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डीएनए, युद्ध और राजनीति: बहुत चटपटा है गन्ने और चीनी का इतिहास

योगी आदित्यनाथ के बयान पर चुटकुले और मीम आप पढ़ ही चुके होंगे, लेकिन शक्कर और गन्ने से जुड़ा बहुत कुछ है जो शायद आपने इससे पहले न सुना हो. आइए उसी पर बात करते हैं

Animesh Mukharjee

योगी आदित्यनाथ ने कहा कि किसान गन्ना कम उपजाएं, लोगों को डायबटीज़ हो जाती है. इस बयान के बाद तमाम तरह की टिप्पणियां हुईं, चुटकुले और मीम बने. वो सब तो आप पढ़ ही चुके होंगे, लेकिन शक्कर और गन्ने से जुड़ा बहुत कुछ है जो शायद आपने इससे पहले न सुना हो. आइए उसी पर बात करते हैं. आगे बढ़ने के पहले बता दें कि दुनिया की राजनीति में शक्कर ने पेट्रोल की तरह कई युद्ध करवाए हैं.

चीनी आपके डीएनए में है


अंग्रेज़ी का शब्द है शुगर. इसे हिंदी में हम मोटे तौर पर चीनी या शक्कर कह देते हैं. लेकिन शुगर एक लेबल है, जिसके अंदर बहुत से प्रकार आते हैं. सामान्य ग्लूकोज़, फ़्रक्टोज़ और लैक्टोज़ जैसी मीठी शक्कर, स्टार्ट और कार्ब जैसी स्वादहीन शक्कर भी होती है. इसके अलावा हमारा डीएनए भी राइबोज़ नाम की शुगर से बना है. दूसरे शब्दों में कहें तो चीनी आपके खून में ही नहीं बल्कि डीएनए में भी है. मतलब जीवन के उत्पन्न होने से लेकर जीव के बड़े होने और ज़िंदा रहने तक हमें अलग-अलग तरह की शुगर की ज़रूरत पड़ती है. क्योंकि आम जनता का वास्ता सफेद चीनी से पड़ता है तो हम उसको लेकर ही आगे बढ़ते हैं.

चीनी का चीन से क्या लेना देना

शक्कर गन्ने से बनती है. प्राचीन गन्ना सबसे पहले पपुआ न्यूगिनी में पैदा हुआ. वहां से ये कैसे भी भारत आया जहां इसका क्रॉस घास से हुआ और आधुनिक गन्ना बना. हम हज़ारों साल से गन्ना इस्तेमाल कर रहे हैं. सिंधु घाटी सभ्यता के समय के कुछ प्रमाण इशारा करते हैं कि वे गन्ने के बारे में जानते थे. ऋगवेद में इक्षु शब्द मिलता है जिससे ईख बना. पंतजलि (मैगी वाले नहीं, पुराने वाले) ने सबसे पहले शर्करा शब्द इस्तेमाल किया है. जब सिकंदर आया तो उन्हे अचंभा हुआ कि इनके पेड़ से शहद निकलता है.

खैर, शक्कर से चीनी पर आते हैं. दरअसल यूरोपीय कॉलोनियों के शासन में भारत में जब शुगर मिल नहीं थीं, तो सफेद क्रिस्टल वाली शक्कर चीन से आती थी. इसलिए इसका नाम चीनी पड़ा. लेकिन सफेद चीनी के चीन से आने का यह मतलब नहीं कि शक्कर का चीन से नाता है. शक्कर भारत की दुनिया को देन है लेकिन चीनी मिल में चीनी यूरोप में बनी, चूंकि यूरोप के देशों के पास गन्ना नहीं था तो उनके पास दुनिया पर कब्ज़ा करने का एक मीठा कारण भी था. भारत में मौर्य काल में गन्ने से रस निकालने और उससे राब, गुड़ और खांड बनने की प्रकिया ठीक-ठाक विकसित हो चुकी थी.

केटी आचाया की किताब 'द हिस्टॉरिकल डिक्शनरी ऑफ़ इंडियन फू़ड' में बताया गया है कि चरक ने शक्कर और गुड़ के बारे में विस्तार से लिखा है. तब के गोंडवाना प्रदेश (आज के बंगाल) से सबसे ज़्यादा गन्ना आता था. गोंडवाना प्रदेश से आए इस मीठे पत्थर (शुरुआती रोमन्स को गुड़ ऐसा ही लगा) का नाम गौंड होते हुए गुड़ हो गया. वैसे गुड़ के अंग्रेजी नाम जैगरी का मूल भी संस्कृत में है. शर्करा अरब के रास्ते यूरोप पहुंचा और जैगर/जैगरी बन गया. सैकरीन और शक्कर का शाब्दिक संबंध तो आप खुद ही तलाश सकते हैं. ऐसा भी नहीं है कि चीनी का चीन से कोई संबंध न हो. ह्वेनसांग जब भारत आया तो चीन के राजा ने हर्षवर्धन के पास विशेष रूप से शक्कर बनाने की कला सीखने के लिए लोग भेजे.

शक्कर राजनीति और जंग

भगवान बुद्ध के समय तक भारतीय गन्ने का रस निकालने का जुगाड़ कर चुके थे. अरबों के रास्ते 11वीं शताब्दी में शक्कर का प्रारंभिक रूप यूरोप पहुंचा. जहां उन्होंने इसे 'नया मसाला' कहा. सन् 1319 में लंदन में लगभग एक किलो शक्कर की कीमत 2 शिलिंग थी. आज के हिसाब से यह लगभग 7000-8000 रुपए होता है. ज़ाहिर है कि उस ज़माने में चीनी सिर्फ रईसों के शौक की चीज़ थी. औद्योगिक क्रांति के दौर में इस सफेद सोने में ढेर सारा मुनाफा था, जिसे कमाने के लिए विशेष रूप से अश्वेतों पर घोर अत्याचार हुए.

1740 के दशक में यूरोप में समुद्र के रास्ते कच्ची चीनी आती थी. ब्रिटेन ने देखते ही देखते इन सारे रास्तों पर कब्ज़ा कर लिया. ऐसे में चीनी की महंगी हो गई और फ्रांस को चीनी मिलना बंद हो गई. ऐसे में नेपोलियन ने चुकंदर से चीनी बनाने का विकल्प तलाशा. शुरू में इसका काफी मज़ाक उड़ा मगर बाद में दुनिया की 50 प्रतिशत चीनी चुकंदर से ही बनने लगी. 1874 में ब्रिटेन की सरकार ने चीनी कंपनियों की मनमानी खत्म करते हुए चीनी का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया, आज भी दुनिया के लगभग हर देश में यही सरकारी हस्तक्षेप वाली व्यवस्था बनी हुई है.

हेरोइन से ज़्यादा होती है चीनी की लत!

पिछले कुछ सालों में चीनी के इस्तेमाल को कम करने पर काफी ज़ोर दिया जाता है. कुछ अध्ययन तो ये भी कहते हैं कि चीनी की लत हेरोइन से ज्यादा होती है. ये बात डरावनी सी लगती है लेकिन अतिशयोक्ति है. दरअसल हमारा समाज बचपन से हमें खुशी का मतलब मीठा बताता है. त्योहार, बढ़िया खाना, उत्सव कुछ भी हो रहा हो मीठा होना ज़रूरी है. तमाम विज्ञापन भी इस बात को भुनाते हैं. इस लत को छोड़ना मुश्किल है लेकिन ये कहीं से भी हेरोइन की लत जैसी खतरनाक नहीं है. हां अगर आप बढ़ती उम्र के असर को कम करना चाहते हैं तो चीनी खाना कम से कम कर दीजिए. कोशिश करिए कि सफेद चीनी से बनी चीज़ों की जगह फलों और शहद जैसे स्रोत से अपनी ज़रूरत पूरी करें. और हाँ, फलों का रस, गुड़ या शहद चीनी हर फॉर्म में ज़रूरत से ज्यादा लेने पर नकारात्मक असर ही डालती है. चीनी का मीठा विकल्प शुगर फ्री पाउडर चीनी से ज्यादा खराब असर डालता है.

इसमें कोई शक नहीं कि गर्मागरम जलेबी, पेड़े, खीर, ब्राउनी, पाई, चॉकलेट केक, कोला, शहद या और किसी भी रूप में चीनी हमको अच्छी लगती ही है. दुनिया भर के लोगों की ज़ुबां और मन चीनी को देखकर कंट्रोल खो देते हैं, ऐसे चीनी और गन्ने को लेकर किसने क्या बोला उसे छोड़ दीजिए. एक कप कड़क चाय पीते हैं थोड़ी कम चीनी के साथ.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)