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कहानी: आधा है चंद्रमा...

रामलाल अमूमन देख सकने वाले लोगों को मूर्ख समझता था. कहता था, पैदा करने वाले ने सबको अपने हिस्से का नफा नुकसान देकर भेजा है और अंधापन मेरे हिस्से का नफा है.

Pradeep Shadangule

रामलाल... मुझे एक ऐसी सड़क की तरह याद है, जिससे कभी मैं रोज गुजरा करता था और फिर एक लंबे वक्त तक नहीं गया. ये मैं केवल रामलाल के बारे में ही कह सकता हूं कि अब तक के मेरे जानने वालों में वो सबसे तेज था. हालांकि वो मुझे लड़कपन के उस दौर में मिला था, जब हम सब भी शराफत से नावाकिफ थे.

मगर रामलाल हमारा भी बाप था. उसकी सांवली शक्ल, बड़ी आंखे, घुंघराले बाल और शक्ल पर छाई नाबालिक मासूमियत तो थे ही पर उसका सबसे बड़ा हथियार था अंधापन. अमूमन वो देख सकने वाले लोगों को मूर्ख समझता था. कहता था, पैदा करने वाले ने सबको अपने हिस्से का नफा नुकसान देकर भेजा है और अंधापन मेरे हिस्से का नफा है.


उससे मेरी पहली मुलाकात एक ब्लाईंड स्कूल में ही हुई थी. तब न जाने क्या चढ़ी थी दिमाग पर कि ख्याल आया कि हिंदी साहित्य की चुनिंदा किताबों को ब्रेल लिपि में ट्रांसलेट किया जाए ताकि नेत्रहीन मित्र भी इसका लाभ उठा सकें. चूंकि ख्याल नेक और अपनी फिलॉसफी से हटकर था इसलिए बिना पुर्नविचार के मैं पहुँच गया एक ब्लाईंड स्कूल.

बिल्डिंग मे पहुंचते ही एक लंबा कॉरिडोर था. दाईं ओर दीवार थी जिस पर नौसिखिया मगर सुंदर पेंटिग की हुई थी और बाईं ओर लंबी क्यारियां थीं जिसमें किस्म-किस्म के फूल लगे हुए थे. न जाने इतनी खूबसूरती यहां क्या कर रही है सोच ही रहा था कि सामने से आते एक अंधे को देखकर मैंने अपनी चाल जरा संभाल ली.

हालांकि ब्लाईंड स्कूल के कॉरिडोर में चलने वाला हर व्यक्ति अंधा हो ऐसा जरूरी नहीं, पर वो था. सो एक अंधे से टकरा जाने की जिल्लत और फजीहत से बचने के लिए मैं बाईं ओर सरक गया. मगर देखता क्या हूं कि मेरी इस पहल की प्रतिक्रिया में वो भी उसी ओर चलने लगा. उस टकराहट की संभावना अब और भी बढ़ गई जिसकी ज्यादातर या शायद सारी जिम्मेदारी मुझपर आती थी.

मैं फासला कम देखकर फौरन दाईं ओर हो गया पर उसी तर्ज पर वो भी उसी तरफ आ गया. मुझे गुस्सा तो बहुत आया कि जब मैं ट्राय कर रहा हूं तो अपनी समझदारी दिखाने की क्या जरूरत है, लोग तो यही कहेंगे कि तुम्हारी तो आंखें थी. मगर इस बार जब मैं वापस बाईं ओर सरका तो उसने मेरे होश फाख्ता कर दिए. वो अदबीयत से दीवार से सटकर खड़ा हो गया और हाथ से मुझे पहले निकल जाने का इशारा करने लगा. बिना टकराए ही उसने मेरी बेइज्जती कर दी थी. ऐसा न हुआ होता तो मैं उससे प्रिंसिपल ऑफिस का पता पूछता मगर तब झेंपकर आगे बढ़ गया.

मेरी तफसील और यहां आने की वजह सुनकर, ऐसा तो लगा कि प्रिंसिपल प्रभावित हुए मगर मेरी तसल्ली लायक नहीं. उन्होंने चपरासी को बुलाया और किसी छात्र को बुलवा भेजा. कमरे में दाखिल होने वाला छात्र वही था, जिसने कॉरिडोर में अभी-अभी मुझे जलील करके गया था.

मेरी तारीफ में प्रिंसिपल द्वारा कही गई बाकी बातों में उसकी गैर दिलचस्पी जाहिर थी पर जब पता लगा कि मैं कम्प्यूटर का एक्सपर्ट हूं तो उसके होंठ फैल गए. प्रिंसिपल ने तो रामलाल का परिचय एक जहीन और श्रेष्ठ छात्र के रूप में करवाया था मगर असल परिचय तो तब हुआ जब बाहर आते ही वो सीधे तू तड़ाक पर आ गया और बोला, 'पागल है क्या...ब्रेल सीखने क्यों आ गया?'

मैं मजबूत जवाब दे पाता इससे पहले ही बोला, 'खैर छोड़ फेसबुक अकाउंट खोलना आता है?' मैंने भी बराबरी करते हुए पूछा, 'बदले में ब्रेल सिखाओगे?' तो बोला, 'अरे ब्रेल क्या है. हम तुझे दुनिया दिखा देंगे.'

ये था रामलाल जिसने पहली मुलाकात में ही मुझे चारो खाने चित कर दिया. मैं सोच में पड़ गया कि ऐसा क्या था रामलाल में जो मुझ पर हावी हो रहा था. मैं सिलसिलेवार ब्रेल सीखने जाता रहा जबकि रामलाल का दुनिया दिखाने वाली बात पर ज्यादा जोर था.

सिगरेट पीने वाला अड्डा, गर्ल्स कॉलेज के बाहर वाली दीवार और दोस्तों के कंधों पर हाथ रखे चलते हुए लाईन बनाकर रेडियो सुनना ये सब रामलाल की दुनिया का हिस्सा था. उसकी नफे वाली बात अब मैं समझ चुका था. एक दिन मेरे पहुंचते ही बोला, 'साइकिल चलाना जानते हो?' बिना जवाब जाने ही बताया कि पीछे दीवार से लगा जो कमरा है उसके बाहर चौकीदार की साइकिल रखी है ले आओ, मैं तुम्हें गेट के बाहर मिलता हूं. जिस हुक्म वाले अंदाज में कहा गया था उसमें ना नुकुर की कोई गुंजाइश न थी.

साइकिल की सीट हाथों से पकड़े, दोनों पैरों को हवा में लहाराते हुए वो पीछे बैठा गाना गा रहा था. साथ ही मौके पर रास्ता भी बताता जाता था. थोड़ी ही देर में हम एक खूबसूरत तालाब के किनारे पहुंच गए. हम नीचे उतरकर पत्थरों पर बैठ गए. पानी पैरों से टकरा रहा था. मैंने पूछा, 'तुम अक्सर यहां आते हो?' तो मुस्कुराया. मैंने कहा इतनी दूर पैदल? तो बोला, 'पैदल तो झंडू लोग आते हैं. हम तो हाथ दिखाते हैं और लोग यहां तक छोड़ कर जाते हैं.'

कभी-कभी ऐसी बातें सुनकर लगता है कि कहीं वो मुझे भी उसके शब्दों मे झंडू तो नहीं समझता. पर थोड़ी देर की खामोशी ने उसे संजीदा कर दिया और वो मुझे अपनी गर्लफ्रेंड के बारे में बताने लगा. उसका नाम लीली है... बैंगलोर में रहती है. अंध विद्यालय द्वारा आयोजित वार्षिक मेले में मेरी उससे मुलाकात हुई थी. मैंने उस बार अपने हाथ से बनाई पॉटरी का स्टॉल लगाया था. वो बस उसी पर फिदा हो गई और एक पॉट खरीदना चाहती थी.

पॉट जांचने और वापस देने में एक दो बार मेरे हाथ उसके हाथों को छू गए और मेरी घंटी बज गई, तो मैंने वो पॉट मुहब्बत के नजराने के तौर पर गिफ्ट कर दिया. मैंने नाम पूछा तो सहेली ने बताया... लीली. तभी उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरी ऊंगलियों को छुकर कोई धुन बजाने लगी. समझ में तो मेरी कुछ न आया मगर उसके हाथों की गर्माहट, सर के बाल से पैर के नाखून तक मेरे बॉडी में जम गई.

सहेली ने बताया कि वो मेरे पॉट्स की तारीफ कर रही है ये भी कि वो बोल नहीं सकती. रामलाल की ये बात सुनकर मैं दुखी होने ही वाला था कि वो चहककर बोला बस तभी मैंने तय कर लिया कि शादी करूंगा तो इससे ही. पर अगले ही दिन वो वापस लौट गई और मैं एक मुलाकात की दम पर ही इश्क परवान चढ़ाता रहा.

जब न रहा गया तो मैंने उसे चिट्ठी लिखने की सोची, मगर इश्क का इजहार उससे पहले चिट्ठी लिखने वाले से करना मुझे नागवार गुजरा. सो मैंने ब्रेल में ही अपना दिल खोलकर रख दिया. मैं जानता था कि अगर एक बार पढ़ लेगी तो पक्का सेट हो जाएगी और हुआ भी यही. उसका जवाब आया और वो भी ब्रेल में. फिर क्या था हमने लिख-लिख कर बाजार में कागजों की कीमतें बढ़ा दी.

महीनों में जन्मों के वायदे हो गये. पर अब चिट्ठियों से तसल्ली नहीं होती. अब तो बस कभी प्रिंसिपल को कोई गोली दे के बंगलौर जाने का मौका देख रहा हूं. रामलाल बहुत देर तक बोलता रहा और ऐसा लगा कि वो मुझसे नहीं खुद से बातें कर रहा है. न जाने कब हमारे पैर पूरी तरह पानी में डूब गये.

उसी दिन मैं रामलाल के फेसबुक वाले सवाल और मेरे कम्प्यूटर एक्सपर्ट होने वाली बात पर खुश होने का रहस्य जान गया, सो अगली बार अपना लैपटॉप और इंटरनेट डोंगल साथ लेकर गया. एक अच्छी प्रोफाइल के चक्कर में पूरे स्कूल का चक्कर लगाना पड़ा मगर पहली फेसबुक रिक्वेस्ट लीली को भेजकर वो बिस्तर पर ऐसे बेफिक्र होकर पड़ गया, जैसे एक जिम्मेदार पिता लड़की को विदा करके होता है.

लैपटॉप लाना अब मेरे ब्रेल सीखने की मुहिम का एक अभिन्न हिस्सा बन गया. फेसबुक पर नई-नई खोज और बचा वक्त तफरी में गुजरता. इस सब में मूल नुकसान हिंदी साहित्य को हो रहा था, जिस पर मेरे अलावा किसी का ध्यान न था. लेकिन उस दिन जब मैं पहुंचा तो दरवाजे पर ताला लगा था और उसमें मेरे लिए एक नोट फंसा हुआ था.

नोट खोला तो चौंक गया वो हिंदी में था और उसने मुझे इंतजार करने के लिए कहा था. रामलाल लिखना जानता है ये मेरे लिए बहुत अचरज की बात थी. मैं कॉरिडोर में टहलने लगा. तभी प्रिंसिपल के कमरे का दरवाजा खुला और मुझे देखकर उन्होंने कॉरिडोर में होने की वजह पूछी. मेरे बताने पर बोले हां मुझे कहकर गया था कि कुछ जरूरी काम है और मुझे प्रिंसिपल रूम में बैठने की पेशकश की.

मैंने जब उन्हें रामलाल का नोट दिखाया तो वो चौंके नहीं बल्कि थोड़ा मुस्कुराए और बताया कि रामलाल जन्मांध नहीं है, बचपन में बिजली का तेज झटका लगने से उसकी रोशनी चली गई थी. एक छोटे से गांव में रहता था जहां कोई सहूलियत नहीं थी.

मां बाप गरीब थे इसलिए यहां ले आए. मगर तब तक की देखी और सीखी हर बात रामलाल को याद है और इसी तरह उसका इस्तेमाल करके वो लोगों को चौंकाता रहता है. मैंने दुखी मन से जब प्रिंसिपल से पूछा कि क्या रामलाल अब कभी नहीं देख पाएगा? तो बोले क्यों नही… देश भर के सारे अंध विद्यालय हर साल अपने यहां के कुछ छात्रों के नाम सरकार को भेजते हैं जो नेत्रदान का लाभ लेना चाहते हैं.

पिछले कई साल से हमारे यहां से रामलाल का नाम भेजा जा रहा था और इस साल मंजूरी मिल गई. कल ही चिट्ठी आई है एकाध महीने में ऑपरेशन हो जाएगा फिर रामलाल देख पाएगा.

थोड़ी देर में मैंने रामलाल को मेन गेट से मस्तानी चाल में गाना गाते हुए आते देखा. मेरे पूछने पर बताया कि लीली को चिट्ठी डालने गया था. मैंने ऑपरेशन वाली बात बताई तो बोला इतना ही नहीं शादी के लिए प्रपोज़ भी कर दिया. ऑपरेशन के तुरंत बाद शादी कर लेंगे.

चूंकि अब हिंदी साहित्य को ब्रेल मे ट्रांसलेट करने वाली मुहिम में खास संजीदगी बाकी न रह गई थी, सो मेरा स्कूल जाना थोड़ा अनियमित हो गया. मगर एक दिन घर के नंबर पर प्रिंसिपल का फोन आया और उन्होंने किसी जरूरी काम से मुझे स्कूल बुलाया. पहुंचा तो उन्होंने बताया कि रामलाल ने अचानक ऑपरेशन करवाने से मना कर दिया और अपनी जगह अपने दोस्त का नाम भेजने को कह रहा है. तुम जरा उसे समझाने की कोशिश करो ऐसा मौका दुबारा नहीं मिलेगा.

खोखली तसल्ली देकर मैं रामलाल के कमरे की ओर बढ़ चला. मुझे पता था कि ऐसा करने की रामलाल के पास मजबूत वजह होगी, पर क्या? ये नहीं समझ आ रहा था. वो पलंग पर उनींदा लेटा था. मेरे आते ही उठकर बैठ गया. मैंने जरा घुमाते हुए पूछा कि लीली ने शादी के लिए हां कर दी? तो बोला नहीं उसने लिखा है कि वो कभी शादी नहीं करेगी…मुझे कांग्रच्युलेट करते हुए लिखा है कि स्कूल में व्यस्तता बढ़ने की वजह से अब वो मेरी चिट्ठियों के जवाब नहीं दे पाएगी.

थोड़ा रूककर बोला मुझे बुरा लगा, मगर मैं समझ गया वो ऐसा क्यों कह रही है. उसकी जगह मैं होता तो शायद मैं भी यही करता. जैसे मैं आज की लीली को पसंद करता हूं वैसे ही वो आज के रामलाल को पसंद करती है. जिसमें न देख पाना एक अहम बात है. अगर लीली बोलने लगे तो उसके हाथों की मीठी बोली और गर्माहट जाती रहेगी. आंखें पाते ही लाख चाहते हुए भी ये रामलाल बदल जाएगा अभी नहीं तो शायद कुछ सालों में.

संबंधो की सहजता जाती रहेगी और शायद मुझे किसी दिन उसका न बात कर पाना खलने लगे. हालांकि मुझे अपने लव पे पूरा भरोसा है पर लीली का डर मैं समझ सकता हूं और मेरे लिए लीली के बिना लाइफ रौशन जितनी भी हो पर नीरस ही रहेगी. अंधेरा मेरा नफा है मैं उसे नुकसान में नहीं बदलना चाहता.

अब बस एक ही काम बचा है लीली से मिलना… और वो तुम्हारे बिना न हो सकेगा. तुम्हें मेरे साथ बैंगलोर चलना होगा. प्रिंसिपल को मैं संभाल लूंगा. पूरे सफर में हमने कोई बात नहीं की. स्कूल पहुंचे तो पता लगा लीली क्लास में है.

हम रिसेप्शन पर बैठकर ही इंतजार करने लगे. थोड़े ही समय में लोगों की आवाजाही शुरू हो गई. लीली ने लॉबी में घुसते ही रामलाल को देख लिया और ठिठककर रूक गई. रिसेप्शनिस्ट ने हमारे बारे में बताकर हमारी ओर इशारा किया.

रामलाल के चेहरे से उसकी हालत उतनी जाहिर न होती थी जितनी कांपते हाथों से हो रही थी. लीली ने सरसरी नजर से मुझे देखा और रामलाल के सामने खड़ी हो गई. इससे पहले की मैं ये तय कर पाता कि क्या इस मुलाकात में मेरी भूमिका यहीं तक है या मुझे पहले बोलकर पहल करना चाहिए, लीली ने रामलाल का हाथ पकड़ लिया.

दो जोड़ी हाथ एक दूसरे में गुत्थमगुत्था धाराप्रवाह बोल सुन रहे थे और मैं चुप देख रहा था. बीच में रूककर रामलाल ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कुछ कहा. लीली ने पहली बार मेरी उपस्थिति को स्वीकारते हुए देखा. मेरा सर बिना मुझे बताए अभिवादन में झुक गया और वो दोनों एक तरफ चल पड़े. बिना इस अपराधभावना के कि मुझे उनकी बातें नहीं सुननी चाहिए मैं उनके पीछे चल दिया.

जीवन में पहली बार घटित इस अनोखी और सुंदर मुलाकात का मैं साक्षी होना चाहता था. कैंटीन में पास वाली टेबल पर वो दोनों हाथों की छुअन से संगीत पैदा कर रहे थे. शास्त्रीय संगीत की सी तारतम्यता और उतार चढ़ाव रसोत्पत्ती कर रहे थे. तभी रामलाल के आंखों से आंसू ढुलक पड़े और सब कुछ थम गया. थोड़ी देर बाद रामलाल के नम चेहरे पर अपार खुशी समेटे एक मुस्कान आई और मैं समझ गया कि लीली सेट हो गई.

वापसी में ट्रेन में आते हुए रामलाल ने बताया कि कई सारी संस्थाए किताबें ब्रेल लिपि में ट्रांसलेट करके हर महीने स्कूल में नियम से भेजती है पर किसी बच्चे की पढ़ने में रूचि न होने की वजह से वो लाईब्रेरी में धूल खाती रहती है. मैंने उसकी ओर खून पी जाने वाली नजरों से देखा तो बोला बता तो मैं तुम्हें पहले भी सकता था पर फिर मुझे तुम जैसा दोस्त कैसे मिलता और उसने मेरे हाथों पर हाथ रख दिया.

उसके बाद हमारा मिलना कम हो गया और आखिरी बार उन दोनों की शादी पर. मगर रामलाल की संगत ने हमेशा के लिए न देख सकने वालों के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया और साथ ही एक सहजता और संवेदनशीलता जीवन में पैठ कर गई.