राजनीति में दिलचस्पी लेने वाले लोगों के दिमाग में जय प्रकाश नारायण का नाम याद आते ही दिमाग में एक तस्वीर उभरती है, पटना का जेपी मैदान, जिसमें अथाह भीड़ का समंदर सामने है. आज के युवा भारत में कम से कम 70 फीसदी लोग ऐसे हैं जिन्होंने इस दौर की सिर्फ बातें सुनी हैं. मगर इमरजेंसी और जेपी एक ऐसा सच है. जो समय बीतने के साथ-साथ किसी फंतासी की तरह बनता जा रहा है.
भारत खासकर बिहार के परिवेश में जेपी आज किस दर्जे पर हैं गैंग्स ऑफ वासेपुर के गाने से समझा जा सकता है. शादी के अवसर पर गाए जा रहे लोकगीत तार बिजली से पतले हमारे पिया में अंतरा आता है, 'जिंदगी खून भर घुट पानी भरा,अरे छपरा के बाबुजी ये क्या किया, लोकनायक जलाए ये कैसा दिया. यहां लोकनायक मतलब जेपी हैं और 'कैसा दिया' से अभिप्राय जनता पार्टी की असफलता है.
जयप्रकाश नारायण और इमरजेंसी का जिक्र उस दौर के नारों, स्लोगन और कविताओं के बिना पूरा नहीं हो सकता है. आइए याद करते हैं उस दौर के कुछ नारों को जो समय के साथ किवदंती बन गए.
इमरजेंसी की शुरुआत में जेपी ने नारा दिया था.
सम्पूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास तुम्हारा है.
रामधारी सिंह दिनकर की कविता भी खूब चर्चित हुई
ये नखत अमा के बुझते हैं, सारा आकाश तुम्हारा है.
दो राह, समय के रथ का घर्घर नाद सुनो/ सिंहासन खाली करो कि जनता आती है
हालांकि दिनकर ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जेपी पर कविता भी लिखी थी
है जयप्रकाश वह नाम जिसे
इतिहास समादर देता है,
बढ़कर जिसके पदचिन्हों को
उर पर अंकित कर लेता है.
संजय गांधी के 5 सूत्रीय कार्यक्रम का एक बड़ा चर्चित पहलू नसबंदी भी था. उसके ऊपर भी कई नारे लगे.
जमीन गई चकबंदी में, मकान गया हदबंदी में.
द्वार खड़ी औरत चिल्लाए, मेरा मर्द गया नसबंदी में.
इसके अलावा भी नारा लगा
इंदिरा हटाओ, इंद्री बचाओ.
इंदिरा गांधी और संजय गांधी को लेकर भी कई नारे बने
संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी
बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है
इमरजेंसी के बाद में जब दोनों हार गए तो फिर एक नारा लोकप्रिय हुआ. उस दौर में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘गाय और बछड़ा’ था. नारा गूंजा
एक बात सुनी है, हां भैया!
गैया भी हारी, हां भैया!
बछड़ा भी हारा, हां भैया!
इस दौर में बाबा नागार्जुन ने भी इंदिरा और संजय गांधी पर तंज करते हुए नारा दिया कि
इंदू जी, इंदू जी क्या कहें आपको,
बेटे को याद रखा, भूल गईं बाप को.
हालांकि इससे पहले बाबा इंदू जी के बाप, जवाहरलाल नेहरू को भी निशाने पर ले चुके थे.
आओ रानी हम ढोएंगे पालकी,
रफू करेंगे फटे पुराने जाल की
यही बनी है राय जवाहरलाल की
इंदिरा गांधी की तरफ से भी नारे लग रहे थे.
सूर्यकांत बरुआ ने कहा कि ‘इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा’
तो विरोधी लोग भी जवाबी नारा लगा रहे थे,
‘स्वर्ग से नेहरू करे पुकार, अबकी बिटिया जइयो हार’
इमरजेंसी के रोष में जनता पार्टी की सरकार बन तो गई थी मगर कुछ समय में ही जनता उससे त्रस्त हो गई. इंदिरा हटाओ देश बचाओ की जगह अब से नारे लगने लगे, इंदिरा लाओ देश बचाओ. 1980 के उपचुनाव में इंदिरा गांधी चिकमंगलूर से चुनाव जीत गईं. इस बार फिर नारा लगा.
एक शेरनी सौ लंगूर, चिकमंगलूर, चिकमंगलूर.