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इस शख्स के लिए बॉलीवुड का आज भी 'दिल तो पागल है'

ये विडंबना ही है कि बॉलीवुड का एक महान गीतकार पहले गायक बनना चाहता था.

Kinshuk Praval

बॉबी, अमर प्रेम, आराधना, शोले, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे और ताल जैसी सुपरहिट फिल्मों के गाने हिट हुए तो उनके पीछे संगीत भी था तो शब्दों को गीतों में पिरोने वाला एक बाज़ीगर भी. एक नाम आनंद बख्शी जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपने गीतों की वजह से अमर हो चुका है. 21 जुलाई की तारीख इस नायाब फनकार के जन्मदिन को हमेशा याद रखेगी.

ये विडंबना ही है कि बॉलीवुड का एक महान गीतकार पहले गायक बनना चाहता था. ये ठीक उसी तरह है जैसे क्रिकेट के भगवान कहलाने वाले सचिन तेंदुलकर बल्लेबाज नहीं बल्कि गेंदबाज बनना चाहते थे.


लेकिन वक्त और किस्मत को आनंद बख्शी की कलम से निकले शब्दों का इंतजार था. भले ही आनंद बख्शी की पार्श्व गायक बनने की हसरत उन्हें पाकिस्तान से मुंबई खींच लाई. लेकिन उनकी कलम से निकले जादू भरे शब्दों में नियति संगीत भरना चाहती थी.

आनंद बख्शी की मुंबई की मायानगरी में आ कर छा जाने की कहानी भी मायावी ही है. मुंबई में बतौर गायक अपना करियर शुरू करना चाहते थे लेकिन पहचान और कामयाबी गीतकार के रूप में मिली. आनंद बख्शी के लिखे गानों ने न सिर्फ फिल्मों को सुपरहिट किया बल्कि कई कलाकारों की किस्मत को भी बना दिया.

फिल्म आराधाना के उनके लिखे गानों ने अगर आनंद बख्शी को पहचान दी तो इस फिल्म ने राजेश खन्ना और किशोर कुमार को सितारा भी बनाया. कहा जाता है कि राजेश खन्ना के सुपरस्टार बनने के पीछे आनंद बख्शी के गानों की भी बड़ी भूमिका रही. न सिर्फ राजेश खन्ना और किशोर कुमार बल्कि कई संगीतकारों की किस्मत भी आनंद बख्शी के साथ हुई जुगलबंदी से पलट गई. आराधना की कामयाबी के बाद ही संगीतकार आर डी बर्मन और आनंद बख्शी की जोड़ी ने कई सुपरहिट फिल्में दीं.

21 जुलाई 1930 को आनंद बख्शी का जन्म पाकिस्तान के रावलपिंडी में हुआ था. लेकिन बंटवारे के चलते परिवार लखनऊ आ कर बस गया. उन्होंने रॉयल इंडियन नेवी में बतौर कैडेट दो साल काम किया. बाद में उन्होंने कभी टेलीफोन ऑपरेटर तो कभी मोटर मैकेनिक का भी काम किया.

लेकिन उनका असली इंतजार मुंबई में हो रहा था जहां शुरुआती इम्तेहान भी बेकरार थे. आनंद बख्शी एक गायक बनने का सपना लेकर समंदर के शहर में अपनी मंजिल की लहरों को ढूंढने निकल पड़े. उनको उस वक्त के मशहूर कॉमेडियन भगवान दादा के रूप में एक ‘भला आदमी’ मिला जिससे उन्हें पहला काम मिला. भगवान दादा ने उन्हें अपनी फिल्म ‘भला आदमी’ में गीतकार के रूप में काम करने का मौका दिया. हालांकि इस फिल्म के जरिये उन्हें पहचान नहीं मिली लेकिन एक गीतकार के रूप में हिंदी सिनेमा में उनका सफर शुरू हो गया.

साल 1965 में फिल्म 'जब जब फूल खिले' उनके करियर का टर्निंग प्वाइंट थी. फिल्म के सभी गाने ‘परदेसियों से न अंखियां मिलाना, ‘ये समां.. समां है ये प्यार का’, ‘एक था गुल और एक थी बुलबुल’ सुपरहिट रहे. आनंद बख्शी अपने गीतों की माला से मशहूर हो गए. उसके बाद उसी साल ही फिल्म ‘हिमालय की गोद में’ उनका गीत ‘चांद सी महबूबा हो मेरी’ लोगो को दिल में उतर गया. मुकेश की आवाज में ये गीत उस वक्त बहुत पसंद किया गया.

कामयाबी के सिलसिले को साल 1967 में फिल्म मिलन ने गीत ‘सावन का महीना पवन करे शोर’ से आगे बढ़ाया. इसके बाद आनंद बख्शी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा.

'अमर अकबर एंथनी', 'एक दूजे के लिए' 'अमर प्रेम' और 'शोले' जैसी सुपरहिट फिल्मों के गाने आनंद बख्शी की कलम से लिखे गए. शोले का गीत 'यह दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे'  आज भी दोस्ती की मिसाल के लिये लोग गुनगुनाते हैं जो साबित करता है कि आनंद बख्शी किस तरह से लोगों के दिल में उतर कर अपने गीत की आत्मा पहचान लिया करते थे.

गीतकार की कामयाबी भरे सफर में उनकी हसरत भी पूरी हुई जब उन्हें साल 1973 में फिल्म ‘मोम की गुड़िया’ में लता मंगेशकर के साथ गाने का मौका मिला.

चार हजार गाने लिखने वाले आनंद बख्शी की खासियत ये थी कि वो अपने गानों की रिकॉर्डिंग के वक्त स्टूडियो में मौजूद रहते थे. तकरीब चार दशक तक आनंद बख्शी तकरीबन 550 फिल्मों के लिये अपने गीत लिखे. 40 बार उनके गीत फिल्म फेयर अवार्ड के लिये नामित हुए जिसमें 4 बार उन्हें सम्मान मिला.

कभी रोमांटिक तो कभी दर्द भरे तो कभी कानों को पुरजोर सुकून देने वाले गीत लिखकर आनंद बख्शी संगीतकारों के दिल के करीब पहुंच चुके थे. उस जमाने के मशहूर संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, राहुल देव बर्मन, कल्याणजी आनंदजी,  रोशन, राजेश रोशन जैसे संगीतकारों की वो पहली पसंद हुआ करते थे. आनंद बख्शी के गीत और इन संगीतकारों का संगीत जब ताल से ताल मिलाता था तो फिल्मों को हिट होने की गारंटी केवल गानों से ही हो जाया करती थी.

आनंद बख्शी के लिखे गीतों की खूबसूरती उनकी सहजता और सरलता रही. उनके गीतों में शब्दों के खिलवाड़ से ज्यादा भावनाओं का जोर दिखता था. हिंदी सिनेमा को अपने हजारों गीतों की सौगात देने वाला ये महान गीतकार 72 साल की उम्र में अलविदा कह गया. आज भी उनके लिखे गीत लोगों के जेहन में जिंदा हैं और उनके लिये लोगों के दिल आज भी पागल हैं.