सिल्क यानी रेशम, रेशम के कीड़े की किस्मत बड़ी अजीब होती है. वो अपनी सुरक्षा के लिए अपने चारो ओर एक खोल बुनता है. दुनिया इस खोल को सिल्क कहती है, चमकदार मुलयाम सिल्क. एक समय के बाद कीड़ा इस खोल से मुक्त होना चाहता है. मगर दुनिया इस खोल की चमक की दीवानी होती है. कीड़े की आजादी का मतलब है खोल का टूट जाना. अंत में कीड़े को इस खोल की खातिर अपनी जान देनी पड़ती है.
सिल्क की कहानी भी यही है. सिल्क यानी सिल्क स्मिता. जिसने अपनी चमक से मनोरंजन का एक खोल बुना. ऐसा रेशमी खोल जिसके साथ डिब्बे में बंद फिल्में चल जाती थी. मगर एक समय के बाद वो इस खोल के बाहर जाना चाहती थी. लोग उसे इस खोल के बाहर नहीं जाने देना चाहते थे. फिर वही हुआ सिल्क ने अपनी जान दे दी. सिल्क स्मिता का रेशमी खोल बना रहा. जिस रेशमी खोल की चमक के साथ विद्या बालन ने ऐंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट, एंटरटेनमेंट का मंत्र दिया. बस फर्क एक ही था कि विद्या बालन के लिए ये महज एक किरदार था जो एक फिल्म के बाद खत्म हो गया. सिल्क के लिए ये जिंदगी थी जो उनकी फिल्मों के बाद खत्म हो गई.
दो दिसंबर 1960 को पैदा हुई विजयलक्ष्मी वेदलापति परिवार के लिए अनचाही औलाद थी. गरीबी और बेटी दोनों से छुटकारा पाने के लिए उसको बचपन में ही ब्याह दिया गया. ससुराल में मारपीट और अत्याचार से बचने के लिए विजयलक्ष्मी मद्रास चली आई. यहां तमिल फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार मिलने लगे. एवीएम स्टूडियो के करीब विनय चक्रवर्ती की नजर उनपर पड़ी. विनय ने विजय को अपने साथ रखा. विनय की पत्नी ने उसे अंग्रेजी सिखाई, डांस सिखाने की व्यवस्था की. 1979 में फिल्म आई विन्डिचक्रम् और इस फिल्म ने विजयलक्ष्मी को सिल्क स्मिता बना दिया.
सिल्क स्मिता की लोकप्रियता किस तेजी से बढ़ी समझना बड़ा आसान है. 1983 में जब बालु महेंद्रा ने अपनी बहु चर्चित फिल्म सदमा में सिल्क को कास्ट किया था, तब तक वो 4 साल में 200 से ज्यादा फिल्मों में काम कर चुकी थीं. इनमें तमिल, तेलुगु, कन्नड और मलयालम की ऐसी तमाम डिब्बाबंद फिल्में थीं जिनमें सिल्क की दो रील लगाकर उन्हें हिट करवा लिया गया था. अगर आज देखेंगे तो सदमा में भी सिल्क का किरदार ऐसा ही है. एक फूहड़ औरत जिसका कहानी में कोई स्थान नहीं. जो सिर्फ हीरो को लुभाने के लिए अपने शरीर की मांसलता को भद्दे तरीके से दिखाती है.
सिल्क के 17 साल लंबे फिल्मी करियर में ज्यादार दो ही तरह की फिल्में की हैं. एक जिनमें उनका एक कैबरेनुमा आइटम सॉन्ग होता था. दूसरी तरह की ज्यादातर फिल्मों में वो हैं जिनमें सिल्क एक सीक्रेट एजेंट होती थी और ‘किसी भी हद तक’ जाकर अपना मिशन पूरा करती थी.
एक समय के बाद सिल्क के इन दोहराव वाले किरदारों से दर्शक ऊब गए. ऐसे में शकीला नाम की नई सनसनी फिल्म इंडस्ट्री में अपनी चमक बिखेरने लगी, जिसकी स्कर्ट की ऊंचाई सिल्क से कुछ इंच कम थी. धीरे-धीरे सिल्क को काम मिलना बंद हो गया. वो जो कर रहीं थी दर्शक उससे ऊब चुके थे, वो जो करना चाहती थीं उसे कोई देखना नहीं चाहता था.
डर्टी पिक्चर और दूसरी जगहों पर आपने शकीला और सिल्क की दुश्मनी के किस्से सुने होंगे, मगर शकीला ने जब अपनी आत्मकथा लिखी तो उसमें सिल्क की भरपूर तारीफ की. वैसे हो सकता है कि आपको लगा हो कि शकीला कैसे आत्मकथा लिख सकती है. दर्शक के रूप में हमारी समझ आज भी महिलाओं के प्रति बहुत अपरिपक्व है. हम किसी को अच्छा इसलिए मान लेते हैं क्योंकि उसने कुछ सशक्त किरदार निभाए. वहीं सिल्क और शकीला के प्रति पूर्वाग्रह होने की वजह उनका पर्दे पर बिंबो होना है.
नीचे दिए गए वीडियो में एक बार सिल्क की अदाकारी को देखिए. उन चश्मों को हटाकर जो डायरेक्टर आपको दिखाना चाहता है. पूर्वाग्रह हटाकर देखेंगे तो पाएंगे कि सिल्क स्मिता के अंदर अदाकारी की कई गोरी रंगत और अंग्रेजी बोलने वाली हिरोइनों से ज्यादा संभावनाएं थीं. मगर कुछ और था जो नहीं था.