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इंदिरा गांधी के खिलाफ कैंपेन: कीचड़ अगर फैला तो बेदाग कोई नहीं रहेगा

इंदिरा गांधी के चरित्र हनन का नया कैंपेन कहां जाकर रूकेगा?

Rakesh Kayasth

कुछ लोग बड़ी शख्सियतों के बेडरूम में झांकते हैं, ये जानने के लिए अंदर कुछ अनैतिक तो नहीं हो रहा. ये फितरत पूरी दुनिया में है. लेकिन भारत में यह प्रवृति अलग ढंग से है. निजी जिंदगी को आधार बनाकर बड़ी शख्सियतों और खासकर राजनेताओं का चरित्र हनन करना यहां लोगो पसंदीदा शगल है.

सामने वाले को नंगा साबित करने के लिए अगर अपने कपड़े उतारने पड़े तो भी कोई हर्ज नहीं. सोशल मीडिया पर नजर डालिए. बड़ी शख्सियतों की मॉर्फ की गई तस्वीरें और उनसे जुड़ी अनगिनत कपोल-कल्पित कहानियां आपको मिल जाएंगी. चरित्र हनन का ये खेल कहीं छिट-पुट तरीके से खेला जा रहा है, तो कहीं बेहद संगठित रूप में. इसका ताजा शिकार बनी हैं, भारत की आयरन लेडी इंदिरा गांधी.


इंदिरा गांधी को लेकर घिनौना कैंपेन

सोशल मीडिया पर आजकल एक खबर वायरल है. एक किताब का हवाला देते हुए भारत की सबसे ताकतवर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का चरित्रहनन किया जा रहा है. इंदिरा जी की निजी जिंदगी से जुड़े कई प्रसंग अभद्र भाषा में अश्लील साहित्य की तरह परोसे जा रहे हैं.

ये कहानी पंडित नेहरू के निजी सचिव रहे एम.ओ.मथाई की किताब रेमनिसन्स ऑफ नेहरू एज के हवाले से पेश की जा रही है. लेखक ने इस किताब में कथित तौर पर यह दावा किया है कि मिसेज गांधी के साथ 12 साल तक उनके शारीरिक संबंध रहे. किताब के कुछ हिस्से पोर्नोग्राफी की तरह लगते हैं. यह मानना कठिन है कि देश के पहले प्रधानमंत्री के साथ 16 साल तक काम करने वाला कोई व्यक्ति इतनी घटिया भाषा में इतनी छिछोरी बातें लिख सकता है.

किताब की असलियत

यह सच है कि एम.ओ.मथाई की किताब रेमनिसन्स ऑफ नेहरू एज 1978 में छपी थी. लेकिन इस किताब में इंदिरा गांधी से जुड़े वे प्रसंग नहीं थे, जिनका अंधाधुंध प्रचार सोशल मीडिया पर किया जा रहा है. किताब में इस बात का जिक्र जरूर है कि लेखक ने `शी’ के नाम से एक चैप्टर रखा था, जिसमें उनकी निजी जिंदगी से जुड़े कुछ संस्मरण थे.

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लेखक ने इस चैप्टर को छपने से पहले ही हटा लिया. हालांकि बाद में किताब के प्रकाशक ने दावा किया उन्होने `शी’ नाम से चैप्टर होने का शिगूफा किताब के प्रमोशन के लिए जानबूझकर छेड़ा था, असल में ऐसा कोई चैप्टर था ही नहीं. अब सवाल ये है कि जब किताब में वह चैप्टर ही नहीं है, तो फिर उसके हवाले से इंदिरा गांधी के कथित अंतरंग जीवन की कहानियां कहां से आ रही हैं और कौन इसे फैला रहा है?

क्या ये व्यवस्थित दुष्प्रचार है?

2017 इंदिरा गांधी की जन्मशती है. क्या ऐसे समय चरित्र हनन का कैंपेन शुरू होना महज एक संयोग है? सोशल मीडिया पर ढूंढने पर पता चलता है कि किताब के कथित अंश अंग्रेजी की एक वेबसाइट ने छापे हैं. क्या वेबसाइट ये बताएगा कि जो चीज छपी ही नहीं, उसे उसने कहां से हासिल किया और क्यों छापा? सवाल फिजूल है, क्योंकि वेबसाइट पर जाकर आप ये पता ही नहीं कर सकते कि इसे कौन लोग चला रहे हैं, अलबत्ता इस पर पड़ी सामग्री देखकर इसकी राजनीतिक प्रतिबद्धता का अंदाजा आपको बखूबी हो जाएगा.

नेहरू-गांधी परिवार पर निजी हमले संघ के प्रचार तंत्र का हिस्सा हमेशा से रहे हैं. नेहरू की निजी जिंदगी को लेकर प्रचार और दुष्प्रचार हमेशा से चलता आया है. लेकिन इंदिरा गांधी पहले कभी इस तरह निशाने पर नहीं रहीं. इसकी दो वजहें हैं. उग्र राष्ट्रवाद के सवाल पर संघ वैचारिक रूप से कुछ मामलों में खुद को इंदिरा के करीब पाता है. दूसरी और ज्यादा बड़ी वजह है उनका महिला होना. सोशल मीडिया पर जब ये कहानी वायरल हुई तब बीजेपी के कई समर्थकों ने भी इसकी कड़ी आलोचना की और इसे अशोभनीय बताया.

बात निकली तो दूर तलक जाएगी..

मीडिया और खासकर सोशल मीडिया को लेकर केंद्र सरकार का रुख पिछली सरकारों के मुकाबले सख्त रहा है. प्रधानमंत्री पर ओछी टिप्पणी करने वाले कई लोग अलग-अलग राज्यों में जेल भेजे जा चुके हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या केंद्र सरकार देश के इतिहास की शीर्षस्थ महिला नेता के खिलाफ बेहूदा प्रचार करने वालों पर लगाम लगाएगी? एक पार्टी या एक विचारधारा से ऊपर उठकर सरकार यह सोचेगी कि चरित्र हत्या का यह खेल देश और समाज को कहां ले जाएगा?

चरित्रहनन का यह खेल आगे बढ़ा तो बेदाग कौन रह पाएगा? आप मौजूदा दौर के नेताओं के नाम लीजिए और सोचिए कि उनकी  निजी जिंदगी से जुड़े कितने ऐसे पन्ने हैं, जिन पर मसालेदार कहानियां बनाकर बेची जा सकती हैं.

हर पार्टी के नेता की सीडी आ चुकी है. विवाहेत्तर संबंध, नाजायज संबंध, नाजायज औलादें, कहानियों का एक अंतहीन सिलसिला है. लेकिन सवाल ये है कि अगर ये सब निजी जीवन में है, हमें और आपको इन सबसे क्या लेना-देना.

राजनेताओं की आलोचना उनकी राजनीतिक कार्यकलापों और नीतियों को लेकर होनी चाहिए, निजी जिंदगी को आधार बनाकर नहीं. अगर कीचड़ उछालने की प्रतियोगिता आगे बढ़ी तो फिर बीजेपी के शीर्ष पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी भी कहां बेदाग रह पाएंगे.

अटल जी भारत के इतिहास के सबसे सम्मानित राजनीतिक शख्सियतों में एक हैं. लेकिन अगर किसी किताब के आधार पर ही चरित्र तय होना है, तो फिर उनके बारे में क्या कहा जाये? जनसंघ के संस्थापक बलराज मधोक अपनी आत्मकथा में अटल जी बारे में जो कुछ लिख गए हैं, उन्हें दोहरा पाना तक संभव नहीं है.

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