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आजादी के 70 साल: नए IAS अफसरों की नजर से न्यू इंडिया

सिविल सेवाएं बदलाव का वाहक बनी रहेंगी और जो करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव के लिए एकमात्र शक्तिशाली और प्रभावी माध्यम है

Aditi Garg

(स्वतंत्रता दिवस के 70 साल पूरे होने के मौके पर यह आलेख न्यू इंडिया में लोक सेवाओं की बदलती भूमिका पर दो युवा लोकसेवकों के द्वारा लिखी गई है. ये उनके व्यक्तिगत विचार हैं.)

भारत में सिविल सर्विसेज की प्रतिष्ठा लंबे समय से रही है और विभिन्न शैक्षणिक और पेशेवर पृष्ठभूमि वाली युवा प्रतिभाओं ने इसे अपने करियर के तौर पर प्राथमिकता दी है. बतौर करियर इसे अपनाने के पीछे प्रेरणा अलग-अलग व्यक्ति के लिए अलग-अलग रही हैं. चाहे यह आदर्शवाद के प्रति आकर्षण और जनता के लिए काम करने की स्वाभाविक प्रतिबद्धता के रूप में रहा हो या सत्ता और इस सेवा से जुड़े धन इसके लिए प्रेरणा रहे हों, लेकिन पिछले कई दशकों से इस सेवा का अनूठा आकर्षण उबाल पर है.


हालांकि पिछले कुछ सालों में जमीनी स्तर पर एक विचार मजबूत हुआ है कि जीवन के सभी क्षेत्रों में बाजार की शक्तियों के बढ़ते प्रभाव और कल्याण कार्यों में, और यहां तक कि अस्तित्व के लिए भी राज्य पर निर्भरता घटी है. इसलिए समाज में लोकसेवकों की भूमिका और राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में उनका योगदान कम हुआ है.

लोकसेवाओं में पहली बार प्रवेश करते हुए हम महसूस करते हैं कि सच्चाई से बढ़कर कुछ नहीं होती और नए लोकसेवकों में से इन लेखकों समेत कई की कहानियां, जिस पर हम दोबारा लौटेंगे, इस प्रस्थापना से बिल्कुल उलट है.

भारत की आर्थिक और सामाजिक-राजनीतिक परिवेश में तेजी से बदलाव युवा लोकसेवकों के लिए नई दुविधा और चुनौतियां बनकर पेश है. किसी भी गतिशील और प्रगतिशील समाज में जनादेश में बदलाव आ सकता है और यह जरूरत के हिसाब से विकसित हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से यह कमजोर नहीं होना चाहिए. जिस समाज में अस्थिरता लगातार बढ़ रही हो, वहां कई मायनों में ‘तात्कालिक आपातस्थिति’ बन आती है, जब जमीनी स्तर पर कर्त्तव्य और क्षमता का उस प्रतिबद्धता के साथ निर्वहन करने की जरूरत आ पड़ती है जैसी पहले कभी नहीं पड़ी थी. जिस संकल्पना का उदाहरण रखा गया है वह सच्चाई नहीं, केवल मिथक है, जिसकी कई वजह हैं.

सबसे पहले ‘बाजार का चमत्कार’ असर करने लगे, इसके लिए जरूरत है कि हम उन संस्थानों को सक्षम बनाएं, जिन्हें केवल राज्य उपलब्ध करा सकता है. हर्नाडो डि सोटो ने अपनी चर्चित पुस्तक ‘द मिस्ट्री ऑफ कैपिटल’ में बताया है कि उसी समाज का दीर्घकालिक आर्थिक विकास हो पाता है, जहां कानून का राज और संपत्ति का अधिकार लागू किया जाता है.

कई मौके आते हैं जब बाजार अपनी इकलौती सोच के मुताबिक सिर्फ Profit के ‘P’ के पीछे भागता है और People और Planet के बाकी दो ‘P’ को नजरअंदाज करने लगता है.

इसके लिए मजबूत संपत्ति का अधिकार, प्रभावी कानून, सुशासन और एक मजबूत नियामक व्यवस्था की जरूरत होती है और ये सभी आज के अत्याधुनिक प्रशासन के दायरे में आते हैं. दूसरी बात ये है कि इस बात के प्रमाण हैं कि आर्थिक सुधारों ने करोड़ों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है. अमीर और गरीब के बीच की खाई बिना किसी और अधिक हलचल के अब और घटनी चाहिए.

किसी महत्वाकांक्षी समाज में इन उद्देश्यों को पूरा करना तभी संभव है, जब लोकसेवकों और खासकर युवा लोकसेवकों का योगदान रचनात्मक हो, जो विभिन्न योजनाओं को लागू करते हैं और जो सभी सरकारी प्रयासों की सफलता और असफलता के केंद्र में होते हैं. तीसरी बात ये है कि यह वक्त की जरूरत है कि समाज के करोड़ों वंचितों को इतना समर्थ बनाया जाए कि कि वे देश में 70 साल के दौरान आई समृद्धि में शरीक हो सकें.

आधुनिक प्रशासकों के सामने भयानक चुनौतियां हैं. लोक प्रशासकों के काम में लगातार जटिलता आ रही है. इससे निपटने के लिए यह वक्त की जरूरत है कि पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन, आपदा प्रबंधन, व्यापार वार्ता और तकनीकी आविष्कार के बीच लोकसेवकों को दक्षता हासिल करनी होगी.

ग्रामीण इलाकों में जिन बातों पर फोकस रहा है उनमें शिक्षा और चिकित्सा जैसी मूलभूत सेवाओं की व्यवस्था, गरीबों के लिए आय का जरिया, उत्पादक संपत्ति की व्यवस्था शामिल हैं ताकि युवा भारत का भविष्य सुरक्षित हो सके. शहरों में चुनौतियां कई गुणा ज्यादा हैं. बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ फोकस अब साफ-सफाई, मकान, जलापूर्ति हो गया है.

आधुनिक जरूरतों के मुताबिक शहरों में इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना और लोगों में ‘सामुदायिक जीवन और शहरी संस्कृति’ का भाव सुरक्षित करने भी जरूरत है. भारत के 70 साल पूरा होने पर प्राथमिक शिक्षा, लोक स्वास्थ्य और बुनियादी आधारभूत संरचना के लिए गुणवत्तापूर्ण सुविधा सुनिश्चित करने का अधूरा एजेंडा सामने है.

प्रशासन के लिए वास्तविक चुनौती भौतिक संरचना से ज्यादा मानव संसाधनों से जुड़ी हैं. अब सारा ध्यान निजी उत्पादन क्षमता का विकास, स्पर्धा बढ़ाने और उद्यमिता के प्रोत्साहन पर है. इस तरह इन मुद्दों को हल करने के तरीके बने हैं और उन पर दोबारा ध्यान देने की जरूरत है.

हम अब संसाधनों की कमी से नहीं जूझ रहे हैं बल्कि समस्या संसाधनों के इस्तेमाल की है. चाहे यह जमीन हो, वित्त हो या कुशल श्रम-संसाधनों के पुनर्वितरण और उत्पादक पूंजी के स्वामित्व का हस्तांतरण. अब ये उद्योग की पूरी प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं और इससे हमारी उत्पादन क्षमता भी प्रभावित हो रही है.

हालांकि नीति निर्देश केंद्र सरकार की ओर से आते हैं, लेकिन सारे क्रियान्वयन राज्यों में, और इससे भी ज्यादा जिलों में होते हैं जहां युवा लोकप्रशासकों के पास आधुनिकीकरण, मध्यस्थता और नियंत्रण के लिए जबरदस्त संभावना है. नवाचार अग्रणी भूमिका निभाने से होता है और इसमें नए लोक सेवक बड़ी भूमिका निभा सकते हैं.

लोकसेवक के लिए कर गुजरने के मौके हमेशा हैं और इसके लिए तानाबाना कलेक्टर के जरिए बुना गया है. हालांकि अब कई राज्यों में विकास का एजेंडा अलग-अलग एजेंसियों या पंचायतों पर निर्भर हो गया है और संबंधित विभागों के जरिए इस पर अमल होने लगा है, फिर भी यह कलेक्टर ही होता है जिसके पास सही मायने में अंतर्दृष्टि होती है और जो शासन पर पकड़ रखता है.

इस तरह उसकी भूमिका नागरिकों तक बिना किसी बाधा के सेवाएं उपलब्ध कराने में सबसे अहम हो जाती है. स्थानीय स्तर पर सभी सेवाओं को उपलब्ध कराने जिम्मेदारी कलेक्टर की बनी हुई है और इस क्षमता में धार लाकर वे बड़ा फर्क ला सकते हैं. हाल में जिला कलेक्टरों के साथ वीडियो कॉन्फ्रेस में 2017-2022 के दौरान विकास का आह्वान करते हुए प्रधानमंत्री ने इस तथ्य को चिन्हित किया है.

निष्कर्ष के तौर पर हम एक बार फिर लोकसेवकों की सिकुड़ती भूमिका और प्रासंगिकता के विषय पर लौटें, जहां से बात शुरू हुई थी. ब्रिटेन के शीर्ष संस्थानों में पढ़कर और लंदन में कई शीर्ष बैंकिंग और कन्सल्टिंग फर्म्म में कुछ सालों तक काम करने के बाद हमने (लेखकों ने) पाया कि लोकसेवा को हमारी जरूरत है, जो हमें बुला रही है.

नए लोकसेवकों के इस पेशे से जुड़ने के साथ ही उनमें सही रास्ते पर चलने का भाव आ जाता है, उनमें आदर्शवाद और कल्पनाशीलता कूट-कूट कर भरी होती है. भारत पहले से ही ऐतिहासिक परिवर्तन के दौर में है. ऐसे समय में, जबकि युवा भारत न्यू इंडिया तैयार करने के लिए खड़ा है, हमारा सामूहिक प्रयास ही कल का भविष्य तय करेगा.

पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि सिविल सेवाएं बदलाव का वाहक बनी रहेंगी और सबसे महत्वपूर्ण बात कि करोड़ों लोगों के जीवन में बदलाव के लिए यह एकमात्र शक्तिशाली और प्रभावी माध्यम है, जिसमें लोकसेवक महान देश और अपनी जनता के लिए अपना समूचा जीवन न्योछावर कर देते हैं.