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हिंदी पत्रकारिता दिवस: क्या सभी पत्रकार बंदर हैं!

बंदर बनने की प्रकिया में लगे तमाम नारद साथियों! हिंदी पत्रकारिता दिवस मुबारक हो.

Animesh Mukharjee

(30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस है.)

पिछले दिनों दिल्ली के एक प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान में आयोजित एक कार्यक्रम को लेकर सोशल मीडिया पर थोड़ा बहुत हंगामा मचा हुआ था. इसी दौरान राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य में एक लंबा लेख छपा. लेख में विस्तार से बताया गया है कि कैसे हर पत्रकार को नारद बनने का प्रयास करना चाहिए.


इस लेख का जिक्र यहां इसके पांचजन्य में छपने के चलते नहीं बल्कि कई कारणों से किया जा रहा है. पहली वजह तो ये है कि इसे एशिया की सबसे बड़ी पत्रकारिता यूनिवर्सिटी होने का दावा करने वाले माखन लाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने लिखा है. अगर हर साल पास होने वालों की संख्या को देखें तो सबसे ज्यादा नारदों को डिग्री, डिप्लोमा यही विश्वविद्यालय देता है.

नारद को पत्रकार के साथ-साथ मीडिया टीचर बताने वाले इस लेख के बीच में एक बॉक्स के अंदर एक नोट नुमा लेख और है. इस नोट को कुसुमलता केडिया ने लिखा है. कुसुमलता के ‘लेक्चर्स’ के कई वीडियो यूट्यूब पर उपलब्ध हैं, जिनमें वो बताती हैं कि भारत में कभी सती प्रथा नहीं थीं क्योंकि रानी लक्ष्मीबाई और इंदिरा गांधी, सोनिया गांधी जैसी महिलाएं सती नहीं हुई. इसके साथ ही उनके दुनिया के इतिहास के बारे अपने ही मत हैं जिनको आप खुद सुनें तो बेहतर है.

इस लेख का जिक्र यहां इसलिये जरूरी है कि वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के पित्तृ संगठन की मुख्य पत्रिका में देश की सबसे बड़ी पत्रकारिता यूनिवर्सिटी के कुलपति का लेख छपता है. इस लेख में वो तर्क से मीलों दूर जाकर एक खास तरह का एजेंडा पेश करते हैं. सोशल मीडिया पर एक्टिव और पत्रकारिता की गरिमा को बचाने के लिए स्टेटस पोस्ट करने वाले तमाम युवा, वरिष्ठ और अति वरिष्ठ पत्रकार इससे अनजान रहते हैं. क्या कहेंगे इस पर कि अगर कोई चीज दिल्ली की हद में नहीं घटती तो देश से उसका कोई सरोकार नहीं रहता.

किस तरफ जा रही है हिंदी पत्रकारिता

इस लेख के जिक्र की अगली वजह पर बात करने से पहले चलिए हिंदी पत्रकारिता और खास तौर पर हिंदी वेब पत्रकारिता पर सरसरी निगाह डाल लेते हैं.

हिंदी जर्नलिज़म की वेबसाइट्स को हम तीन हिस्सों में बांट सकते हैं. (इसमें प्रोपेगैंडा वाले पोर्टल शामिल नहीं हैं). एक तरफ वो वेबसाइट्स हैं जो किसी प्रसिद्ध अखबार या टीवी चैनल का डिजिटल वर्ज़न है. इस खांचे में आने वाली हिंदी के तकरीबन सारे नाम कूड़ा परोस रहे हैं.

हिंदी अखबारों के डिजिटल वर्ज़न का कूड़ा तो सबको पता ही है. हिंदी के चैनलों के एक्सटेंशन का कचरा भी इससे अलग नहीं है. हिंदी के सबसे गंभीर चैनल की वेबसाइट को देखें. टैबलॉइड और शोर मचाने वाली पत्रकारिता, किसी भी तरह की ट्रोलिंग से दूरी बनाने वाले चैनल की वेबसाइट पर तकरीबन रोज ही अंतः वस्त्रों में छुट्टियां मनाती हिरोइनों की तस्वीरें देखने की गुजारिश दिख जाएगी.

इसके साथ-साथ मोबाइल पर खींची गई चुड़ैल की फोटो भी दिख जाएगी. पूछा जाना चाहिए कि क्या जर्नलिस्टिक एथिक्स का दायरा डिजिटल पर लागू नहीं होता.

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वेबसाइट्स की दूसरी कैटेगरी में उन ई मैग्जीन को शामिल करना चाहिए जिनके पीछे कोई प्रतिष्ठित मीडिया हाउस नहीं है और जो निष्पक्ष पत्रकारिता की बात करती हैं. इस कैटेगरी में आने वाले ज्यादातर नाम पहले अंग्रेजी में शुरू हुए और बाद में हिंदी में आए. अपवादों को छोड़कर इन वेबसाइट्स की हिंदी और अंग्रेजी कॉन्टेंट की स्थिति में वही फर्क है, जो भारतीय क्रिकेट टीम और भारतीय महिला क्रिकेट टीम की लोकप्रियता में है.

तीसरी श्रेणी की वेबसाइट्स इंटरनेट पर ही शुरू हुईं और उनके पीछे किसी न किसी मीडिया संस्थान का हाथ है. इस कैटेगरी के पास सबसे बेहतर संसाधन होते हैं. एक एलीटनेस होती है कि हम टीवी जैसा कोई क्लीशे नहीं करेंगे. उससे अलग करेंगे. क्योंकि एक मोबाइल फोन और सेल्फी स्टिक के साथ बिना बड़े खर्चे के कहीं से भी रिपोर्टिंग और लाइव किया जा सकता है.

‘इतनी उथल-पुथल के बीच कश्मीर से कितने लाइव हुए?’ जिस सहारनपुर में 3 महीने पहले तमाम लोग चुनावी कवरेज के लिए पहुंचे थे, वहां अब कितने वैकल्पिक पत्रकारों को भेजा गया?

हिंदी पत्रकारिता से सवाल ही सवाल

सवाल और भी हैं पर फिलहाल इतने ही काफी रहेंगे. वापस उसी नारदीय लेख पर आते हैं. हिंदी वेब में कितने ऐसे नए और कथित वरिष्ठ पत्रकार हैं जो क्राइम और कोर्ट की प्रोसिडिंग पर लेख लिख सकते हैं. कितने ऐसे लोग हैं जो ऑटोमोबाइल पर अच्छा काम कर रहे हैं. पॉपुलर साइंस और इंटरनेश्नल पॉलिटिक्स की तो बात ही छोड़ दीजिए, अति चर्चित विषय फेमिनिज्म के 3 काल खंडों पर आपने कैसा भी हिंदी आर्टिकल कब पढ़ा था. सायबर लॉ एक्सपर्ट की बात हटाइए, सिनेमा और संगीत पर लिखने का मन रखने वालों में कितने लोग हैं, जो रोचक किस्सों और चर्चित डायलॉग को छोड़कर ओमपुरी, किशोरी अमोनकर या महाश्वेता देवी के रचनात्मक काम की समीक्षा करते हुए ढंग की ऑर्बिच्युरी लिख पाए. एक आध अपवादों के नाम अगर आपके दिमाग में आ रहे हैं तो उनमें से ज्यादातर या तो कथित बेस्ट मीडिया स्कूल के सिस्टम से नहीं आए हैं. या करियर के ज्यादातर समय न्यूज रूम के बाहर रहें हैं.

हिंदी वेब पत्रकारिता का एक पहलू और भी है जिसकी बात किए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता है. न्यूज रूम की भाषा में कहें तो, खबर अच्छी चलाने के लिए सेक्स करना (उस पर खबर करना) जरूरी है. खबरों में सेक्स दो तरह से होता है. एक फूहड़ तरीका है जिसमें उत्तेजक हेडिंग के साथ कुछ तस्वीरें और बातें लिख दी जाती हैं.

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दूसरे तरीके में एंटी-पॉर्न बेचा जाता है. इसमें हिदी की सबसे गंभीर वेबसाइट्स पर भी आपको अच्छा खासा मैटर दिख जाएगा. बस उसमें कोई ज्यादा बदनाम हैं तो कोई कम. ऐंटी-पॉर्न के साथ समस्या ये भी है कि उसके कई प्रतिबंधित विषय ऐसे हैं जिन पर बात होनी ही चाहिए. मगर अक्सर इन विषयों के नाम पर कुछ और ही बेचा जाने लगता है.

यकीन मानिये किसी भी विषय पर लिखे गए लेख में स्तन, योनि और लिंग जैसे शब्द आम बोलचाल इस्तेमाल से ज्यादा आ रहे हैं तो इसका मतलब है कि वहां पढ़ने वाले को ‘कुछ और’ ही बेचा जा रहा है.

अंतिम बात, अगर नारद पत्रकार थे तो भगवान विष्णु उनके स्वामी. जिनका पीआर वो हर समय नारायण-नारायण कह कर करते थे. उन्हीं भगवान विष्णु ने नारद को एक दिन बंदर बना दिया था. तो बंदर बनने की प्रकिया में लगे तमाम नारद साथियों. हिंदी पत्रकारिता दिवस मुबारक हो.