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देवघर: कैदियों के हाथ होता है बाबा भोले शंकर का शृंगार, बदल गया है जेल का माहौल

आस्था और भक्ति के लिए न कोई सीमा होती है और न ही किसी तरह का कोई बंधन

Brajesh Roy

आस्था और भक्ति के लिए न कोई सीमा होती है और न ही कोई बंधन. कबीर भी कहते रहे हैं प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय, राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय. झारखंड के देवघर स्थित मण्डल कारा में बंद कैदियों को देखने से ही यह उक्ति जीवंत नजर आती है. भगवान भोले शंकर के लिए जेल में बंद कैदियों के द्वारा प्रतिदिन ‘पुष्प नाग मुकुट’ तैयार किया जाता है तो मंजर देखते ही बनता है. बाबा बैद्यनाथ के ऋंगार के लिए तैयार किए जाने वाले नाग मुकुट के लिए हिन्दू, मुस्लिम सिख, ईसाई, सबका भाव निकलता है. कैदी भी मानते हैं कि भगवान शिव शंकर की महिमा अपरंपार है.

सृस्टि के निर्माता ब्रह्मा, पालनहार विष्णु भी मानते हैं कि शिव शंकर ही देवादिदेव हैं. मनुष्य को आपस मे प्रेम सद्द्भाव से रहने की प्रेरणा भी भोले शंकर ही देते हैं. शायद यही वजह है कि औघड़दानी महादेव के प्रति हर धर्म के लोगों में अगाध श्रद्धा और प्रेम दिखाई पड़ता है. झारखंड देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के श्रृंगार के लिए जेल में बंद कैदियों की भक्ति और समर्पण भी भगवान शिव के प्रति प्रेम और सद्द्भाव का उदाहरण पेश करता है.


देवघर स्थित जेल के अंदर सालोंभर एक अलग माहौल नज़र आता है. यहां हर दिन बाबा भोले शंकर के प्रति अटूट भक्ति की बयार बहती है. यहां बहने वाली श्रद्धा की गंगा में कैदी खूब डुबकी लगाते हैं. भजन कीर्तन के साथ बोल बम के नारे और बाबा बैद्यनाथ का जयकारा हर दिन सालों भर यहां गुंजायमान होता है. देवघर मंडल कारा की यह एक अमिट पहचान भी है.

देवघर जेल

बड़ी बात यह भी है कि विश्व प्रसिद्ध द्वादश ज्योतिर्लिंग में मनोकामना लिंग के तौर पर स्थापित भगवान भोले शंकर के सांध्यकालीन श्रृंगार की पूरी जिम्मेवारी यहां के कैदी ही उठाते रहे हैं. मतलब, देवघर जेल के कैदियों के हाथों से बने फूल के मुकुट से ही मनोकामना लिंग बाबा बैद्यनाथ का श्रृंगार होता है. गौर करने वाली बात यह भी है कि ये सिर्फ सावन में ही नहीं बल्कि सालोंभर हर दिन बाबा के श्रृंगार की तैयारी यहां होती है.

श्रृंगार पूजा की तैयारी के लिए जेल के अंदर कैदियों ने एक समिति बना रखी है और कार्य का बंटवारा भी कर रखा है. लगभग तीन दर्जन कैदी जिसमे हिन्दू, मुस्लिम सहित सभी धर्म के लोग मिलकर बाबा बैद्यनाथ के श्रृंगार पूजा की तैयारी में लगे नजर आते है. इस दौरान भोले शंकर के भजन भी गाये जाते हैं. बाकायदा तबला डुग्गी, ढोलक और हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्रों का भी इस्तेमाल किया जाता है.

भक्ति भाव का दिलचस्प नजारा यह होता है कि 3 फीट के तैयार होने वाले मुकुट में सजावट के ज्यादातर फूल का इस्तेमाल जेल परिसर की बगिया का ही होता है. जरूरत के मुताबिक जेल प्रबंधन बाहर से भी फूलों का इंतेजाम करते हैं. दोपहर बाद से नाग मुकुट की तैयारी शुरू होती है और लगभग चार घंटे में आकर्षक पुष्प सज्जा का नाग मुकुट बाबा बैद्यनाथ के लिए तैयार हो जाता है.

तैयार पुष्प नाग मुकुट को लेकर जेल के कैदी ही बाबा बैद्यनाथ के मंदिर पहुंचते हैं और पुजारी विशेष के द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच संध्या बेला में भोले शंकर का शृंगार सम्पन्न होता है. मन को विभोर करने वाला यह मंजर अतुलनीय भी होता है. शिवरात्रि को छोड़ हर दिन बाबा बैद्यनाथ का शृंगार पुष्प नाग मुकुट से होता है. शिवरात्रि के दिन भोले शंकर के विवाह की तिथि होती है इसलिए उस दिन कैदियों द्वारा निर्मित पुष्प नाग मुकुट वसुकीनाथ मंदिर के लिए भेज दिया जाता है.

बाबा धाम मंदिर के प्रबंध पुजारी रमेश पंडा के अनुसार आजादी के पहले देवघर जेल में एक अंग्रेज़ जेलर पदस्थापित था जिसका पुत्र गंभीर रूप से बीमार हुआ था. पिता अंग्रेज जेलर ने पुत्र के ठीक होने के लिए सभी उपाय किए और इसी दौरान भगवान भोले शंकर के एक भक्त ने जेलर को सलाह दी कि बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करते हुए पूजन करो और बाबा का श्रृंगार करो तो तुम्हारे पुत्र को स्वास्थ्य लाभ मिलेगा.

अंग्रेज़ जेलर ने ऐसा ही किया. परिणाम भी सामने आया जेलर का पुत्र स्वस्थ हो गया उसके बाद से अंग्रेज़ जेलर ने विधिवत भोले शंकर की पुजा अर्चना शुरू कर दी. इतना ही नहीं अंग्रेज़ जेलर ने जेल में बंद कैदियों को भी भगवान भोले शंकर की पुजा अर्चना और शृंगार के लिए प्रेरित किया. देखते-देखते जेल में माहौल शिवमय होता चला गया. तब से लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है. प्रतिदिन यहां के कैदी भगवान भोले शंकर के शिव आराधना को अपनी दिनचर्या का हिस्सा मानते हैं और शृंगार पुजा के लिए पुष्प नाग मुकुट तैयार करना इनका धर्म प्रतीत होता है.

संथाल परगना क्षेत्र के डीआईजी राज कुमार लकड़ा भी मानते हैं कि यह पूरी प्रक्रिया अद्भुत है. आम तौर पर कैदियों को लेकर जेल प्रशासन विशेष सतर्कता बरतता है लेकिन यहां भोले शंकर की कृपा से ही आज तक कोई ऐसी घटना नहीं घटी कि बाबा के लिए तैयार ऋंगार मुकुट को मंदिर परिसर तक पहुंचने के क्रम में कोई कैदी कभी भागा हो. डीआईजी मानते हैं कि कैदियों के जीवन में और जेल परिसर में बाबा के लिए श्रद्धा और भक्ति से एक अलग माहौल तैयार हुआ है जो अनुकरणीय है.

जेल से लेकर पुलिस प्रशासन तक की मान्यता रही है कि कैदियों की श्रद्धा और भक्ति के कारण जेल परिसर में प्रेम सद्भाव का माहौल कायम हुआ है. दरअसल सावन के महीने में देवघर बाबा बैद्यनाथ को लेकर पूरे झारखंड में ऐसा ही माहौल नज़र आता है. रांची, जमशेदपुर, धनबाद, बोकारो, पलामू, दुमका या फिर देवघर श्रद्धालु कांवड़ियों के लिए हर धर्म के लोग अपना प्रेम और सद्दभाव सस्नेह बरसाते हैं. मतलब साफ है केसरिया रंग में रंगे भगवान भोले शंकर के भक्तों की पूछ समाज में बढ़ जाती है.

बदलते माहौल का एक उदाहरण यह भी है कि रांची स्थित राज्य खादी बोर्ड के कार्यालय में दर्जनों मुस्लिम महिलाएं इन दिनों भोले शंकर के श्रद्धालुओं के लिए केसरिया रंग का ड्रेस पूरी लगन से तैयार कर रही हैं. गुलशन परवीन बताती हैं कि केसरिया वस्त्र पहने भोले बाबा के श्रद्धालु जब जलाभिषेक के लिए निकलते हैं तो प्रेम और सद्दभाव का वातावरण बनता है.

इसी तरह सागी परवीन और शहजादी बानो भी कांवड़िया वस्त्र को तैयार करते हुए खुशी जाहिर करती हैं. यह अलग बात है कि केसरिया वस्त्र को तैयार करने में इनकी आमदनी में भी इजाफा हुआ है. बाजार की मांग को देखते हुए इन मुस्लिम महिलाओं की चुनौती भी बढ़ी है लेकिन जिस भाव से ये शिव भक्त श्रद्धालुओं के लिए कांवरिया वस्त्र तैयार कर रही हैं वह आज रांची के बड़े शोरूम की शोभा तो है ही मांग भी बेजोड़ है.

बहरहाल सावन के महीने में शिव भक्ति प्रेम और सद्भाव का भी प्रतीक है. झारखंड में बाबा नगरी देवघर से लेकर राजधानी रांची तक धर्म मजहब से ऊपर भोले शंकर की भक्ति की गंगा बहती दिखाई पड़ रही है. यह सच भी है कि हमें अपने समाज में प्रेम भाईचारगी के संदेश को जीवंत रखने की जरूरत है, माध्यम जो भी हो आपसी सद्दभाव के लिए यह अनिवार्य है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)