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हिंदी स्पेशल: पढ़नी ही चाहिए आपको हिंदी की ये पॉपुलर किताबें

अगर आप गहरे साहित्यिक विमर्श में नहीं डूबना चाहते हैं तो इन किताबों को पढ़ सकते हैं

Nidhi

हिंदी साहित्य की दुनिया में पॉपुलर शब्द को अक्सर एक नकारात्मक नजर से देखा जाता है. सोशल मीडिया की लोकप्रियता बढ़ने के साथ इसमें बदलाव आ रहा है.

कुछ दिन पहले हिंदी की पहली रिसर्च के साथ तैयार की गई बेस्ट सेलर लिस्ट जारी की गई. जैसा कि हिंदी में किसी भी लिस्ट या पुरस्कार की घोषणा के बाद होता है, तमाम तरह के साहित्यिक-असाहित्यिक लोग अपने-अपने अंदाज में निंदा, भर्त्सना और न जाने क्या-क्या करने लगे. इसके साथ ही एक दूसरा वर्ग भी था जिसने इसको अंततः सत्य की विजय भी बताया. ये हाथी के पूंछ, कान और सूंड़ पकड़कर उसे ही हाथी मान लेने जैसी स्थिति है.


बिक्री एक अलग पहलू है और गुणवत्ता दूसरा. उपमा देते हुए कहें तो राम चरित मानस की तुलना ऋग्वेद से नहीं की जा सकती. दोनों के अपने पाठक हैं और दोनों की अपनी दुनिया है.

हिंदी सप्ताह चल रहा है तो हिंदी की कुछ पॉपुलर किताबों की बात करते हैं. सनद रहे कि यहां पॉपुलर का अर्थ है कि अगर आप गहरे साहित्यिक विमर्श में नहीं डूबना चाहते हैं तो इन किताबों को पढ़ सकते हैं. ये सभी किताबें एक दूसरे से अलग हैं. इनके लेखकों का पूरा साहित्यिक कद एक दूसरे से अलग है.

इन किताबों को एक साथ रखने का मतलब ये नहीं कि इन्हें एक जैसा बताया जा रहा है. इन सभी किताबों में सिर्फ एक बात कॉमन है कि ये सब अच्छी खासी लोकप्रिय हैं. अगर आप बिना किसी विमर्श में डूबे कुछ अच्छा लगने वाला पढ़ना चाहें तो इनमें से कोई किताब चुन सकते हैं. और हां ये सारी किताबें यहां किसी भी क्रम में नहीं लिखी गई हैं.

गुनाहों का देवता

चंदर सुधा और पम्मी के प्रेम त्रिकोण को लेकर बुने गए इस उपन्यास की लोकप्रियता अभी भी अच्छी खासी है. धर्मवीर भारती की सबसे चर्चित किताब की दीवानगी अक्सर कॉलेज के दिनों में परवान चढ़ती है. हालांकि एक तथ्य ये भी है कि खुद भारती जी इस किताब को अपनी प्रतिनिधि रचना मानने से कतराते थे. फिर भी 60 और 70 के दशक के प्रेम को इक्कीसवीं शताब्दी में पढ़ना एक अच्छा अनुभव है.

बनारस टॉकीज़

2015 में आई बनारस टॉकीज़ हिंदी की पिछले कुछ समय में आई किताबों में बिक्री के लिहाज से सबसे सफल है. किताब बनारस हिंदू विश्विद्यालय के भगवान दास हॉस्टल की कहानी है जिसमें बनारस के रंग-ढंग और कॉलेज लाइफ की मस्ती को देसी और रॉ तरीके से उतारा गया है. किताब की खासियत है कि इसका ह्यूमर लगातार चलता रहता है और आप 2-3 घंटों में पूरी किताब निपटा देते हैं. वैसे ह्यूमर से अलग इस किताब में जगह-जगह इस्तेमाल हुई कहावतों का खजाना भी है जिसे लोग अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं.

मानसरोवर और प्रेमचंद कहानियां

हिंदी पढ़ने वाले किसी भी शख्स से पूछिए कि आपने किसे पढ़ा है, उसका पहला जवाब प्रेमचंद होगा. कारण बहुत स्पष्ट है कि कक्षा 3-4 में पढ़ी गई ईदगाह, दो बैलों की कथा और पंच परमेश्वर से लेकर बड़ी कक्षाओं में पढ़ी गई नमक का दारोगा, मंत्र और कफन तक हमारे सबसे ज्यादा करीबी मुंशी जी ही हैं. प्रेमचंद की कहानियों की सबसे बड़ी खासियत ये है कि अलग-अलग उम्र के लोग इनको पढ़कर अपनी उम्र के हिसाब से निष्कर्ष निकालते हैं. अगर हिंदी पढ़ने का शौक है तो प्रेमचंद को कोर्स में पढ़ी गई कहानियों से आगे भी पढ़िए.

मसाला चाय

फिल्मों में एक जॉनर होता है वन टाइम वॉच. हिंदयुग्म से आई दिव्य प्रकाश दुबे की किताब भी ऐसी ही है. फुर्सत हो कुछ नया, हल्का-फुल्का पढ़ने का मन हो तो इसकी कहानियां पढ़ लीजिए. आपके आसपास की ही घटनाएं मिलेंगी. स्कूल में विद्या कसम खाते बच्चे, जीवन शादी.कॉम पर रिश्ते बनाने की कोशिश करते लड़के लड़कियों की कहानियां मजेदार हैं. मगर इनमें कुछ गंभीर विमर्श तलाशने की कोशिश न करें, उसके लिए इनको पढ़ने के बाद क्लासिक्स की तरफ बढ़ जाएं. अगर ये किताब अच्छी लगे तो निखिल सचान की नमक स्वादानुसार, जिंदगी आइस-पाइस. आशीष चौधरी की कुल्फी ऐंड कैपेचीनो भी पढ़ सकते हैं.

मंटो की कहानियां

सआदत हसन मंटो का कहना है कि अगर आपको मेरी कहानियां गलत लगती हैं तो इसका मतलब है कि आप गलत समाज में जी रहे हैं. मंटो की कहानियां समाज के चेहरे पर चढ़े हुए शराफत के नकाब को उधेड़कर रख देने वाली हैं. विभाजन की त्रासदी में कैसे लोगों के अंदर का जानवर सामने आया था, मंटो को पढ़कर जाना जा सकता है.

खोल दो, बू, ठंडा गोश्त, टोबा टेक सिंह जैसी कहानियां हर किसी को पढ़नी चाहिए और याद रखनी चाहिए.

इश्क में शहर होना

रवीश कुमार की ये किताब फेसबुक स्टेटस से बनी है. प्रयोग के नाम पर इसमें एक नया फॉर्मेट लप्रेक (लघु प्रेम कथा) लाया गया है. इस किताब को दो कारणों से पढ़ा जाना चाहिए. पहली वजह है कि किताब बताती है कि बिना एक भी शब्द फालतू खर्च किए कैसे कुछ पढ़ने लायक लिखा जा सकता है. दूसरा कारण है कि जो लोग अपने फेसबुक स्टेटस को मिलाकर किताब बना देते हैं उन्हें इस समझना चाहिए कि किताब बनने की प्रक्रिया में संपादन एक जरूरी चीज है.

लप्रेक में कहानियों को आगे बढ़ाने के लिए जो स्केच इस्तेमाल किए गए हैं. किताब का जो साइज, कलर स्कीम और कीमत रखी गई है वो सब इस किताब को लोकप्रिय बनाने का एक हिस्सा है.

दीक्षा

नरेंद्र कोहली का रामायण को आधार बनाकर लिखा गया ये उपन्यास 8 हिस्सों में है. ग्राफिक्स की तरह से घटनाओं को दिखाने वाले इस उपन्यास में राम को एक क्रांतिकारी की तरह दिखाया गया है. समुद्र पर पुल बनाने से लेकर हनुमान के पहाड़ उठाने तक सारी घटनाओं को मानवीय आधार पर ही दिखाया गया है. ये उपन्यास आपको मनोरंजन तो देगा ही रामायण से जुड़ी कई घटनाओं को नए नजरिए से देखने में भी मदद करेगा.

राग दरबारी

राग दरबारी सिस्टम पर किया गया बेहतरीन तंज है. मगर इसको इसके अद्भुत वन लाइनर्स के लिए भी पढ़ा जा सकता है. उसके शरीर में बांछें जहां कहीं भी थीं खिल गईं. वो नेता थे क्योंकि उनके पिता भी नेता थे, जैसे वन लाइनर सुना-सुनाकर न जाने कितने लोग अंग्रेजीदां महफिलों में खुद को इंटेल्क्चुअल साबित कर आते हैं.

आपको अगर इंटेल्क्चुअल बनना हो या ना भी बनना हो, ये किताब जरूर पढ़िए.

मुल्ला नसीरुद्दीन के किस्से 

मुल्ला नसीरुद्दीन के किस्सों की किताब की सिर्फ एक समस्या है, कॉपीराइट फ्री मैेटेरियल होने के कारण ये रेलवे स्टेशन और सड़क किनारे बिकती है. यकीन मानिए इस स्तर की किस्सागोई आपने शायद ही कहीं और पढ़ी हो और इसको पढ़कर आपको लगेगा कि इस किताब पर अबतक कोई टीवी सीरीज या फिल्म क्यों नहीं बनी. अगली बार जब रेल का सफर करें तो पूर्वाग्रह हटाकर ये किताब खरीदें और पढ़ें.

वर्दी वाला गुंडा

वेद प्रकाश शर्मा की इस किताब के बारे में दावा किया जाता है कि इसकी 8 करोड़ से ज़्यादा कॉपी बिक चुकी हैं. इस जॉनर की किताबों को पॉपुलर नहीं पल्प या लुगदी साहित्य कहा जाता है. आप अगर फॉर्मूला बेस्ड जासूसी कहानियों के शौकीन हैं तो वेद प्रकाश शर्मा, केशव पंडित या सुरेंद्र मोहन पाठक का कोई भी उपन्यास पढ़ सकते हैं.

उसने कहा था

उसने कहा था किताब नहीं कहानी है, मगर इसे हम इस लिस्ट में खास तौर जगह दे रहे हैं. क्योंकि हिंदी साहित्य में अगर सिर्फ एक चीज पढ़नी हो तो वो उसने कहा था हो सकती है. ठीक वैसे ही जैसे इस एकमात्र कहानी के साथ चंद्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी की दुनिया में अपनी जगह अमर कर गए हैं.

आज से एक सौ दो साल पहले (1915) लिखी गई कहानी ने हिंदी साहित्य की दिशा को बदल दिया. इससे पहले कहानियां अक्सर ‘वे सभी नाना प्रकार के सुखों का भोग करते हुए गोलोकवासी हुए’ पर खत्म होती थीं. चंद्रधर शर्मा की इस कहानी ने ये रवायत बदल दी. इस कहानी को पढ़िए और किसी से पूछ लीजिए, ‘तेरी कुड़मई हो गई?’