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अनुराग कश्यप: नए भारतीय सिनेमा का आदि विद्रोही

सबसे ज्यादा फैन फॉलोइंग अनुराग कश्यप की इस वजह से है कि वो व्यवस्था को लगातार चैलेंज करते रहे

Arun Tiwari

भारतीय सिनेमा के सौ साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर एक फिल्म बनाई गई थी बॉम्बे टॉकीज. इस फिल्म के प्रोमोशन को लेकर एक न्यूज चैनल पर कई फिल्म निर्देशक बैठे थे. एक शतक पूरा कर चुके भारतीय सिनेमा के कई पहलुओं पर चर्चा हो रही थी.

बात निकली फिल्म सत्या की. पैनल में मौजूद सभी निर्देशकों ने माना कि भारतीय फिल्मों के इतिहास में सत्या एक ऐसी फिल्म थी जिसने फिल्म निर्माण की कई धारणाओं को तोड़ा दिया था. इस फिल्म ने इंडस्ट्री को कई बेहतरीन कलाकार दिए. कहानी कहने की नई विधा दी. और एक सबसे कमाल का व्यक्ति दिया जो इंडस्ट्री के पुरातन कानूनों पर कुठाराघात करता चलता है. अनुराग कश्यप.


मशहूर यू ट्यूब चैनल टेडएक्स पर अनुराग कश्यप ने खुद भी इस बात को स्वीकार किया था कि वो जो कुछ भी बनना चाहते थे उसकी शुरुआत सत्या से हुई.

1990 के दशक के पहले (इसमें 90 के दशक के शुरुआती सालों को भी ले सकते हैं) तक फिल्म इंडस्ट्री में दो ही तरह की फिल्में बनती थीं. एक पॉपुलर सिनेमा और दूसरा आर्ट सिनेमा. पहली वाली फिल्में खूब पैसा कमाती थीं और दूसरी राष्ट्रीय पुरस्कार जीतती थीं और अंत में दूरदर्शन के दर्शकों के लिए उपलब्ध हो जाया करती थीं. अनुराग इन दोनों में खुद को फिट नहीं पाते थे.

फिल्म इंडस्ट्री जैसे स्थापित माध्यम की दोनों विधाओं में खुद को फिट न पाने वाले अनुराग कश्यप ने हर स्थापित धारणा के खिलाफ आवाज उठाई है. आज जब हम हर तरफ कंगना रनौत की तारीफ होते हुए देखते हैं तो हममें से शायद बेहद कम लोगों को मालूम हो कि अनुराग उन पहले लोगों में हैं जिन्होंने लिखकर इसके खिलाफ आवाज उठाई थी.

पैशन फॉर सिनेमा नाम के उनके ब्लॉग में अनुराग कश्यप ने इंडस्ट्री के कायदों को लेकर उफनते गुस्से का बुरी तरह इजहार किया. और कमाल की बात ये है कि इसके लिए अनुराग ने अपने कामयाब होने तक का इंतजार नहीं किया.

एक निर्देशक के तौर पर जिस फिल्म ने अनुराग कश्यप को पहचान दिलाई वो ब्लैक फ्राइडे थी. लेकिन ब्लैक फ्राइडे को रिलीज होने में सालों लगे. अनुराग ने ही एक प्रोग्राम ने इस फिल्म के रिलीज होने की कहानी बताई थी. उनके अनुसार ब्लैक फ्राइडे को भारत में रिलीज होने से बैन कर दिया गया था लेकिन इसकी पाइरेटेड सीडी बाजार में आ गई थी. सुप्रीम कोर्ट के एक जज किसी काम के सिलसिले में दुबई गए हुए थे. उनके एक परिचित ने उन्हें ये फिल्म देखने के लिए कहा. उन्होंने देखी और बहुत तारीफ की तो उस परिचित ने बताया कि ये फिल्म तो आपके देश में बैन है. वो वापस लौटे. फिर केस खुला और तब ब्लैक फ्राइडे रिलीज हो पाई.

सिनेमा बनाने के शौकीन किसी भी नए व्यक्ति के लिए कितना मुश्किल होगा, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है. आप एक फिल्म बनाइए और वो सालों लटकी रहे. और ऐसा सिर्फ एक बार ना हो, हर बार हो. ब्लैक फ्राइडे को तो रिलीज होने की वजह से पर्याप्त ख्याति भी मिल गई. अन्यथा अनुराग कश्यप की लास्ट ट्रेन टू महाकाली और पांच जैसी फिल्में लोगों के जेहन में भी नहीं होंगी.

सामान्य तौर पर कोई भी आदमी इन सबसे हतोत्साहित होता है लेकिन अनुराग कश्यप मुखर रहे. वो खुद भी मानते हैं कि उनकी जिंदगी इंटरनेट और टोरेंट के डाउनलोडर्स ने बदली है. 2008 में दिए गए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि अभी मेरा दर्शक कॉलेज का युवा है, मैं उसके लिए ही फिल्में बना रहा हूं. आगे आने वालों सालों में वो मार्केट में आएगा, जॉब करेगा तो मेरी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हिट होंगी.

बेहद भरोसे के साथ दिए गए उनके इस इंटरव्यू का नतीजा हमें गैंग्स ऑफ वासेपुर में देखने को मिलता है. जून 2012 में आई इस फिल्म ने उस तीसरे तरह के सिनेमा को बिल्कुल स्थापित कर दिया जो अनुराग बनाना चाहते थे. फिल्म कामयाब भी रही. शायद अनुराग कश्यप के वो कॉलेज वाले दर्शक अब नौकरी करने लगे थे.

अनुराग अब भी मानते हैं कि उनकी फिल्में बहुत मुनाफा नहीं कमा पातीं. लेकिन कम से कम अब वो फिल्में आराम से बन रही हैं जो वो बनाना चाहते थे. ऐसा नहीं है कि इस लड़ाई में वो अकेले हैं उनके साथ कई और भी उनके मित्र हैं जो जुड़ गए हैं. लेकिन शायद सबसे ज्यादा फैन फॉलोइंग अनुराग कश्यप की इस वजह से है कि वो व्यवस्था को लगातार चैलेंज करते रहे.

कई बार बोलने वालों को बाहर का रास्ता भी दिखा दिया जाता है. अनुराग कश्यप के साथ ऐसा इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि वो अपने पैर बेहद मजबूती से जमाए खड़े थे. वो किसी को उखाड़ना नहीं चाहते थे बस खुद को जमाना चाहते थे. और फिल्म इंडस्ट्री में लगभग 20 साल गुजारने के बाद वो ये करने में कामयाब हो गए हैं.

वो खूब जिएं और ऐसी फिल्में बनाते रहें....हमारी बधाई