view all

George Melies: दुनिया की पहली साइंस-फिक्शन फिल्म में चांद तक पहुंचाने वाला जादूगर

जॉर्ज को जिस फिल्म सीन के लिए याद किया जाता है वो 'ए ट्रिप टू द मून' है. जॉर्ज ने जूल्स वर्न और ऑरवेल की कहानी को मिलाकर आदमी के चंद्रमा पर पहुंचने और वापस आने की कहानी पर फिल्म बनाई

Animesh Mukharjee

मार्टिन स्कोरसेसी की बहुचर्चित फिल्म है, ह्यूगो. फिल्म में आज से लगभग 90 साल पहले के पेरिस की कहानी है. इसमें एक अनाथ बच्चे के पास खिलौनों को ठीक करने का हुनर होता है. बच्चे को एक लंबी जर्नी के बाद पता चलता है कि रेलवे स्टेशन पर खिलौनों की दुकान वाला बूढ़ा (बेन किंग्सले) दरअसल दुनिया के सबसे महान फिल्मकारों में से एक है. उसके पापा जॉर्जी (जॉर्ज मेलिएस) को दुनिया वाले मरा हुआ मान चुके हैं. फिल्म एक सच्ची कहानी पर आधारित है. बस एक फर्क है कि असल ज़िंदगी में जॉर्ज मेलिएस को दुबारा लाइमलाइट में आने का कोई मौका नहीं मिला. वो सिनेमा के इतिहास का सबसे अद्भुत काम करके भी गुमनाम और अकेलेपन में उम्र काटने को मजबूर हुए.

सबसे पहली साइंस फिक्शन


1868 में फ्रांस में पैदा हुए जॉर्ज एक पेशेवर जादूगर थे. 28 दिसंबर 1895 को उन्होंने ल्यूमियर ब्रदर्स की बनाई पहली फिल्म फ्रांस में देखी. दूरदर्शी जॉर्ज को भविष्य की झलक दिख गई. उन्होंने ल्यूमियर ब्रदर्स से प्रोजेक्टर खरीदने की बात कही. ब्रदर्स सिनेमा की तकनीक को बांटना नहीं चाहते थे. उन्होंने जॉर्ज को मना कर दिया. इसके बाद जॉर्ज ने लंदन जाकर एडीसन से एक एनिमेटोग्राफ (प्रोजेक्टर) खरीदा और इसमें बदलाव कर इससे कैमरा भी बनाया. हालांकि बाद में उन्हें बेहतर कैमरा खरीदने के लिए मिल गया.

इसके बाद तो जॉर्ज ने जैसे दुनिया बदलने वाला सिनेमा बनाया. जॉर्ज ने अपने जादू की ट्रिक्स का इस्तेमाल सिनेमा में किया. लोगों को गायब करने, हवा में उड़ाने जैसी चीज़ों को मिलाकर फिल्मों की कहानियां बुनी. ये सब सिनेमा के आविष्कार के 2-3 साल (1897-1898) में ही वो कर रहे थे. उनकी प्रतिभा का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है जब ल्यूमियर ब्रदर्स स्क्रीन पर आती ट्रेन को सिनेमा के नाम पर दिखा रहे थे, जॉर्ज ने 1896 में 78 और 1897 में 52 फिल्में बनाईं. जॉर्ज की इन फिल्मों में कला और किस्सागोई खूब थी. इसके अलावा उन्होंने विज्ञापन फिल्में भी बनाई.

जॉर्ज को जिस फिल्म सीन के लिए याद किया जाता है वो 'ए ट्रिप टू द मून' है. जॉर्ज ने जूल्स वर्न और ऑरवेल की कहानी को मिलाकर आदमी के चंद्रमा पर पहुंचने और वापस आने की कहानी पर फिल्म बनाई. खास बात है कि ये फिल्म 1902 में बनी जबकि राइट ब्रदर्स ने हवाई जहाज का आविष्कार 1903 में किया. इसके साथ ही उस समय फिल्मों में न लाइटिंग का कॉन्सेप्ट आया था, न एडिटिंग की कोई जानकारी थी. फिल्मों ने बोलना नहीं शुरू किया था.

उनकी एक फिल्म का रीस्टोर किया गया सीन

मैलिएस ने शहर के बाहर एक स्टूडियो बनाया जिसमें सारी छत और दीवारें कांच की थीं. उस समय रौशनी का यही सबसे अच्छा इस्तेमाल था. इसके साथ-साथ हर एक्टर को क्या करना है ये बिलकुल सही याद रखना पड़ता था. बिना आवाज की कहानी में किस्सागोई करने की मुश्किल थी सो अलग. इन सबके बावजूद जॉर्ज ने बेहतरीन फिल्में बनाईं. एक से एक साइंसफिक्शन, जिनमें कॉमेडी का पुट रहता था उनकी खासियत थी. जॉर्ज ने एक-एक फ्रेम रंगकर अपनी फिल्मों के कुछ हिस्से रंगीन भी किए. उदाहरण के लिए उनकी एक रंगीन फिल्म ‘द इंपॉसिबल वॉएज’ में सूरज एक ट्रेन को निगल जाता है.

एडिसन की नाराजगी और बर्बादी

1907 तक मेलिएस का करियर खूब चला. मगर इसके बाद उसे थॉमस अल्वा एडीसन की नजर लग गई. 1908 में एडीसन ने मोशन पिक्चर्स पेटेंट कंपनी बनाई. इसके जरिए वो सिनेमा पर एकाधिकार चाहते थे. फिल्म बनाने वाले सभी बड़ी कंपनियों के अध्यक्ष एडीसन थे. एडिसन ने शूटिंग के रील देने और फिल्म बेचने की कड़ी शर्तें रख दीं. जॉर्ज की कंपनी स्टार फिल्म को हर हफ्ते हजार फीट की रील फिल्म बनाकर देनी पड़ती थी. बाकी कंपनियों में जहां साधारण फिल्में और कई डायरेक्टर होते थे, जॉर्ज अकेले और कलात्मक काम करते थे. उनके काम का मास प्रोडक्शन संभव ही नहीं था. इसके बाद भी जॉर्ज कोशिश करते रहे.

इम्पॉसिबल वॉएज का एक सीन

उनके भाई गैटसन मेलिएस ने उनके साथ मिलकर न्यूयॉर्क में फिल्म बनाना शुरू कर दिया था. गैटसन के काम करने का तरीका काफी अलग था. जॉर्ज ने एडिसन का विरोध भी किया. उनकी फिल्में छोटे मेलों में ज्यादा चलती थीं. नए नियमों के चलते उन्हें उनके दर्शकों से दूर किया जा रहा था. 1910 में जॉर्ज ने फिल्म बनाना कुछ समय के लिए रोका. उन्होंने यूरोप का टूर किया.

इसी साल उन्होंने चार्ल्स पाथ से एक डील की. इस डील ने जॉर्ज की बर्बादी की दास्तान लिख दी. जॉर्ज ने फिल्म बनाने के लिए पाथ से मोटा पैसा लिया और अपना घर, स्टूडियो गिरवी रख दिया.

जॉर्ज के भाई गैटसन ने 1912 में यूरोप, एशिया की यात्रा की और फिल्म शूट की. उनकी तमाम शूटिंग की रील रास्ते में रील इतनी खराब हो जाती थी कि उसे इस्तेमाल नहीं किया जा सकता था. दूसरी तरफ जॉर्ज की फिल्में भी इस समय भी अपनी लागत नहीं निकाल पा रही थीं. 1913 तक उनपर 50,000 डॉलर का कर्ज हो गया. उनका घर और स्टूडियो बिक गया. फिल्म कंपनी बंद हो गई.

प्रथम विश्वयुद्ध और मास्टरपीस के जूते

जॉर्ज की पत्नी और बेटे की इस बीच मौत हो गई. सेना ने जॉर्ज के स्टूडियो में घायलों के लिए हॉस्पिटल खोल दिया. उनकी फिल्मों की मास्टर कॉपी बनाकर जूतों की हील बना दी गई. जॉर्ज पूरी तरह टूट गए. उनसे सबकुछ छिन चुका था.

विश्वयुद्ध के बाद जॉर्ज के स्टू़डियो पर कर्ज के चलते चार्ल्स पाथ का कब्ज़ा हो गया. गुस्साए और निराश जॉर्ज ने अपनी सारी फिल्में और कॉस्ट्यूम जला दिए. एक दूसरे शहर में रहने लगे. अपनी स्टूडियो की एक हीरोइन से शादी कर ली और सेल्स मैन का काम करने लगे.

खोई पहचान और दुर्भाग्य

जॉर्ज के बारे में अचानक से कुछ सिनेमा प्रेमियों और पत्रकारों की रुचि जागी. 1931 में आकर (जिस साल की कहानी फिल्म ह्यूगो कहती है) में उनका सम्मान किया गया. उनकी कुछ खोई हुई फिल्मों को तलाश कर संरक्षित किया गया. मगर इसके बाद भी जॉर्ज को कुछ नहीं मिला. सारे सम्मान के बाद भी जॉर्ज हफ्ते में सातों दिन, दिन में 14 घंटे में काम करते थे. 1938 में कैंसर से उनकी मौत हो गई. मरने से कुछ समय पहले अस्पताल के बिस्तर पर उन्होंने कहा था- मेरे साथ हंसों क्योंकि मैं तुम्हारे सपनों को देखकर जीता हूं.

आप उनकी फिल्म ट्रिप टू द मून देखिए-

(हम ये लेख दोबारा प्रकाशित कर रहे हैं)