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स्मिता पाटिल: 'मिर्च मसाले' वाली इंडस्ट्री में एक 'नमक' भरी अदाकारा

शबाना और स्मिता एक साथ काम करते रहे मगर दोस्त नहीं बन सके

Nidhi

स्मिता पाटिल का नाम लेते ही दिमाग में दो छवियां एक साथ बनती हैं. मिर्च मसाला में नसीरुद्दीन शाह की नीयत और अपनी नियति से लड़ती एक औरत और दूसरी अमिताभ बच्चन के साथ सफेद साड़ी में फिसलने और रपटने की बातें करती स्मिता पाटिल. मजेदार बात ये है कि दोनों ही फिल्मों के नाम कमाल के हैं. एक में मिर्च है दूसरे में नमक. जो मसाला फिल्म है, उसका नाम नमक हलाल है और जिसमें जिंदगी के खारेपन से लड़ने की कहानी हैं उसका नाम मिर्च मसाला है.

स्मिता पाटिल की जिंदगी भी ऐसी ही रही. कहीं खारेपन से भरी हुई, कहीं मसालों के छौंक वाली. महज 12 साल के करियर में स्मिता सिनेमाई फलक पर अपना नाम अमिट कर गईं. बड़ी-बड़ी आंखों वाली इस सांवली सी लड़की ने बचपन से जवानी तक अपने अंदाज में जिंदगी जी और अचानक से सबको पैकअप कर के चली भी गई.


विरासत में मिली बगावत

स्मिता को बगावत करना विरासत में मिला था. पिता कम्युनिस्ट थे तो जनवाद और एक्टिविजम से पुराना परिचय था. परिवार की बात करें तो मां का रंग साफ था और पिता का गहरा. स्मिता की बाकी बहनों ने हिंदुस्तान का तथाकथित सुंदर रंग पाया था. स्मिता दुबली-पतली सांवली सी लड़की थी. जिन्हें स्कूल और कॉलेज ‘काली’ कहकर बुलाया जाता था.

स्मिता जिस स्कूल में जाती थीं वहां से घर तक के रास्ते में उन्हें डर लगता था. वजह थी सुनसान रास्ता. स्मिता की मां एक बार स्मिता को लेने गईं और कहीं छिप गईं. स्मिता को मां नहीं दिखी तो डरते हुए अकेले ही घर की तरफ चल दीं. घर करीब आने पर स्मिता की मां सामने आ गईं. इस घटना से स्मिता का डर ऐसा छूटा कि स्मिता पूरी तरह से बदल गईं. सांवली सी ये लड़की गणपति के जुलूस में डांस करती. कार चलाती और शॉर्ट्स पहनकर घूमती. ये स्मिता के अंदर घुट्टी में पिला दिए गए बगावती तेवर का ही असर था कि उन्होंने बॉलीवुड जैसी घोर सेक्सिस्ट इंडस्ट्री में जगह बनाई. लोग अक्सर उन्हें सिर्फ आर्ट सिनेमा से जोड़ कर देखने की कोशिश करते हैं, मगर स्मिता जब मसाला फिल्मों में भी आईं तो अपनी छाप छोड़कर गईं.

शीशे में दिखती परछाई सी शबाना

शबाना और स्मिता को एक दूसरे की मिरर इमेज कहा जा सकता है. जैसे शीशे में दिखने वाला अक्स होता बिलकुल आप जैसा ही है मगर उल्टा होता है. आप अगर 100 हैं तो शीशे में 001 दिखेगा. मगर दोनों में से किसी को भी आप एक दूसरे से अलग नहीं कर पाएंगे.

स्मिता और शबाना 80 के दशक में एक दूसरे की घोर प्रतिद्वंद्वी थीं. दोनों के परिवार एक से थे. दोनों के पिता वाम विचारधारा से जुड़े थे. दोनों का करियर एक तरह से शुरू हुआ. दोनों ने एक साथ कई फिल्में की मगर दोनों के बीच तल्खियां बनी रहीं. आलम ये था कि एक साल नेशनल अवॉर्ड स्मिता को मिलता दूसरे साल शबाना को. अर्थ के लिए शबाना ने अवॉर्ड जीता तो स्मिता डस्की ब्यूटी के तौर पर दिलों में जगह बना गईं.

स्मिता के अंतिम संस्कार पर नादिरा,जुही और आर्य बब्बर

इन सबके बाद भी दोनों के बीच एक अनकहा रिश्ता था. शबाना आज़मी बताती हैं कि 'बाज़ार' फिल्म की शूटिंग के समय स्मिता स्टार थीं. जाहिर तौर पर उनके लिए होटल का सबसे बड़ा और महंगा कमरा बुक करवाया गया. उसी फिल्म में शबाना की मां शौकत कैफी भी काम कर रही थीं. स्मिता ने बिना शौकत की जानकारी के उनको अपने कमरे में शिफ्ट कर दिया. खुद छोटे कमरे में चली गईं. शौकत को जब पता चला तो उन्होंने इसे बदलवाना चाहा पर स्मिता तैयार नहीं हुईं.

मैथिली राव की लिखी स्मिता की बायोग्राफी की लॉन्चिंग पर शबाना आज़मी ने स्मिता पाटिल के साथ उनके अपने प्रेम-नफरत और प्रतिस्पर्धा से भरे अनुभव के बारे में बात की. उन्होंने कहा, ‘वे दोनों काम में हमेशा बेहतर पार्टनर रहीं लेकिन कभी अच्छी दोस्त नहीं.’

एक परी का जाना

बगावती तेवरों वाली स्मिता ने राज बब्बर से शादी की तब राज पहले से शादीशुदा थे. 13 दिसंबर 1986 आज से लगभग 31 साल पहले अपने बेटे प्रतीक को जन्म देते हुए स्मिता चल बसीं. प्रतीक आज भी इस बात को याद करते हुए इमोशनल हो जाते हैं. कहते हैं कि बचपन से उन्हें मां पर गुस्सा आता है कि वो क्यों साथ नहीं हैं.

मगर स्मिता के बारे में बस एक ही सच है कि वो हमारे साथ नहीं हैं. जैसे परियों के किस्से होते हैं, स्मिता का एक किस्सा है. बंबई से दिल्ली अकेले जीप चलाकर जाने वाली एक खूबसूरत आंखों वाली लड़की जो एक किस्से में बदल गई.

(ये आर्टिकल पहली बार 17 अक्टूबर, 2017 को प्रकाशित हुआ था. हम इसे स्मिता पाटिल की पुण्यतिथि पर फिर से प्रकाशित कर रहे हैं)