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1971 के भारत-पाक युद्ध में जीत का श्रेय इंदिरा को देने पर मची थी खींचतान

तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन बाबू इस बात से सहमत नहीं थे कि बांग्लादेश युद्ध में विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाए

Surendra Kishore

बांग्लादेश को लेकर 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय का श्रेय देने के सवाल पर तब महारथियों के बीच अच्छी-खासी खींचतान चली थी. कांग्रेस के एक सासंद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ‘दुर्गा’ कहा था. अधिकतर लोग इसका पूरा श्रेय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही दे रहे थे. पर तत्कालीन रक्षा मंत्री जगजीवन राम और सेना प्रमुख सैम मानेक शाॅ इसे मानने को तैयार नहीं थे.

युद्ध में विजय के बाद जब इंदिरा गांधी को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया तो सेना में प्रतिक्रिया हुई. उसे शांत करने के लिए सेना प्रमुख मानेक शाॅ को ‘फील्ड मार्शल’ का ओहदा दिया गया.


बांग्लादेश युद्ध के बाद एक खेमे की ओर से यह सवाल भी उठाया गया कि 1962 में चीन से पराजय के लिए इस देश के रक्षा मंत्री बी.के कृष्ण मेनन जिम्मेदार थे तो पाकिस्तान पर जीत के लिए प्रधानमंत्री को श्रेय क्यों दिया जाना चाहिए?

रक्षा मंत्री जगजीवन राम मानेक शाॅ से नाराज रहते थे. क्योंकि शाॅ तीनों सेनाध्यक्षों में खुद को सर्वोच्च होने का प्रयास करते रहे, पर सर्वोच्च हो नहीं सके, ऐसा जगजीवन राम का कहना था.

इंदिरा गांधी

1971 की लड़ाई जीतने के लिए जगजीवन राम ने खुद को दिया श्रेय

जगजीवन राम ने 1977 में इस संबंध में कहा था कि ‘1971 के युद्ध में भारत की विजय का बड़ा कारण सेना के तीनों अंगों का सही और परस्पर पूरक सह कार्य और रक्षा सामग्री के उत्पादन से लेकर हर मोर्चे पर मेरा स्वयं जाकर सेना का हौसला बढ़ाना रहा. इसके अतिरिक्त निदेशन में सामंजस्य होना भी एक महत्व की बात थी.’

इसके विपरीत युद्ध के समय के भारतीय सेनाध्यक्ष मानेक शाॅ ने 1974 में लंदन में साफ-साफ कह दिया था कि ‘अगर मैं उस युद्ध में पाकिस्तान का सेनाध्यक्ष होता तो विजय पाकिस्तान की ही होती.’ मानेक शाॅ की इस गर्वोक्ति पर जगजीवन राम की टिप्पणी भी महत्वपूर्ण थी. उन्होंने कहा, ‘मैं शाॅ को नकली फील्ड मार्शल मानता हूं. वह इस योग्य नहीं थे.’

जगजीवन राम को युद्ध के लिए अपनी तैयारी पर पूरा विश्वास था. उन्होंने कहा कि ‘उस युद्ध को तो जीता ही जाना था, भले ही जनरल कोई और होता क्योंकि हमने तैयारी ही इतनी अधिक कर ली थी.’ उनकी यह भी राय थी कि यदि किन्हीं प्रकार के दबाव में आकर किसी को फील्ड मार्शल बना दिया जाए ,तो भी वह नकली फील्ड मार्शल ही होगा. मानेक शाॅ पैरवी और खुशामद से फील्ड मार्शल बने थे.

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जगजीवन बाबू की स्पष्ट राय थी कि उस समय जो भी सेनाध्यक्ष होता, वही युद्ध जीतता भले ही वह इस योग्य नहीं होता. उन्होंने यह भी कहा कि प्रजातांत्रिक प्रणाली में जिस ढंग से निर्णय किए जाते हैं, उसके अंतर्गत विजय का श्रेय किसी व्यक्ति विशेष को नहीं दिया जा सकता.

जगजीवन राम

बांग्लादेश युद्ध में विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी को देने पर सहमत नहीं थे

लगता है कि जगजीवन बाबू इस बात से सहमत नहीं थे कि बांग्लादेश युद्ध में विजय का सारा श्रेय इंदिरा गांधी को दिया जाए. मानेक शाॅ के बारे में बात होने पर जगजीवन राम तीखे हो जाते थे. उन्होंने कहा था कि वो तीनों सेना प्रमुखों में से खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे, लेकिन हो नहीं सके. नीति निर्धारण समिति की बैठकों में कई बार मानेक शाॅ अन्य दोनों सेनाध्यक्षों की बातों का विरोध करते थे और उनके बीच खुद को सर्वोच्च दिखाने की कोशिश करते थे. पर, हम इस मान्यता के नहीं रहे कि तीनों सेनाओं का एक अध्यक्ष हो.

यह पूछे जाने पर कि क्या कभी आपसे उनका नीतिगत मतभेद रहा, उन्होंने कहा कि ऐसा साहस वह नहीं कर सकते थे. वैसे उनकी ख्वाहिश मनमानी करने की भी रहती थी, पर वो कर नहीं सकते थे.

मानेक शाॅ की राय भी कुछ नेताओं के बारे में बहुत खराब थी. मानेक शाॅ ने एक बार कहा था, ‘मुझे शक है कि उस नेता को मोर्टार और मोटर के बीच के फर्क का पता तक नहीं होगा जिसे देश का रक्षा मंत्री बना दिया जाता है.’

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मानेक शाॅ बांग्लादेश युद्ध में विजय का श्रेय भी प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री को देने के बदले खुद ही लेना चाहते थे. मानेक शाॅ ने बाद में कहा कि भारतीय फौज की जीत का खाका मैंने खींचा था.

इंदिरा गांधी के साथ बातचीत करते हुए सैम मानेक शॉ (फोटो: फेसबुक से साभार)

बताते चलें कि मानेक शाॅ पांच युद्धों में हिस्सा ले चुके थे. मानेक शाॅ ने बांग्लादेश संकट के शुरूआती दौर में आयोजित उच्चस्तरीय बैठक में प्रधानमंत्री से साफ-साफ कह दिया था कि हमारी सेना अभी युद्ध के लिए तैयार नहीं है. प्रधानमंत्री को उनका यह कहना तब बुरा लगा था.

'यदि 15 दिन हो जाते तो आप लोग ही मेरी टांग खींचने लगते'

पर जब तैयारी हो गयी तो शॅा से पूछा गया कि इस युद्ध को जीतने में कितना समय लगेगा. शाॅ ने कहा कि ‘डेढ़ से दो माह तक लगेंगे. बांग्लादेश फ्रांस के बराबर है.’ पर, जब 14 दिनों में ही पाक फौज ने सरेंडर कर दिया तो मंत्रियों ने पूछा कि आपने 14 दिन क्यों नहीं कहा? इस पर शाॅ ने कहा कि यदि 15 दिन हो जाते तो आप लोग ही मेरी टांग खींचने लगते.