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जन्मदिन विशेष: काश! मैंने नुसरत को सामने बैठकर सुना होता

नुसरत के अब्बा नहीं चाहते थे कि वो अपनी औलाद को भी कव्वाल बनाए क्योंकि उन्हें लगता था कि कव्वालों की लोग इज्जत नहीं किया करते

Shivendra Kumar Singh

नुसरत की मौत के बाद उनकी हवेली के हालात और राहत फतेह अली खान से मुलाकात की यादें...

साल 2006 की बात है. भारतीय क्रिकेट टीम पाकिस्तान के दौरे पर थी. एक खेल पत्रकार होने के नाते मैं भी उस सीरीज को कवर करने के लिए पाकिस्तान गया हुआ था. टेस्ट सीरीज का दूसरा मैच फैसलाबाद में था. फैसलाबाद शहर का मेरे लिए बस एक ही परिचय है- नुसरत फतेह अली खान का शहर. नुसरत साहब को दुनिया से गए करीब नौ साल का वक्त बीत चुका था, लेकिन उनकी आवाज की खनक हर वक्त कानों में बिल्कुल ताजा रहती है. यूं भी इंसान चला जाता है, आवाज नहीं जाती.


दिल किया कि क्यों ना ढूंढा जाए कि फैसलाबाद में नुसरत फतेह अली खान का क्या कुछ बाकी रह गया है. हम जिस होटल में ठहरे थे वहां से उनकी हवेली का पता चल गया. साथ में ये मालूमात भी हुई कि हूजूर वहां जाने से कोई फायदा नहीं है अब वहां कोई रहता नहीं. फिर भी उस बाकमाल कलाकार की रूह के कुछ निशां तो होंगे, ये सोचकर हम उस हवेली के लिए निकल गए. आस-पास की दुकानों से पता लगाकर जब हवेली तक पहुंचे तो हवेली खुली हुई थी. वाकई वहां किसी के रहने की आहट तक नहीं थी. दरवाजे खुले हुए थे. कुछ ही मिनटों में एक बड़े संकोच के साथ हम हवेली के भीतर थे. मेरे साथी कैमरामैन हवेली को कैमरे में कैद कर रहे थे और मैं एक कोने में खड़ा खड़ा नुसरत साहब की महफिलों की भीड़ और हवेली के सन्नाटे को देखकर गुनगुना रहा था.

इस कव्वाली का ही एक और रंग आपको दिखाते हैं जिसका लुत्फ उठाने वालों में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और पाकिस्तान क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इमरान खान भी नजर आएंगे.

जलंधर से फैसलाबाद गया नुसरत का परिवार

नुसरत साहब की हवेली के बारे में और आगे का किस्सा बताने से पहले आपको थोड़ा इतिहास में ले चलता हूं. आपको बताता हूं कि नुसरत साहब की गायकी से मेरा परिचय कैसे हुआ था. साल 1992 की बात है. पाकिस्तान की टीम ने विश्व कप जीता था और इमरान खान के हाथ में पहली बार विश्व कप आया था. उस वक्त ड्रेसिंग रूम में जो जश्न था उसकी एक छोटी सी क्लिप देखिए और आपको बैकग्राउंड में नुसरत साहब की कव्वाली ‘अल्ला हू अल्ला हू’ सुनाई देगी. मेरी उम्र उस वक्त 15 साल की थी लिहाजा मैंने उस समय तक नुसरत फतेह अली खान को सुना नहीं था. बाद में जब मैंने उन्हें सुनना शुरू किया तो वो एक अलग ही रूहानियत का अहसास था. शायद ही नुसरत फतेह अली खान की गाई एकाध ऐसी चीज हो जो कानों तक ना गई हो. खैर, आप पाकिस्तान क्रिकेट टीम का जश्न देखिए.

खैर, चलिए अब वापस लौटते हैं नुसरत साहब की हवेली में, जिस हवेली में बैठे-बैठे उनके बारे में पहले से पढ़ी कुछ बातें जेहन में घूम रही थीं. इंटरनेट पर उनके बारे में जो कुछ मौजूद है उसके मुताबिक 13 अक्टूबर, 1948 को इसी शहर में उनका जन्म हुआ था. आजादी के बाद उनका परिवार जलंधर से पाकिस्तान चला गया था. नुसरत फतेह अली के अब्बा नहीं चाहते थे कि वो अपनी तरह अपनी औलाद को भी कव्वाल बनाए. उन्हें लगता था कि कव्वालों की लोग इज्जत नहीं किया करते. ये अलग बात है कि बाद में वो नुसरत फतेह अली खान को संगीत सीखने की इजाजत दे बैठे और उसके बाद जो कुछ हुआ वो पूरी दुनिया में दर्ज है.

जेहन में एक दोहरी तस्वीर चल रही थी. उस वक्त तक उनके तमाम वीडियो देख चुका था लिहाजा एक तरफ हवेली का सन्नाटा देख रहा था और दूसरी तरफ उनकी महफिलों में नाचते झूमते लोग याद आ रहे थे. जिस शख्स की आवाज आसमान की बुलंदियों तक पहुंचती थी उसकी हवेली में सन्नाटा पसरा हुआ था. सच कहूं तो वहां ज्यादा देर ठहर नहीं पाए.

हवेली से निकलने के बाद हमने एक चाय वाले से बातचीत की. उसने बताया कि नुसरत साहेब की हवेली पाकिस्तान पुलिस के किसी बड़े अधिकारी ने खरीद ली थी. चाय वाले ने ये भी बताया कि खान साहब के गुजर जाने के बाद उस हवेली को लेकर परिवार में विवाद भी हुए थे. हालांकि हम उस चाय वाले के दावों की सच्चाई को परखने की स्थिति में नहीं थे. बस ये बात दिमाग में रह गई कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता और नुसरत साहब की कव्वालियों से निकलकर एक शेर जेहन में घूमने लगा.

दबा के कब्र में सब चल दिए दुआ ना सलाम

जरा सी देर में ये क्या हो गया जमाने को

खैर, मुझे याद है कि वहां से लौटने के बाद हमने राहत फतेह अली खान के नंबर का इंतजाम किया और उन्हें भी फोन लगाया. राहत फतेह अली खान, नुसरत फतेह अली खान के छोटे भाई फारूख अली खान के बेटे हैं. ये स्टोरी हमारे साथी रिपोर्टर को फाइल करनी थी इसलिए उन्होंने राहत फतेह अली खान से मुलाकात का वक्त लिया. हम उनके पास भी गए.

राहत फतेह अली खान के घर पहुंचे तो वो आराम कर रहे थे. थोड़ी देर में वो हाजिर हुए. बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ. राहत फतेह अली खान कहने लगे, ‘जो है वो उन्हीं का दिया हुआ है. जब छोटा था तब से वो अपने साथ स्टेज पर बिठाते थे. आवाज लगवाते थे’.

बॉलीवुड में भी बिखेरा आवाज़ का जादू

इसके बाद हमने राहत फतेह अली खान से गुजारिश की कि वो नुसरत साहब की कुछ चीजें हमें सुनाएं. पास रखे हारमोनियम के साथ गाते हुए उन्होंने ‘सांसो की माला पे’ और ‘नित खैर मंगा’ जैसी चीजें सुनाईं. राहत फतेह अली खान ऐसे तमाम कार्यक्रमों की यादें साझा कर रहे थे जब नुसरत साहब की गायकी से पहले उन्हें कुछ देर गाने का मौका मिलता था.

आपको एक ऐसा ही वीडियो दिखाते हैं जिसमें राहत फतेह अली खान स्टेज पर नुसरत साहब के साथ बैठे हुए हैं और नुसरत साहब उनसे आवाज लगवा रहे हैं.

ये बात हम जानते ही थे कि नुसरत फतेह अली खान ने हिंदी फिल्मों के लिए भी काम किया था. शेखर कपूर की फिल्म बैंडिट क्वीन के लिए नुसरत फतेह अली खान ने ही संगीत तैयार किया था. ये संयोग की ही बात थी कि जब हम राहत फतेह अली खान के साथ बैठे थे तब तक हिंदी फिल्मों में उनका सफर भी शुरू हो चुका था.

उस समय तक राहत फतेह अली खान ने पूजा भट्ट की बनाई फिल्म ‘पाप’ में सिर्फ एक गाना गाया था, लगन लागी तुमसे मन की लगन. इस फिल्म में राहत के साथ उनके पिता फारूख अली खान ने भी गाया था, हालांकि फिल्म के रिलीज से पहले वो दुनिया छोड़ चुके थे. आपको ‘पाप’ फिल्म का वही गाना सुनाते हैं, जो बतौर निर्देशक पूजा भट्ट की पहली फिल्म भी थी.

राहत फतेह अली खान से हुई मुलाकात, नुसरत फतेह अली खान की हवेली के हालात को देखकर टीवी की स्टोरी तो फाइल तो गई लेकिन जेहन में ये अफसोस अब भी है कि काश! नुसरत साहब को लाइव सुनने का मौका मिला होता.