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जून 1975: जब एक ही महीने में हुईं देश को झकझोरने वाली कई घटनाएं

जून 1975 का महीना प्रधामंत्री इंदिरा गांधी के लिए काफी अहम रहा. इस दौरान उन्होंने इमरजेंसी लगाई, सुप्रीम कोर्ट ने उनका चुनाव खारिज कर दिया और गुजरात में कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा

Surendra Kishore

जून 1975 में देश को झकझोरने वाली एक साथ कई घटनाएं हुईं. देश में इससे पहले एक ही महीने में एकसाथ इतनी राजनीतिक घटनाएं शायद ही हुई हों. सबसे प्रमुख राजनीतिक घटना 25-26 जून की रात में हुई. उस रात देश में आपातकाल लागू कर दिया गया था.

एक लाख से अधिक राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया था. उसी महीने अदालत ने प्रधानमंत्री इंदिरा का लोकसभा चुनाव खारिज कर दिया था. ऐसा पहली बार हुआ था जब किसी प्रधानमंत्री का चुनाव खारिज हुआ था. आपातकाल को उसी अदालती फैसले का नतीजा बताया गया था.


उसी महीने कांग्रेस गुजरात विधानसभा का चुनाव हार गई. 12 जून को एक साथ तीन खबरें आईं. तीनों खबरें प्रधानमंत्री के लिए बुरी थीं. राजदूत डी.पी.धर का निधन, गुजरात में कांग्रेस की हार और इलाहाबाद हाईकोर्ट का प्रतिकूल फैसला. धर, इंदिरा के बेहद विश्वासपात्र माने जाते थे.

जब मोरारजी देसाई ने किया था अनशन 

गुजरात में चुनाव कराने की मांग लेकर उससे पहले अप्रैल 1975 में मोरारजी देसाई ने दिल्ली में अनशन किया था. उनकी मांग प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मान ली और चुनाव करा दिया गया.

मोरारजी देसाई (तस्वीर साभार: scoopwhoop)

गुजरात में एक साल से चुनाव टाला जा रहा था. वहां राष्ट्रपति शासन था. 9 फरवरी, 1974 तक चिमन भाई पटेल मुख्यमंत्री थे. चुनाव के बाद जनता मोर्चा के नेता बाबू भाई पटेल मुख्यमंत्री बने.

12 जून 19975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस जग मोहन लाल सिंहा ने इंदिरा गांधी का चुनाव खारिज कर दिया था. उसपर एक बड़े वकील ने टिप्पणी की थी कि इंदिरा गांधी का ट्रैफिक रूल्स के उल्लंघन जैसा कसूर था. इस फैसले से देश भर में राजनीतिक तहलका मच गया.

कौन सा चुनाव खारिज हुआ?

1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रायबरेली लोकसभा क्षेत्र में सोशलिस्ट नेता राज नारायण को हराया था. हाईकोर्ट ने चुनाव रद्द करने के दो कारण बताए थे.

एक तो इंदिरा जी की चुनावी सभा के मंच का निर्माण सरकारी साधनों से किया गया था.

दूसरा, गजटेड अफसर यशपाल कपूर को लेकर बना.अदालत के अनुसार इंदिरा गांधी ने चुनाव में यशपाल कपूर की मदद ली थी. यह साबित हो गया था.

उस निर्णय के बाद प्रधानमंत्री के पक्ष में देश में जहां-तहां नारे लगने लगे, नुक्कड़ सभाएं होने लगीं.

उधर जय प्रकाश नारायण तथा विपक्षी दलों ने इंदिरा गांधी के इस्तीफे की मांग शुरू कर दी. 25 जून को दिल्ली के राम लीला मैदान में इस सवाल पर जय प्रकाश नारायण की बड़ी सभा हुई. इस बीच इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.

सबसे बड़ी अदालत ने हाई कोर्ट के निर्णय पर स्टे दे दिया. लेकिन इंदिरा जी को लोकसभा के किसी मत विभाजन में भाग लेने से रोक दिया. यह प्रधानमंत्री के लिए यह अपमान जनक स्थिति थी. इंदिरा गांधी ने 25-26 जून के बीच की रात को देश में आपातकाल घोषित करने की राष्ट्रपति से सिफारिश की. राष्ट्रपति ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी.

जय प्रकाश नारायण

साथ ही जय प्रकाश नारायण सहित देश के करीब एक लाख से अधिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. एक साथ इतनी बड़ी संख्या में राजनीतिक कर्मियों की गिरफ्तारी आजाद भारत में पहली बार हुई थी.

आपातकाल लगाने के बाद प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम संदेश में विपक्षी दलों के बारे में कहा, 'बहुत दिनों से इन घटनाओं को हम अत्यधिक धैर्य से देखते रहे. अब हमें इनके नए कार्यक्रमों का पता चला है जिनसे सारे देश में सामान्य कार्य में बाधा डालने के उद्देश्य से कानून और व्यवस्था को चुनौती दी गई है. क्या कोई भी पार्टी जो सरकार है, देश के स्थायित्व को ऐसे खतरे में पड़ने दे सकती है?

कुछ लोग हमारे सशस्त्र सैनिकों और पुलिस को विद्रोह के लिए उकसाने में लगे हैं.’ आपातकाल के साथ प्रेस पर कठोर सेंसरशीप लगा दी गई. विपक्ष की राजनीतिक गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गईं. आजाद भारत के लिए यह एक अजूबी घटना थी. किसी नेता के अनशन के दबाव पर किसी विधानसभा का चुनाव हो, वैसी अनूठी घटना भी जून 1975 में गुजरात में हुई थी.