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वीवी गिरि पुण्यतिथि विशेष: जब सुप्रीम कोर्ट में हाजिर हुए थे राष्ट्रपति

ये अपनी तरह का अलग ढंग का पहला मुकदमा था.

Surendra Kishore

राष्ट्रपति वी वी गिरि 1970 में सुप्रीम कोर्ट में खुद हाजिर हुए थे. 1969 में राष्ट्रपति पद के निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विजयी गिरि के खिलाफ याचिका दायर की गई थी. उस केस में अपना बयान दर्ज कराने के लिए महामहिम इस देश की सबसे बड़ी अदालत में हाजिर हुए थे.

वैसे तो उससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति का बयान दर्ज करने के लिए एक कमिश्नर बहाल कर दिया था. कमिश्नर राष्ट्रपति भवन पहुंचकर उनका बयान दर्ज करने ही वाले थे, लेकिन महामहिम गिरि ने इच्छा प्रकट की कि वह खुद सुप्रीम कोर्ट में हाजिर होंगे.


जब राष्ट्रपति हाजिर हुए तो सुप्रीम कोर्ट ने उनके पद की गरिमा का ध्यान रखा.

अदालत के प्रति गिरि के दिल में अतिशय सम्मान के कारण ऐसा हुआ. गिरि जी मजदूर नेता, केंद्र सरकार में मंत्री और उपराष्ट्रपति भी रह चुके थे. कोर्ट में राष्ट्रपति के बैठने की सम्मानजनक व्यवस्था की गयी थी. वह एक सोफानुमा बड़ी कुर्सी पर बैठे थे.

इंदिरा ने वीवी गिरी को बनाया राष्ट्रपति का उम्मीदवार

सन् 1969 में जाकिर हुसैन के असामयिक निधन के कारण राष्ट्रपति पद खाली हो गया था. तब एस निलिंगप्पा कांग्रेस के अध्यक्ष थे. तब कांग्रेस में सिंडिकेट और इंडिकेट नामक दो गुट सक्रिय थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने दल के पुराने नेताओं की सिंडिकेट से मुक्ति की कोशिश में लगी थीं. राष्ट्रपति के चुनाव ने उन्हें मुक्ति का अवसर प्रदान कर दिया.

छह सदस्यीय कांग्रेस संसदीय बोर्ड ने बहुमत से यह फैसला किया था कि नीलम संजीव रेड्डी राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस की ओर से उम्मीदवार होंगे. बोर्ड के चार सदस्य रेड्डी के पक्ष में थे. रेड्डी कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके थे. पर इंदिरा गांधी ने बोर्ड के इस फैसले को नहीं माना. उन्होंने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी वी गिरि को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया. वी वी गिरि निर्दलीय उम्मीदवार बने. प्रतिपक्ष के उम्मीदवार सी डी देशमुख थे. कुल 15 उम्मीदवार थे.

इंदिरा के उम्मीदवार को लेकर विरोधियों ने भी अपना सुर बदला. कम्युनिस्टों और लोहियावादियों के दल संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने इंदिरा गांधी का राजनीतिक विरोध त्याग कर वी वी गिरि को वोट दे दिए.

बाद में कुछ लोहियावादी नेताओं ने कहा कि वह उनकी पार्टी की राजनीतिक और ऐतिहासिक भूल थी. मुख्यतः मधु लिमये को इस भूल के लिए जिम्मेदार माना गया. गिरि की जीत के बाद ही इंदिरा गांधी में तानाशाही प्रवृत्ति बढ़ गई. अंततः देश को आपातकाल झेलना पड़ा.

कांग्रेस में राष्ट्रपति उम्मीदवार के नाम पर पड़ी फूट

कांग्रेस के आधिकारिक उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी और निर्दलीय वी वी गिरि के बीच रोचक और तनावपूर्ण चुनावी मुकाबला हुआ. इस सवाल पर कांग्रेस में दरार पड़ गयी. पार्टी का महाविभाजन हुआ. सत्ताधारी पार्टी के संगठनात्मक पक्ष ने नीलम संजीव रेड्डी और इंदिरा गुट ने गिरि को वोट दिए. इंदिरा गांधी ने सांसदों और विधायकों से अपील की थी कि वे अपनी अंतरात्मा की आवाज पर वोट करें.

इस चुनाव में गिरि की जीत हुई. 24 अगस्त 1969 को गिरि राष्ट्रपति बने. वी वी गिरि को 4 लाख 20 हजार मत मिले. रेड्डी को 4 लाख 5 हजार मत मिले.

देशमुख को 1 लाख 12 हजार वोट मिले. रिटायर आईसीएस देशमुख रिजर्व बैंक के गवर्नर भी रह चुके थे. यानी प्रतिपक्षी दलों में इस सवाल पर फूट का सीधा लाभ गिरि को मिला.

गिरि पर लगा नीलम संजीव रेड्डी की छवि खराब करने का आरोप

रेड्डी पर गिरि की उस जीत के खिलाफ चुनाव याचिका दायर की गई. याचिका में यह आरोप लगाया गया था कि चुनाव प्रचार के दौरान नीलम संजीव रेड्डी के चरित्र को लांछित करने वाले परचे छापे और वितरित किए गए. यह मुख्य आरोप था. कुछ अन्य आरोप भी थे.

इस याचिका की सुनवाई के लिए न्यायमूर्ति एस एम सीकरी की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय पीठ का गठन किया गया. मशहूर वकील सी के दफ्तरी गिरि के वकील थे. यह मुकदमा करीब चार महीने चला.

इस मुकदमे में 21 दस्तावेज और 116 गवाह अदालत में पेश किए गए. पर लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंततः चुनाव याचिका खारिज कर दी. दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने वी वी गिरि के चुनाव को सही ठहराया. पीठ ने कहा कि हम सभी न्यायाधीश इस निर्णय पर एकमत हैं.

सुप्रीम कोर्ट में चला राष्ट्रपति पर मुकदमा

फैसले के समय अदालत में भारी भीड़ थी. यह अपने ढंग का पहला मुकदमा था. लोगों में निर्णय सुनने के लिए भारी उत्सुकता थी. इस फैसले के समय राष्ट्रपति गिरि दक्षिण भारत के दौरे पर थे.

इस फैसले पर गिरि या रेड्डी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. पर इंदिरा गुट के नेता जगजीवन राम ने कहा कि यह सच्चाई की जीत है. सीपीआई नेता भूपेश गुप्त ने कहा कि यह देश के प्रगतिशील लोगों की नैतिक और राजनीतिक जीत है.

चुनाव प्रचार के दौरान जो विवादास्पद परचे मतदाताओं यानी सांसदों और विधायकों के बीच वितरित किए गए थे, उनके बारे में सी के दफ्तरी ने कहा कि यह सही है कि रेड्डी के खिलाफ परचे छापे गये थे. पर उस परचे में यह नहीं बताया गया था कि उसे किसने छपवाया था. हालांकि इस बारे में एक अन्य वकील ने कहा था कि अन्य चुनाव और राष्ट्रपति के चुनाव में अंतर को ध्यान में रखा जाना चाहिए.

राष्ट्रपति के चुनाव में भ्रष्ट आचरण सिद्ध करने के लिए सिर्फ यह सिद्ध करना जरूरी है कि विजयी प्रत्याशी ने भ्रष्ट आचरण के बारे में जानबूझ कर खामोशी बरती.

याद रहे कि परचे के अलावा इस याचिका में यह आरोप भी लगाया गया था कि तीन उम्मीदवारों के नामांकन पत्र गलत तरीके से खारिज कर दिए गए थे. यह सवाल भी विचाराधीन था कि क्या गिरि और पी एन भोजराज के नामांकन पत्र गलत तरीके से स्वीकृत कर लिए गए थे? कुछ अन्य सवाल भी थे. पर अंततः सुप्रीम कोर्ट ने उन सवालों को खारिज कर दिया.