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इतिहास की ऐसी महिलाएं जो किस्सों में कुछ और हैं किताबों में और

मुगल काल में दर्ज कई महिलाएं हैं जिनके बारे में फिक्शन में काफी बातें होती हैं लेकिन इतिहास में इन्हें लेकर बहुत कुछ नहीं लिखा गया

Ravi kant Singh

फिल्म पद्मावत में रानी पद्मिनी को लेकर चर्चा सुर्खियों में है. लेकिन हमारा इतिहास ऐसी कई महिलाओं से भरा पड़ा है जिनका इतिहास में वर्णन कुछ और है और कहानियों में कुछ और. मुगल काल में दर्ज कई महिलाएं हैं जिनके बारे में फिक्शन में काफी बातें होती हैं लेकिन इतिहास में इन्हें लेकर अलग ढंग से लिखा गया है. या इतिहास में इनका जिक्र ही नहीं मिलता है. आइए आज इन्हीं महिलाओं के बारे में जानते हैं-

रानी कर्णावतीः हूमायूं की राखी


मध्यकालीन भारत में राजपूत व मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था. रानी कर्णावती चित्तौड़ के राजा की विधवा थीं. उस वक्त गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख रानी ने हुमायूं को राखी भेजी थी. हुमायूं इस हिंदू परंपरा को खूब अच्छी तरह से जानता था इसलिए उसे रानी कर्णावती की ये बात छू गई. हालांकि हूमायूं किसी को भी छोड़ता नहीं था लेकिन उसके दिल में रानी कर्णावती का प्यार उतर गया और उसने तुरंत अपने सैनिकों को युद्ध बंद करने का आदेश दिया. हूमायूं ने रानी कर्णावती को अपनी बहन का दर्जा दिया और उम्रभर रक्षा का वचन दिया.

जोधा बाईः ऐसी रानी जो थी ही नहीं

इतिहासकार, ब्लॉगर और राइटर राना सफवी के मुताबिक, जोधा बाई को जज करने के लिए कोई एतिहासिक संदर्भ नहीं है. क्योंकि असलियत में अकबर की ऐसी कोई पत्नी नहीं थी जिसे जोधा बाई कहा जाता था. मुगल प्रशासन में हरम एक जबरदस्त संगठित और बढ़िया ढंग से चलाया जाने वाला डिपार्टमेंट था. अकबर ने नियम बनाया था कि एक जैसे नामों में कनफ्यूजन न हो, इसलिए अपनी हर रानी और पटरानी को उस शहर के नाम से बुलाएंगे जहां वो पैदा हुई थीं. ऐसे में जोधा बाई को जोधपुर से होना चाहिए था.

जैसे की ‘मुग़ल-ए-आज़म’ और ‘जोधा-अकबर’ में दिखाया गया कि अकबर की राजपूत पत्नी आमेर से थीं. इसका मतलब उन्हें जोधा बाई तो नहीं बुलाया जा सकता था. वास्तव में, कहा जाता है कि उनका नाम हरकाबाई/हीरा कुंवर था, वो आमेर के राजा भारमल की बेटी थीं.

ये भी पक्का नहीं है कि वो शहजादे सलीम की मां थीं भी या नहीं. कई इतिहासकारों का मानना है कि जहांगीर एक पटरानी से पैदा हुए थे. यही वजह है कि अपने संस्मरण ‘तुज़ुकानामा या जहांगीरनामा’ में से किसी में भी जहांगीर ने कभी अपनी मां के नाम का ज़िक्र नहीं किया. हालांकि इसमें उन्होंने अपनी और अपने पिता की कई पत्नियों के नाम लिए थे.

मीराबाईः भक्ति के चलते राजघराने के आंख किरकिरी

कृष्णभक्ति में निरंतर रत रहने वाली हिंदी की महान कवियित्री मीराबाई का जन्म संवत् 1573 में जोधपुर के मेड़ता में हुआ था. इनकी शादी उदयपुर के महाराणा कुमार भोजराज के साथ हुआ था. मीराबाई कृष्णभक्ति के लिए जानी जाती हैं.

पति के गुजर जाने के बाद इनकी भक्ति दिनों दिन और बढ़ती गई. ये मंदिरों में जाकर कृष्ण भक्तों के साथ कृष्ण की मूर्ति के आगे नाचती रहती थीं. उनका कृष्णभक्ति में नाचना और गाना राज परिवार को नागवार गुजरता.

कहा जाता है कि महाराणा सांगा के कहने पर बार मीराबाई को जहर देकर मारने की कोशिश की गई. अंत में परेशान होकर वह द्वारका और वृंदावन गईं. मीरा बाई के कई पदों की रचना राजस्थानी से मिली जुली भाषा में हुई है. इसके अलावा कुछ विशुद्ध साहित्यिक ब्रजभाषा में भी लिखा गया है. भक्ति साहित्य में मीरा को काफी सम्मान मिला हुआ है मगर, कई 'पारंपरिक राजपूत घराने' आज भी अपनी बेटियों का नाम मीरा नहीं रखते हैं. बल्कि मीरा का नाम भी गलत तरीके से लेते हैं.

अनारकलीः सलीम की प्रेमिका या अकबर की

अनारकली के बारे में अलग-अलग इतिहासकरों की राय भी अलग-अलग है. कई इतिहासकार यह मानते हैं कि अनारकली का नाम पहले नादिरा बेगम था. कहीं-कहीं उन्हें शर्फुन्निसा भी कहा गया है. उनके बारे में कहा जाता है कि वे ईरान से आई थीं. व्यापारियों के कारवां में शामिल होकर लाहौर तक पहुंची थीं. पर उनकी खूबसूरती इतनी थी कि वहीं से हल्ला हो गया. यह काल ऐसा था कि तात्कालीन बादशाहों को किसी चीज का डर नहीं रहता था.

अकबर बादशाह के दरबार में नादिरा को तलब किया गया. और वहां उसे अनारकली नाम मिला. ब्रिटिश टूरिस्ट विलियम फिंच की मानें तो अनारकली अकबर की कई पत्नियों में से एक पत्नी थी. जिससे अकबर को बेटा भी था. उसका नाम था दानियाल शाह. बाद में अनारकली(नादिरा) के जहांगीर से इश्क की अफवाह उड़ी. जहांगीर अकबर का बेटा था. अनारकली की मौत को लेकर कई कहानियां हैं. इसमें सबसे चर्चित है कि अकबर ने इस बात पर खफा होकर अनारकली को लाहौर किले की दीवारों में चुनवा दिया. बाद में जहांगीर ने उसी जगह एक खूबसूरत मकबरा बनवाया.

मुमताज महलः प्रेम या कहानी?

मुमताज को कुदसिया बेगम या आलिया बेगम के नाम से भी जाना जाता है. मुमताज महल की 14 संतानें थीं जिनमें 8 लड़के और 6 लड़कियां थीं. इसमें सिर्फ 7 ही जिंदा बचे. जैसा कि इतिहास में दर्ज है मुमताज की मौत 40वें साल में सन 1631 में बुरहानपुर में हुई. मुमताज की आखिरी बेटी गौहरआरा थी. शाहजहां ने गौहरआरा को देखने तक से इनकार कर दिया था.

बाकी बहनों की तरह गौहरआरा की भी शादी नहीं हुई. कहा जाता है कि मुमताज फारसी की अच्छी जानकार थी और उसमें कविताएं भी लिखती थीं. फारसी और कविता के प्रति मुमताज का प्रेम ही था जो उन्होंने कई कवियों और बुद्धिजीवियों को आश्रय दे रखा था. 14 साल की उम्र में मुमताज और शाहजहां की शादी तय हुई और शादी हुई 1607 में. बताया जाता है कि शाहजहां ने मुमताज के साथ-साथ उसकी बहन से भी शादी की थी.