view all

स्मिता पाटिल: एक हकीकत, कहानियों जैसी...

सिर्फ 31वें बरस में, किसी का भी संसार से यूं चले जाना, हताश करता है, और फिर वो तो स्मिता पाटिल थीं. भारतीय सिनेमा की आइकन-अभिनेत्री

Nazim Naqvi

उसके खो जाने का एहसास तो कम बाकी है

जो हुआ, वो न हुआ होता, ये गम बाकी है


इन दो पंक्तियों में जिस संवेदना को उकेरने की कोशिश की गई है, स्मिता पाटिल की याद आते ही, वही संवेदना दिलो-दिमाग को घेर लेती है. सिर्फ 31वें बरस में, किसी का भी संसार से यूं चले जाना, हताश करता है, और फिर वो तो स्मिता पाटिल थीं. भारतीय सिनेमा की आइकन-अभिनेत्री.

पता नहीं कमर्शियल-सिनेमा क्या बला है और समानांतर सिनेमा किसे कहते हैं, लेकिन फिल्मी परदे पर एक कहानी को जीते कलाकार जब अपने किरदार में संवर जाते हैं, तो दर्शकों के दिलों में उतर जाते हैं. हां, यह बात जरूर है कि समानांतर-सिनेमा में काम कने वाले हर कलाकार इतने खुशनसीब नहीं होते जितनी कि स्मिता पाटिल थीं.

बोलती हुई आंखें, चेहरे पर बला का नमक, और डॉयलाग अदा करने की टाइमिंग, इन गुणों ने इस मराठी-अदाकार को अपनी सह-अभिनेत्रियों में सबसे ऊपर ला खड़ा किया.

70 के दशक के सिनेमा पर कोई भी बात स्मिता को नजरअंदाज करके पूरी नहीं की जा सकती. बचपन से लेकर स्टारडम तक का सफर, विवादों में घिरी उसकी शादी और फिर अचानक मौत, एक अभिनेत्री के साथ खुद उसका जीवन नाटक कर रहा था. लेकिन ये छोटी सी कहानी अपने चाहने वालों पर एक अमिट प्रभाव छोड़ने वाली थी.

स्मिता पाटिल की समकालीन और सहयोगी अभिनेत्रियों में एक नाम है शबाना आज़मी का. शबाना आज़मी का कहना है कि 'फिल्मों में मेरे काम पर जब भी बात होती है तो स्मिता का जिक्र जरूर आता है. आज-तक मुझे कोई ऐसा इंसान नहीं मिला जिसने मेरी फिल्मों की, मेरे काम की बात की और स्मिता का नाम न लिया हो'.

शबाना ने किसी बातचीत में यह भी कहा, 'एक वक्त था जब अगर मैं किसी के सामने अपना नाम शबाना पाटिल बोल देती या स्मिता खुद को स्मिता आज़मी बतलाती तो किसी को अजीब नहीं लगता.'

70 के दशक का आर्ट-सिनेमा और स्मिता-शबाना की जुगलबंदी, दर्शक तो दर्शक खुद फिल्म-इंडस्ट्री के लोग भी इस जोड़ी को कामयाबी की गारंटी मानने लगे थे. इसीलिए 'परवरिश' और 'नमक हलाल' जैसी कमर्शियल फिल्मों में, शबाना और स्मिता पाटिल को लिया गया. कमर्शियल सिनेमा की खासियत ही यही है कि उसमें वही दिखता है, जो बिकता है. और यही कामयाबी है स्मिता पाटिल की, उनकी अदाकारी की.

80 में रिलीज हुई थी 'आक्रोश'. गोविंद निहलानी की फिल्म. इलाहाबाद का निरंजन टॉकीज. एक दर्शक के रूप में पहली बार इस लेखक ने स्मिता को परदे पर देखा था. गोविंद ने इस फिल्म के जरिए अनुसूचित-जाति के आक्रोश को जिया था. लहन्या भीकू (ओम पूरी) और नागी भीकू (स्मिता पाटिल) ने चकित कर दिया था अपने उस 20 वर्षीय दर्शक को. किरदार को इतने जीवंत तरीके के साथ भी जिया जा सकता है, तरुण-मन पहली बार पहाड़ के नीचे आया था.

फिल्म एंड टेलीविज़न इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (आईआईटीएफ) से स्नातक स्मिता पाटिल ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 'चरणदास चोर' (श्याम बेनेगल निर्देशित) से, 1975 में की और सिर्फ दस वर्ष के अपने कैरियर में 'बेस्ट एक्ट्रेस' के 7 अवार्ड हासिल किए. शायद ही ये कीर्तिमान फिर कभी किसी को मिला हो. ऐसी थी अदाकारा स्मिता पाटिल.

यह बात सच है कि स्मिता पाटिल जैसे कलाकारों को 50 और 60 के दशक जैसा फिल्मी माहौल नहीं मिला था जिसमें कालजयी फिल्में बनाने वाले मौजूद थे, फिर भी 70 का दशक इतना बुरा भी नहीं रहा. समानांतर-सिनेमा के लिए इस दशक के दामन में काफी जगह थी.

पता नहीं कि यह स्मिता की खुशकिस्मती थी या उसके अंदर के कलाकार की खूबी लेकिन यह सच है कि श्याम बेनेगल, गोविन्द निहलानी, जे. अरविंदम, मृणाल सेन, राज खोसला, रमेश सिप्पी, बी.आर. चोपड़ा और महेश भट्ट जैसे दिग्गज निर्देशक अपनी कहानी को हकीकत से रू-ब-रू कराने के लिए स्मिता रूपी दर्पण के आस-पास मंडरा रहे थे.

बात महेश भट्ट की निकली तो मुझे उनका एक इंटरव्यू याद आ रहा है जिसमें वह अपनी फिल्म 'अर्थ' की स्मिता पाटिल को याद कर रहे थे. बकौल भट्ट साहब फिल्म में जिस किरदार को स्मिता पाटिल ने जिया, वह दरअसल उनकी हकीकत का आईना था. फिल्म में भी एक विवाहित मर्द (कुलभूषण खरबंदा) की प्रेम कहानी है जिसमें वह अपनी पत्नी (शबाना) और प्रेमिका (स्मिता) के बीच फंसा हुआ है.

महेश भट्ट कहते हैं कि यह वह वक्त था जब खुद स्मिता भी ऐसे ही प्रेम पाश में जकड़ी हुई थी वह अक्सर फिल्म के सेट पर मुझसे खीझ भरा झगड़ा करती थीं कि 'ये क्या है... मैं रात भर असली जिंदगी में इसी कशमकश को जियूं और फिर सुबह सेट पर आकर... फिर वही सब नाटक में दुहराऊं... क्या है ये सब'.

आज जब ये लेखक स्मिता के बारे में कुछ शब्द गढ़ रहा है, स्मिता को इस दुनिया से गए लगभग उतने ही बरस हो चुके हैं, जितने बरस वह इस दुनिया में रही. लेकिन अपने चेहरे से देखने वालों की नजरों को गिरफ्तार कर लेने वाली स्मिता पाटिल का करिश्मा आज भी कायम है. यकीन नहीं आता तो यू-ट्यूब पर जाकर उसका कोई सीन या कोई गाना देख लीजिए, आपको खुद यकीन आ जाएगा कि जो कहा जा रहा है उसमें कितनी सच्चाई है.

चलते-चलते हम आपको स्मिता पाटिल पर फिल्माया एक गाना दिखाते हैं- फिल्म है 'भीगी पलकें' जिसमें उनके हीरो (उनके प्रेमी और फिर पति- राज बब्बर हैं). गाने के बोल भी कुछ ऐसे जैसे उन्हें पता हो कि वह हमेशा-हमेशा के लिए बिछड़ने वाले हैं.

(ये आर्टिकल पहली बार 17 अक्टूबर, 2017 को प्रकाशित किया गया था. आज स्मिता पाटिल की पुण्यतिथि पर हम इसे फिर प्रकाशित कर रहे हैं.)