view all

पुण्यतिथि: हिंदी कविता को ‘निराला’ अंदाज देने वाला ‘महाकवि’

भाव-भाषा और शैली में निराला ने हिंदी कविता को जो राह दिखाई, वह आगे के कवियों के लिए एक नजीर साबित हुई

Piyush Raj

सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' हिंदी कविता के छायावाद के सबसे प्रमुख स्तंभ हैं. खड़ी बोली हिंदी में कविता को स्थापित करने का काम छायावाद में ही हुआ. द्विवेदी युग में भले ही खड़ी बोली हिंदी में कविता लिखने की परंपरा प्रचलित हो गई थी लेकिन तब तक खड़ी बोली में लिखी कविताओं को साहित्यिक कसौटी पर बहुत बेहतर नहीं समझा जाता था.

खड़ी बोली हिंदी में लिखी कविता को साहित्यिक प्रतिष्ठा दिलाने का श्रेय छायावाद को ही है. इसमें भी सबसे प्रमुख योगदान महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का है. भाव और भाषा के स्तर पर जितने प्रयोग निराला ने किए हैं उतने प्रयोग छायावाद के किसी अन्य कवि ने नहीं किए हैं.


छायावाद के समय खड़ी बोली की हिंदी कविता विकसित नहीं हुई थी. इस वजह से छायावाद के कवियों ने स्वयं भाषा गढ़ी. इस वजह से इनकी कविताओं को समझना थोड़ा मुश्किल है. कई शब्द तो ऐसे हैं जो शब्दकोश में भी ढूंढ़ने से नहीं मिलते हैं. हिंदी के बड़े से बड़े विद्वानों को इनकी कविताओं के अर्थ लगाने में काफी मशक्कत करनी पड़ती है.

आसान नहीं है निराला की कविता को समझना

निराला की कविताएं भी काफी दुरूह हैं. यह बात और है कि थोड़ा ठहरकर पढ़ने के बाद इनका अर्थ समझना या संभावित अर्थ का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल नहीं है.

निराला पर विस्तार से लिखने वाले हिंदी के प्रसिद्ध आलोचक रामविलास शर्मा भी यह मानते हैं कि निराला की कविताएं दुरूह हैं.

निराला की कविताओं में आने वाले कठिन शब्दों और वाक्यों के अर्थों को बताने के लिए ‘निराला काव्य-कोश’ की रचना करने वाले कमलेश वर्मा का लिखते हैं कि निराला की कविता का ज्यादा से ज्यादा चौथाई हिस्सा बोलचाल अथवा प्रवाहमान हिंदी में रचित है.

यही बात छायावाद के अन्य कवियों पर लागू होती है लेकिन निराला अपनी भाषागत प्रयोगों में अपने निरालेपन की वजह से अपने समकालीनों से आगे निकल जाते हैं. निराला ने जयशंकर प्रसाद की तरह किसी कालजयी महाकाव्य की रचना नहीं की. लेकिन उनकी कई कविताएं ऐसी हैं जो किसी महाकाव्य से कम नहीं.

कई अंदाज हैं निराला की कविताओं में

आज हिंदी कविता के जिन निराले अंदाजों को हम देखते हैं, उनकी शुरुआत करने का श्रेय निराला को ही है. निराला के यहां एक ओर जहां ‘विद्धांग-बद्ध-कोदंड-मुष्टि-खर-रुधिर-स्राव’ जैसी आसानी से नहीं समझ में आने वाली पंक्तियां मिलती हैं, वहीं दूसरी ओर ‘अबे सुन बे गुलाब’, ‘बांधों न नाव इस ठांव बंधु’, ‘वह तोड़ती पत्थर/ देखा उसे मैंने इलाहाबाद के पथ पर’ जैसी पंक्तियां भी मिलती हैं.

निराला के यहां उर्दू ग़ज़लों की शैली से लेकर शास्त्रीय और लोकगीतों की शैली भी मिलती है.

यह भी पढ़ें: पुण्यतिथि विशेष: 'अगले जमाने में कोई मीर भी था'

निराला के यहां भाषा-शिल्प और शैली को लेकर जितने सफल प्रयोग मिलते हैं उतने प्रयोग बाद के शायद ही किसी कवि के यहां मिलते हैं. वैसे इस कड़ी में नागार्जुन, मुक्तिबोध, त्रिलोचन और शमशेर बहादुर सिंह का नाम लिया जा सकता है.

यह 'निराला' की भाषा का निराला अंदाज ही था जिसने बाद के कवियों को इस तरह का प्रयोग करने के लिए प्रेरित किया.

सिर्फ प्रेयसी नहीं है नारी

सिर्फ भाषा ही नहीं भाव के स्तर पर भी निराला ने हिंदी कविता को एक दिशा देने का काम किया. जब छायावादी कविता में रोमांस और रहस्य से प्रेरित कविताओं का जोर था उस वक्त 1924 में निराला ने किसानों के शोषण पर कविता लिखी.

यही नहीं जिस छायावाद में नारी को सिर्फ प्रेयसी के रूप में देखा जाता था, उसी दौर में निराला की रचनाओं में नारी के कई रूप मिलते हैं. ‘सरोज स्मृति’ में निराला ने जिस तरह अपनी बेटी के सौंदर्य का वर्णन किया है वह आज भी हिंदी कविता में एक प्रतिमान है. ‘वह तोड़ती पत्थर’ में निराला ने श्रमिक नारी के सौंदर्य का वर्णन किया था. सिर्फ प्रगतिशील आंदोलन ही नहीं बल्कि आधुनिक हिंदी कविता के लिहाज से यह कविता अपने आप में विशिष्ट है.

भाव-भाषा और शैली में निराला ने हिंदी कविता को जो राह दिखाई, वह आगे के कवियों के लिए एक नजीर साबित हुई.