़ी के बच्चों को भी नुकसान न पहुंचाए. कनकटी की दहाड़ अब चक्रधारा इलाके में सुनाई देती थी. कनकटी की इस दहाड़ में अब गुस्सा नहीं बल्कि अपने अस्तित्व को स्थापित करने का अभिमान था.

लड़ाई में जीत हासिल करने के बाद कनकटी ने ताला रेंज के बमेरा मेल के साथ नया जीवन शुरू किया. 2011 के सितंबर महीना आते आते कनकटी 3 शावकों की मां बन चुकी थी.

बांधवगढ़ एक बार फिर शांत हो चला था. इतना शांत कि आने वाले तूफान का किसी को अंदाजा नहीं था. इस बीच लंगड़ी के दोनों शावक भी बड़े हो गए थें, जिनमें एक नर था और एक मादा.

लंगड़ी के नर शावक ने अब चक्रधारा की इलाके की ओर आना शुरू कर दिया था. वो शायद अपनी मां की मौत को भूला नहीं था और इसी बीच एक दिन अचानक कनकटी के दो शावकों के मौत की खबर आई. लंगड़ी के नर शावक के लिए ये सिर्फ बदले की शुरूआत थी.

वक्त बीतता गया और साल 2013 में कनकटी एक बार फिर मां बनी, उसने फिर 3 शावकों को जन्म दिया. बांधवगढ़ आने वाला हर टूरिस्ट कनकटी और उसके तीन शावकों को देखना चाहता था.

साल 2014 का जून महीने ने बांधवगढ़ का वो मंजर देखा जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. चक्रधारा इलाके में एक सुबह कनकटी की लाश मिली. कुछ ही दूर उसके दो और बच्चों की लाश मिली. पोर्स्टमार्टम रिपार्ट से पता चला कि कनकटी की मौत किसी दूसरे बाघ के साथ लड़ाई में हुई है और उसी बाघ ने कनकटी के दोनों शावकों को भी मारा हैं. अगर इन तीनों को मारने वाला सच में लंगड़ी का बेटा हैं तो बाघों की दुनिया का ये एक और अजीब सच है.