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लड़ाई आरपार की हुई, तो जानवर देश में कहीं नजर नहीं आएंगे

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, टाइगर और हाथी रोज एक इंसान की जान ले रहे हैं. जबकि, इंसान भी देश में प्रतिदिन एक तेंदुए को खत्म कर रहा है

Subhesh Sharma

दुनिया भर में जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं. जिसकी वजह से जानवर इंसानों के संपर्क में आ रहे हैं. इंसान और जानवरों के बीच की लड़ाई अब कहीं ज्यादा बढ़ चुकी है. दोनों ही एक दूसरे की जान के दुश्मन बन चुके हैं. सरकारी आंकड़ों की मानें तो बाघ और हाथी रोज एक इंसान की जान ले रहे हैं. तो वहीं इंसान भी हमारे देश में प्रतिदिन एक तेंदुए को खत्म कर रहा है.

पर्यावरण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल 2014 से लेकर मई 2017 के बीच टाइगर और हाथी के हमलों में 1144 लोगों ने अपनी जान गंवाई है. 1143 दिनों में 1050 लोग हाथी के पैरों के नीचे कुचले गए. जबकि 92 लोग टाइगर के मुंह का निवाला बने. इंसान भी बदला लेने में नंबर वन है. इस दौरान उसने भी प्रतिदिन एक तेंदुए को मारकर हिसाब बराबरी का रखा है. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि देश में हाथियों की कुल तादाद लगभग 30 हजार, टाइगर की करीब 2200 और इंसान 125 करोड़ से ज्यादा हैं. इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर लड़ाई आरपार की हुई, तो जानवर देश में कहीं नजर नहीं आएंगे.


मंत्रालय ने कहा है कि अप्रैल 2014 से मई 2017 के बीच 345 टाइगर और 84 हाथी भी मारे गए हैं. इनमें ज्यादातर टाइगर और हाथियों को शिकारियों ने मारा है. फॉरेस्ट डिपार्टमेंट ऑफ डीजी सिद्धांता दास का कहना है कि इंसान जानवरों के इलाकों में घुसपैठ कर रहा है और मौतों का कारण भी यही है.

पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा तबाही

जानवरों द्वारा इंसानों की जान लेने के सबसे ज्यादा मामले पश्चिम बंगाल में सामने आए हैं. यहां कुल 266 मौतें हुईं हैं, जो कि मारे गए 1144 लोगों का 25 फीसदी है. दूसरे नंबर पर झारखंड है, जहां 161 मौतें हुई हैं. तीसरे नंबर पर छत्तीसगढ़ है, जहां 158 लोग मारे गए हैं. बंगाल में लगभग 800 हाथी हैं और रॉयल बंगाल टाइगर का भी घर है. हर साल नेशनल एनिमल टाइगर और नेशनल हेरिटेज एनिमल हाथी के संरक्षण में करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं. लेकिन इस सब के बावजूद इंसान और जानवरों के बीच के मुठभेड़ को रोका नहीं जा सका. जंगलों और वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर का खत्म होना इसकी सबसे बड़ी वजह है.

उत्तराखंड से लेनी चाहिए सीख

जानवरों और इंसानों के बीच विवाद को रोकने के लिए दूसरे राज्यों को उत्तराखंड से सीख लेनी चाहिए. उत्तराखंड में जानवरों के हमलों में काफी कमी आई है. इसका श्रेय जाता है यहां के स्थानीय लोगों को. यहां लोगों ने जानवरों के साथ रहना सीख लिया है. देश के सबसे पहले टाइगर रिजर्व, जिम कॉर्बेट की कहानी कुछ और ही कहती है. आपको बता दें कि कॉर्बेट करीब 700 हाथी और 208 टाइगर का घर है.

वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट ए जी अंसारी बताते हैं कि कॉर्बेट में पिछले तीन साल में इसानों पर हुए हमलों में कमी आई है. हालांकि पिछले महीने काशीपुर के कुछ लोग आए हुए थे. इनमें से एक को हाथी ने कुचल कर मार दिया था. लेकिन इसके अलावा इंसान और जानवर के बीच हुई खूनी जंग का कोई गंभीर मामला सामने नहीं आया है. उन्होंने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में बताया कि उत्तराखंड में अन्य राज्यों के बजाए मुआवजा जल्दी और ज्यादा मिलता है. यहां इंसान के मरने पर पांच लाख और अगर कोई मवेशी मारा जाता है, तो उस पर करीब 18 हजार रुपए का मुआवजा (अलग-अलग मवेशी के हिसाब से) दिया जाता है. जिसे बढ़ाकर 40 हजार किए जाने पर विचार किया जा रहा है.

जिम कॉर्बेट पार्क का एक दृश्य (फोटो: फेसबुक से साभार)

मुआवजे में तेजी की वजह से लोगों में जानवरों को लेकर गुस्सा कम हुआ है. लोग खुद से फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को फोन कर मामले की जानकारी देते हैं. सेंस ऑफ रिस्पॉनसबिलिटी और रिस्पांस लोगों में काफी बढ़ा है. कॉर्बेट के तीन मुख्य कॉरिडोर हैं- चिलकिया कोटा कॉरिडोर, साउथ पाथली दून कॉरिडोर और सुंदरखाल कॉरिडोर और अभी भी ये सब काफी हद तक सही सलामत हैं.

ऋषिकेश में सबसे ज्यादा प्रॉब्लम है

ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में कहीं कोई दिक्कत नहीं है. ऋषिकेश में सबसे ज्यादा समस्या है. यहां टेरी लैंडस्केप में आने वाला राजाजी नेशनल पार्क पर कॉरिडोर खत्म होने का सबसे बुरा असर पड़ा है. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट नवीन एम रहेजा बताते हैं कि यहां धौलखंड रेंज यानी राजाजी पार्क के दूसरे हिस्से में सिर्फ एक टाइगर बचा है. यहां कभी 20 से ज्यादा टाइगर रहा करते थे.

कॉरिडोर के खत्म हो जाने के कारण हाथी, टाइगर समेत अन्य जानवर एक जगह फंस कर रह गए हैं. यहां कॉरिडोर खत्म होने की सबसे बड़ी वजह है अतिक्रमण, शहरीकरण, गंगा रिवर और गंगा चैनल इलेक्ट्रिक हाइड्रो सब स्टेशन.

वहीं वाइल्ड एक्सपर्ट अंसारी का भी कुछ ऐसा ही मानना है. उन्होंने कहा, दिक्कत तब शुरू होती है, जब हाथी टेरी सेंट्रल में पहुंचता है. हाथी राजाजी से लेकर टनकपुर तक माइग्रेट करता था. कभी हाथी नेपाल टरेन तक जाता था. उन्होंने बताया कि लैंडसडाउन में काफी प्रॉब्लम है. वहां कॉरिडोर काफी छोटा हो गया है. लैंडसडाउन में रिवर के पास केवल 1.5 से 2 किलोमीटर का रास्ता बचा है.

आपको बता दें कि चिला रेंज के अंदर 34 टाइगर हैं. लेकिन चिला में हाइवे गुजर रहा है, जिससे जानवरों के कॉरिडोर सिकुड़ते जा रहे हैं. ऐसा नहीं है कि जानवरों को बचाने के लिए प्रयास नहीं किए जा रहे हैं. चिला-मोतीचूर वाइल्ड लाइफ कॉरिडोर में रेलवे ने वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के साथ मिलकर बड़ा अच्छा सिस्टम बनाया है. इसे अर्ली वॉर्निंग सिस्टम कहा जाता है. अगर ट्रैक पर हाथी होगा, तो इस सिस्टम की मदद से ड्राइवर को पहले ही पता चल जाएगा. जिससे दुर्घटना होने की संभावना नहीं के बराबर रह जाता है.

टाइगर को समझना होगा

टाइगर एक टेरिटोरियल जानवर है. उसे अपने इलाके से बेहद प्यार होता है और वो अपनी जान देकर भी उसकी रक्षा करता है. खत्म होते कॉरिडोर और शहरीकरण के चलते टाइगर इंसानों के संपर्क में आ रहे हैं. इंसान को अपने इतना नजदीक देख कई बार टाइगर इंसानों पर हमला कर देते हैं.

टाइगर के बारे में अलग सोचने की जरूरत है, क्योंकि इनकी आबादी बढ़ रही है, जो कि अच्छी बात है, लेकिन जंगल सिकुड़ रहे हैं. अंसारी ने बताया कि टेराई पश्चिम में पिछले साल एक बाघिन ने पांच-छह लोगों पर हमला किया. उसे मैनइटर घोषित किया गया और शूट कर दिया गया.

कहां आ रही है दिक्कत

देश के ज्यादातर नेशनल पार्कों में बेहतर मैनेजमेंट के लिए बजट, फंड और ट्रेनिंग नहीं मिल रही है. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट ने बताया कि अगर हमारे पास हाथी को बेहोश करने के लिए ट्रेंकुलाइज गन है. तो उसे शिफ्ट करने के लिए क्रेन नहीं है. डॉक्टर्स अच्छे लाने होंगे. एक्सपर्टीज की भी कमी है. पब्लिक मैनेजमेंट नहीं है. 90 फीसदी पब्लिक को रोक लिया जाए तो मुश्किलें काफी हद तक सुलझ सकती हैं. टाइगर के लिए तो एसओपी जारी है. हाथी के लिए नहीं है. प्राइवेट शूटर्स पर बैन है. अब पांच सदस्यों वाली कमेटी फैसला करती है कि टाइगर को शूट किया जाए या नहीं.

कैसे निकलेगा हल

इंसानों और जानवरों के बीच विवाद को रोकने के लिए जंगली जानवरों के आनेजाने के रूट बंद नहीं होने चाहिए. हाथी चलता हुआ जानवर होता है. कभी कॉरिडोर में रुकता नहीं है. अंसारी ने बताया कि इस झड़प को रोकने के लिए उत्तराखंड में खेती के तरीकों में भी बदलाव किए गए हैं. इसके लिए WWF प्रयास भी कर रहा है. जैसे कि हाथी को गन्ना पसंद है. जिस कारण वो खेतों में घुस आते हैं. ऐसे में उसे रोकने के लिए गन्ने की जगह दूसरी चीजों की खेती की गई. फसल के तरीके बदले गए. अच्छा मैकनिज्म बनाया गया और इसका रिजल्ट बेहतर रहा. इन सब बदलावों की वजह से धीरे-धीरे हाथी के हमले लगभग बंद हो गए.