view all

कहानी: राशिद की बर्फी...

क्या हुआ जब राशिद का दिल बर्फी के लिए मचला

Pradeep Shadangule

राशिद को सुबह से ही न जाने क्या भूत सवार था, कि बस थोड़ी देर में बर्फी की धुन लेकर बैठ जाता था. यूं मांग कोई नाजायज़ तो नहीं थी, पर अम्मी भी क्या करती घर के हालात ही ऐसे नहीं थे, इसीलिये सुबह से उसे यहां वहां कर टहला रही थी.आखिरकार जब न बन पड़ी तो ये कहकर कि “शाम को जब अब्बू आयेंगे तो उनसे मंगा लेंगे” उसे टरका दिया.

वैसे आमतौर पर राशिद का दिल यूं मचलता नहीं. मगर आज स्कूल से लौटते वक्त रास्ते में हलवाई की दुकान पर ताजी बर्फी ने उसे बेईमान कर दिया.…बस तभी से बर्फी दिल में अटक गई और जुबान से फुटने लगी.


खेलने में भी आज उसका मन न लगता था. सो आधे में ही छोड़कर, वो दरवाजे की सीढ़ियों पर आकर बैठा ही था कि बस कुछ ही लम्हों में उसकी मुराद पूरी, यानी रजा मुराद हो गई. सामने से अब्बू अपने किसी साथी के साथ बतियाते चले आ रहे थे. आज पहली बार जीवन में अब्बू को देखकर उसके मुंह मे पानी आया होगा.

पर ज्यों ज्यों अब्बू पास आते गए उसे अपनी हसरत पिघलती सी दिखाई देने लगी. अब्बू किसी के बारे में अपने साथी से बहुत गुस्से में बातें कर रहे थे, जोर जोर से हाथ हिलाकर. और सही भी था, रोज़ तो अब्बू आते ही उसे गोद में उठाकर चूमते और शहजादा वगैरह बुलाते मगर आज बगल से यूं निकले जैसे वो पैदा ही न हुआ हो. पर अभी राशिद हारा नहीं था. झटपट उठ, उनके पीछे घर के अंदर चल दिया. औरतों के दिमाग़ में,आदमियों को समझने का न जाने कौन सा ख़ास पुर्जा लगा होता है कि अम्मी ने गुसलखाने से ही भांप लिया, कि आज मिजाज़ कुछ दुरूस्त नहीं है.

अब्बू ने हाथ पांव धोकर पानी का गिलास लिया और पीकर एक लंबी सांस ली. घरेलू जिंदगी की किसी पुरानी तहजीब की तरह अम्मी ने छूटते ही पूछा “क्या हुआ… किसी से अनबन हो गई क्या?". अब्बू भी मानो इंतजार ही कर रहे थे. उन्होंने भी तहजीब निभाते हुए कहा “अरे क्या बताऊं…वो दो टके का सुपरवाईजर, न जाने खुद को क्या समझता है…जी चाहता है उसे ऊंगली और अंगुठे के बीच रखकर मसल दूं.

राशिद ने अब्बू को इस क़दर गुस्से में कभी न देखा था, मगर क्या करे, बर्फी का बुखार भी तो आज ही चढ़ा था. पर अब भी, ये बात उसके गले न उतरती थी कि आज उसके प्यार का जादू न चल सकेगा. सो अपनी मासूम अदाओं से अब्बू को पिघलाने का नेक ख्याल ले वो उनकी ओर दौड़ पडा. अब्बू अभी किस्से के बस उस आखरी पड़ाव पर थे,जब वो सुपरवाईजर को दिया हुआ अपना करारा जवाब बताने ही वाले थे कि राशिद ने उनका पजामा पकड़ लिया और “अब्बू अब्बू”का मीठा सुर उनके कानों मे घोलने की कोशिश करने लगा.

अब्बू ने पहले तो नज़रअंदाज करते हुए अपना किस्सा जारी रखा,लेकिन ये देखकर कि अब्बू पर कोई असर नहीं है राशिद ने अपना सुर और हरकत तेज कर दी. मगर ऐसे हालात के लिए उसकी अब तक की जिंदगी का तर्जुबा बहुत कम था. चिढ़कर अब्बू ने गुस्से से फूलते हुए अपने दोनो बड़े बड़े पंजे उसकी छाती पर रखकर जोर का धक्का दिया और मुंह से आवाज निकाली “हट साले… जरा देर चुप नहीं रह सकता.”

अपनी पूरी जिंदगी में राशिद कभी इतनी जिल्ल्त से फर्श पर न गिरा था. उसे चोट तो नहीं लगी पर दिल टूट गया. अम्मी के मुंह से हैरत और गुस्से की मिली जुली सी आवाज निकली और उन्होंने उठकर उसे गले से लगा लिया और पलटकर अब्बू से कहा “क्या करते हैं रहम नहीं आता.”अम्मी के दुलार के मरहम से उसका दिल और जलने लगा और वो उन्हें दोनो हाथों से झटककर बाहर की ओर चल दिया. अकबर और सलीम के बीच फंसी औरत की तरह कश्मकश में उलझकर ये सोचते हुए कि बच्चे को तो कैसे भी मनाया जा सकता है ,अम्मी अब्बू के सहारे को रूक गयी.

बर्फी तो अब उसे पुराने ख्वाब की तरह जान पड़ रही थी. दिल करता था ऐसे रोए कि आसमान हिल जाए. इतना अफसोस तो उसे तब भी न हुआ था जब भाईसाहब ने उसके ईद के होमर्वक वाली कॉपी चंद लम्हों मे तारतार कर दी थी. रोते हुए भी सीढ़ियों पर बैठे राशिद आते जाते लोगों और गाड़ियों की आवाजाही को देख रहा था. न जाने इसमें ऐसा क्या था जिसमें उसे हमेशा मजा आता था.

तभी एक स्कूटर जिसे एक अधेड़ उम्र का आदमी चला रहा था उसके सामने से गुजरी. उसमें सीट के नीचे की ओर लटकी प्लास्टिक की थैली छिटककर सड़क पर जा गिरी. स्कूटर वाला कुछ तो अपनी मौज में, और कुछ रफ्तार के चलते इस बात को दर्ज न कर सका.

बहरहाल राशिद के सामने अब एक अलग तरह की चुनौती और लुत्फ के हालात पैदा हो चुके थे. कुछ देर लिफाफे से खत का मजमून भांप लेने की तर्ज पर वो थैली की तरफ देखता रहा. मगर फिर अपने अंदर से चार्ज की अावाज सुनकर थैली की ओर बढ़ा और पास पहुंचकर झटके से उठा लिया. हाथों से थैली के मुंह को चौड़ा कर अंदर झांका तो कुछ कागज थे. एक हाथ से कागजों को हटाकर देखा तो लगा किसी ने भरी ठंड मे पूरी बाल्टी पानी उडेल दिया हो. 10 रूपये के नोटों की गड्डी के पांच बंडल.

उसने थैली के अंदर ही गड्डी को हाथ में लेकर देखा और उसके सामने बर्फी की पूरी दुकान यूं तैर गई जैसे कामयाबी हाथ लगते ही पुरानी मरी हुई हसरतें दिल में ताजा हो उठती हैं. उसने सर उठाकर उस ओर देखा जिस ओर स्कूटर वाला गया था, पर कहां …उसने तो अब तक घर जाकर खाना भी खा लिया होगा.

घर की तरफ पलटा, तो उसके सामने अब्बू की तनाव और पसीने से भरी शक्ल घूम गई. अभी तो धक्का ही दिया था, रूपए देखकर तो शायद तमाचा रसीद कर दें और कहें “साले चुराकर लाया है”. रूपये जाते रहेंगे सो अलग. पर भाई…. नहीं भाई भी नहीं, बस सारे रूपये चट कर जाएगा और एक टॉफी भी नहीं देगा. और अम्मी से ये बात जाहिर करना तो मानों अब्बू को ही दूसरे तरीके से बताना है, हश्र वही होना है.

इस कम उम्र में ही, दुनिया उसे छोटी जान पड़ने लगी. यूं भी मन में आया कि क्यों न पहले सीधे हलवाई की दुकान पर जाकर उस नामुराद मुराद को पूरा कर लिया जाए जिसकी वजह से आज अपनों से जिल्लत मिली है. लेकिन उससे भी तो ये अनगिनत नोट खत्म न होंगे. अब तक देखी मुफ़लिसी के बाद आज उसे दुनिया सस्ती लगने लगी. अचानक तेजी से आती हुई गाड़ी की आवाज सुनकर उसे अहसास हुआ कि वो काफी देर से सड़क के बीचों बीच खड़ा है. अम्मी भी अब तक शायद अब्बू के गुस्से को पी चुकी थी सो उसे आवाज देने लगी. बस ये उसके पास आखिरी मौका था यहां से निकल जाने का.

पेड़ के पास की एक महफूज और आसानी से पहचानी जा सकने वाली जगह पर उसने गड्ढा खोदा और थैली से दो नोट निकाल कर थैली को गड्ढे में रख मिट्टी से भर दिया और निशानी के तौर पर एक बड़ा सा पत्थर उस पर रख दिया.

आज उससे पायजामे की नन्हीं सी जेब का वजन न संभलता था. रह रहकर हाथ जेब पर जाकर रूपयों के सही सलामत होने की ताकीद कर लेता था. तरह तरह से रूपयों को खर्च करने के तरीके उसके मन में आ रहे थे. कुछ पैसे वो अम्मी के लिए भी बचा लेगा और जब जरूरत होगी निकालता रहेगा.

कभी सोचा भी न था कि वो ऐसे हालात मे भी बर्फी लेने आ सकता है. एक हाथ मे बर्फी का पैकेट थामे जैसे ही राशिद ने कड़क दस रूपये का नोट हलवाई को थमाया तो किसी ने कहा “तो आखिर अम्मी ने तुम्हें रूपये दे ही दिये”. उसका दिल धक्क रह गया पलटकर देखा तो भाईजान सामने खड़े थे. वो मुस्कुराहट और डर के बीच की हामी भर चलने को हुआ मगर भाईजान ने “जरा रूको”कहकर पैकट से काफी बर्फियां निकाल ली और कंधा थपथपाते हुए आगे बढ़ने का इशारा किया.

अपने गाढ़े पसीने की कमाई कोई दूसरा मार ले जाए तो अफसोस जायज है पर तभी सामने रसीले बर्फ के गोले को देखकर इस ग़म को खुशी ने काबू कर लिया और उसने बेकाबू होकर एक चुस्की का आर्डर दे दिया. बर्फियां और चुस्की…मजा आ गया.

मगर घर का माहौल उम्मीद से एकदम अलग था. उसे न पाकर अम्मी हैरान थी और अब्बा उसकी तलाश में बाहर निकल गए थे. अम्मी ने उसे देखते ही सीने से चिपटा लिया और इस तरह बुरा नहीं मानना चाहिए समझाते हुए चूमने और माफी मांगने लगी. अब्बा ने भी आते ही दौड़कर उसे गले से लगा लिया. पैसा और प्यार दोनों…आज खुदा खूब मेहरबान है. पहली बार आज प्रेम के सुख और पैसों की चिंता के बीच उसे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला.

सुबह जब वो स्कूल के लिए निकलने ही वाला था कि भाईजान रास्ते में पैर अड़ाकर खड़े हो उसे घूरने लगे, उसकी सांस अटकने लगी. “सुनो मियां लपड़झंडीस …अम्मी और अब्बा को भले ही न पता चल हो मग़र मुझे बेवकूफ बनाना तुम्हारे बस की बात नहीं है. मुझे अच्छी तरह पता है कि कल अम्मी ने तुम्हें पैसे नहीं दिये थे.” भाईजान ऐसे खैलों की पैंतरेबाजियां खूब समझते थे.

इतना कहकर उन्होंने एक पल मेरे चेहरे के हालात का जायजा लिया और इत्मीनान पाकर बोले “अब झटपट उगल दो कि तुम्हारे पास पैसे कहां से आए वर्ना तुम भी जानते हो कि गर अब्बू को ये बात पता चल गई तो तुम्हारा हश्र क्या होगा….

अल्लाह ऐसा जालिम भाई किसी को न दे. उसने मासूमियत से आंखे छलकाकर भाई की ओर देखा मगर कोई फायदा नहीं. हारकर उसे सारी बात उन्हें बतानी ही पड़ी. भाईजान की आंखें सुनते ही चमक पड़ी. उन्होंने उसे खींचकर गले से लगा लिया.

उसी जगह पेड़ के पास पहुंचकर राशिद रूक गया. दिल पर पत्थर रखकर निशानी वाले पत्थर की ओर इशारा किया. भाईजान के सब्र का बांध टूट चुका था, वो मशीन की सी तेजी से मिट्टी हटाने लगे और कुछ ही देर मे अंदर से प्लास्टिक की थैली झलकने लगी. गम गले में फंसकर सांस के आने मे तक़लीफ पैदा करने लगा. अपनी जायदाद को यूं लुटते अब उससे और न देखा जाएगा. वो पलटकर चलने लगा कि उसे पीछे से भाईजान की गालियां सुनाई दी.

पलटकर देखा कि भाईजान हाथ मे रूपयों के छोटे छोटे टुकड़े थामे चूहे पर पत्थर बरसाते हुए उसे गालियां दे रहे थे. पहले तो ये देखकर उसका चेहरा सफेद हो गया पर जल्द ही ये सोचकर तसल्ली हुई कि गर ये पैसा भाईजान के हाथों लग जाता तो उसे रोज खून का घूंट पीना पड़ता. उसे अपनी जेब में अब भी पड़े नौ रूपयों का ख्याल आया, उसने हाथ से जेब को टटोला, रोनी सूरत लेकर मुड़ा, और खुशी खुशी चलने लगा.

उसने कभी अपनी अम्मी को कहते सुना था ‘ऊपरवाले के यहां देर है अंधेर नहीं’ उस वक्त उसे समझ नहीं आया था लेकिन आज उसे ये भी समझ में आ गया.