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खानदानी कोतवाल के घर हुई चोरी के मुलजिम मिले मगर माल गायब, दारोगा बोला- आरोपी 2 लाख दे देगा!

इस अधूरी 'पड़ताल' का असल पहलू यह है कि, पुलिस चोरों के कब्जे से अपने ही खानदानी कोतवाल का माल बरामद नहीं कर सकी

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

दादा पुलिस में एसएसपी थे. पिता डिप्टी एसपी. चाचा दिल्ली पुलिस में डीआईजी. खुद भी करीब 40 साल पुलिस महकमे में दबंग आला-अफसर रहे. 'खानदानी-कोतवाल' के नाम से मशहूर थे. असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर (एसीपी) के पद से रिटायर हुए. नौकरी के दौरान तमाम उम्र शहर भर की सनसनीखेज आपराधिक घटनाओं से परदा उठाते रहे. हर 'गुडर्वक' के बाद महकमे के आला-पुलिस अफसरों की आंखों के 'नूर' जैसे तकिया कलामों से नवाजे जाते रहे.

रिटायर हुए तो खुद के फ्लैट में चोरी हो गई. थाने-चौकी और आला-पुलिस अफसरों के दफ्तरों के महीनों धक्के खाने के बाद रो-धो के किसी तरह चोर पकड़वा लिए. इस अधूरी 'पड़ताल' का असल पहलू यह है कि, पुलिस चोरों के कब्जे से अपने ही खानदानी कोतवाल का माल बरामद नहीं कर सकी. कल का नामी-गिरामी वही कोतवाल अभी भी चोरी का माल बजरिए पुलिस, मुलजिमों से बरामद कराने की जद्दोजहद में जुटा है. दो चार महीने से नहीं. पूरे छह साल से.


पूर्वी दिल्ली का मयूर विहार फेज-2 इलाका

मयूर विहार फेज-2 इलाके में मिली-जुली यानी हर तबके वाली आबादी है. दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा बनाए गए डीडीए फ्लैट्स में जहां दौलतमंदों के आलीशान कीमती आशियाने (फ्लैट्स) हैं. कुछ समय पूर्व तक इन्हीं कीमती फ्लैटों में रहते थे दिल्ली के डिप्टी चीफ मिनिस्टर और एजूकेशन मिनिस्टर मनीष सिसौदिया. इसी इलाके में स्थित ‘ई-ब्लॉक’ के बाशिंदे हैं दिल्ली के चर्चित रिटायर्ड मशहूर ‘पड़ताली’ आला-पुलिस अफसर अशोक कुमार सक्सेना. वही अशोक कुमार सक्सेना सन् 1980 के दशक में दिल्ली और दिल्ली पुलिस में जिनकी ‘पड़तालों’ ने तमाम ‘नजीरें’ पेश कीं. वही अशोक कुमार सक्सेना, जो दिल्ली पुलिस में ‘खानदानी-कोतवाल’ के नाम से मशहूर हैं. वही अशोक कुमार सक्सेना जिनके बाबा (दादा) छन्नू लाल सक्सेना यूपी पुलिस में सब-इंस्पेक्टर थे. जब सरदार बल्लभ भाई पटेल भारत के केंद्रीय गृहमंत्री बने तो वे, छन्नू लाल सक्सेना को दिल्ली में डिप्टी एसपी बनाकर ले आए.

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कालांतर में छन्नू लाल सक्सेना दिल्ली पुलिस में एसपी के पद से रिटायर हुए. वहीं खानदानी कोतवाल अशोक सक्सेना जिनके चाचा शील कुमार सक्सेना (छन्नू लाल सक्सेना के बड़े बेटे अब स्वर्गवासी) दिल्ली पुलिस में डीआईजी थे. वही अशोक सक्सेना जिनके पिता ओम प्रकाश सक्सेना यूपी पुलिस के दबंग डिप्टी एसपी थे. वही अशोक कुमार सक्सेना जो दिल्ली पुलिस में नौकरी करने का जिक्र आने भर से गुस्सा होकर घर से (दिल्ली से) लखनऊ मां विद्यावती सक्सेना के पास भाग गए थे. वही अशोक कुमार सक्सेना जिन्हें मां की जिद और उनके एक अदद झूठ के चलते 22 अक्टूबर सन् 1969 को दिल्ली पुलिस की ‘थानेदारी’ कुबूल करनी पड़ी थी. वही अशोक कुमार सक्सेना जो बाद में 30 अक्टूबर 2008 को दिल्ली पुलिस से एसीपी दरियागंज (सेंट्रल दिल्ली जिला) के पद से रिटायर हुए.

24 अक्टूबर सन् 2012 की वो काली डरावनी रात

मयूर विहार के ठीक सामने मौजूद है दिल्ली सरकार का पूर्वी विनोद नगर स्पोर्टस कांप्लेक्स. स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स के दाएं-बाएं और पीछे पूर्वी विनोद नगर की मध्यम और निम्न-मध्यम वर्गीय आबादी है. इस आबादी में अधिकांश वे लोग रहते हैं जो, उत्तरांचल (उत्तराखंड) से दो जून की रोजी-रोटी के जुगाड़ में दो-तीन दशक पहले दिल्ली आए थे. और कालांतर में धीरे-धीरे ईस्ट विनोद नगर (मयूर विहार फेज-2 के आसपास) में बसते रहे. मयूर विहार फेज-2 के ठीक पीछे है कई किलोमीटर लंबी और गहरी संजय झील.

झील के एक तरफ मयूर विहार फेज-2 दूसरी ओर कल्याणपुरी-त्रिलोकपुरी कालोनी और खिचड़ीपुर (गांव) है. इन्हीं खानदानी कोतवाल अशोक कुमार सक्सेना के फ्लैट में 24 अक्टूबर सन् 2012 को चोरी हो गई. दिन था दशहरे का. घटना के वक्त अशोक कुमार सक्सेना पत्नी कल्पना सक्सेना, बेटी गुंजन सक्सेना, बेटे अमन सक्सेना और पुत्रवधू प्रियंका सक्सेना के साथ गाजियाबाद गए हुए थे. भांजे राहुल चौधरी के सगाई समारोह में शामिल होने. आधी रात के वक्त परिवार जब वापिस लौटा तो घर का सामान अस्त-व्यस्त था. महकमे के खानदानी कोतवाल और रिटायर्ड मशहूर पड़ताली एसीपी के घर चोरी की वारदात की खबर पाकर पांडव नगर थाने से (पूर्वी जिला) पुलिस पहुंची.

फौरी तफ्तीश के बाद पांडव नगर थाने में 25 अक्टूबर सन् 2012 को आईपीसी की धारा 457/380 के तहत 468 नंबर पर करीब 25 लाख की चोरी/सेंधमारी की एफआईआर दर्ज कर ली गई. शुरुआती जांच का पड़ताली बनाया गया पांडव नगर थाने में तैनात सब-इंस्पेक्टर राधेश्याम (नंबर-16090111) को.

पूर्वी दिल्ली जिले का पांडव नगर थाना, जिसमें दर्ज हुआ था चोरी का मुकदमा कायम

वह सब ड्रामा हुआ जो पड़तालकी आड़ में संभव था

बकौल पीड़ित अशोक कुमार सक्सेना, ‘जांच-पड़ताल के नाम पर पांडव नगर पुलिस ने करने-दिखाने के नाम पर कई दिन तक ‘फुल-प्रूफ’ ड्रामा किया. मौके से फिंगर प्रिंट लिए. डॉग स्क्वॉड टीम ने घटनास्थल पर सूंघा-सांघी की. आला-पुलिस अफसरान घटनास्थल पर पहुंचे. पड़ताल की आड़ में चूंकि वह सब ड्रामा था. सो उस पड़ताली नौटंकी का रिजल्ट भी शून्य रहा.’

17-18 फरवरी 2013 को आधी रात के बाद तड़के करीब 2 बजे हारे-थके से रुआंसे चेहरे लिए 5-6 पुलिस वाले, (स्पेशल स्टाफ उत्तर पश्चिमी दिल्ली जिला) पीड़ित अपने ही पूर्व कोतवाल के फ्लैट पर जा धमके. जहांगीरपुरी थाना क्षेत्र के घोषित बदमाश के साथ. उन अनजान व्यक्तियों को पुलिस टीम ‘चोर’ बता रही थी. वे चोर जिन्होंने अशोक कुमार सक्सेना के घर में लाखों की चोरी करके पांडव नगर थाना पुलिस को खुली चुनौती दे दी थी. बकौल अमन सक्सेना (अशोक कुमार सक्सेना का बेटा), ‘पुलिस वालों ने कुछ दिन बाद वो सुनार भी दबोच लिया. जिसके सिर पांडव नगर पुलिस ने चोरी का माल खरीदने का कथित इल्जाम ‘मढ़ा’ था. पड़ताल के नाम पर खाना-पूर्ती करने के लिए.

दारोगा जब खानदानी कोतवाल से बोला 2 लाख ले लो!

इस तमाम तमाशे के बाद भी पांडव नगर पुलिस कथित चोरों/ आरोपियों के कब्जे से लाखों रुपए के माल में से धेला भर भी बरामद नहीं कर सकी. अपने ही उस नकारा पुलिस से जलील (आजिज) दिल्ली पुलिस का पूर्व खानदानी कोतवाल तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त से मिले. बेनीवाल ने पड़ताल ‘सुस्त पांडव नगर’ थाने की पुलिस से छीनकर पूर्वी जिले के स्पेशल स्टाफ के हवाले भी कर दी.’ बकौल अशोक कुमार सक्सेना उस वक्त स्पेशल स्टाफ पूर्वी दिल्ली के इंचार्ज थे इंस्पेक्टर मनोज पंत. वही मनोज पंत जो आजकल शाहदरा जिला पुलिस मुख्यालय में बहैसियत एसीपी (सहायक पुलिस आयुक्त) तैनात हैं.

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पड़ताल के दौरान पुलिस ने दूसरा संदिग्ध भी दबोच लिया. उसने कबूला कि चोरी के जेवर में से 8 लाख के जेवरात नत्थूपुरा दिल्ली के एक मशहूर ज्वैलर को बेच दिया है. 22 फरवरी 2013 को पुलिस ने डीसीएम कालोनी ए-ब्लॉक, इब्राहिमपुर, दिल्ली निवासी ज्वैलर को हिरासत में ले लिया. बकौल अशोक कुमार सक्सेना, ‘पांडव नगर थाने में ज्वैलर ने पुलिस और मेरे सामने 8 लाख के चोरी के जेवरात खरीदने का जुर्म कबूल लिया. इस पर पांडव नगर थाने का उस वक्त मामले का पड़ताली अफसर (दारोगा) बोला कि, ज्वैलर के पास माल नहीं है. अब वो 2 लाख रुपए ही दे सकता है. बेहया दारोगा के उस ‘बेहूदा’ प्रस्ताव को मैंने थाने के भीतर ही ठोकर मार दी. साथ ही पूरे मामले से तुरंत डीसीपी ईस्ट (पूर्वी जिले के पुलिस उपायुक्त) को अवगत कराया.’

पूर्वी दिल्ली जिले के डिप्टी कमिश्नर ऑफ पुलिस (डीसीपी) पंकज कुमार सिंह...पहले मातहतों को गुलाब के फूल बांट लूं, चोरी-सेंधमारी बाद की बाते है

भरी अदालत में मुलजिमों के सामने जब पुलिस बे-पर्दा हुई

बकौल पीड़ित खानदानी कोतवाल और दिल्ली पुलिस के रिटायर्ड एसीपी अशोक कुमार सक्सेना के पुत्र अमन सक्सेना, ‘एक दिन घर में कुछ पुलिस वाले आये. बोले घर में अगर एक दो घड़ी हो तो दे दीजिए. पड़ताल में काम आएंगी. हम लोग (सक्सेना परिवार) उन पुलिस वालों की गंदी मंशा नहीं भांप सके. हमने घर में मौजूद घड़ियों में से कुछ उठाकर उन पुलिस वालों को दे दीं. कुछ दिन बाद कड़कड़डूमा कोर्ट में पुलिस द्वारा चोरी में पकड़े गए मुलजिमों की पहचान परेड (टीआईपी) कराई गई. मैं भी कोर्ट में था.

वहां पुलिस वालों ने वे ही घड़ियां आरोपियों/ मुलजिमों से पहचनवाईं, जो मेरे घर से लेकर आए थे. पुलिस वाले अदालत में उन घड़ियों को आरोपियों से पहचनवाकर जेल भेज कर अपनी जान छुड़ाना चाहते थे. मगर मैंने भरी अदालत में उस दिन दिल्ली पुलिस के उस स्टाफ को भी बे-पर्दा कर दिया, जो पीड़ित को परेशान करने के साथ-साथ अदालत को भी गुमराह करने में शर्म महसूस नहीं कर रहे थे. अदालत को जब सच्चाई पता चला तो पुलिस का वहां मुंह बंद हो गया.’

सिपाही से लेकर साहबतक के आखिर मुंह बंद क्यों?

अजब पड़ताल की गजब कहानी का पहला दिलचस्प पहलू है कि, यह आपबीती उस खानदानी कोतवाल की है, जिसने खुद चार दशक दिल्ली पुलिस की इज्जत संवारने में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. दूसरा इससे भी ज्यादा विचारणीय और शर्मनाक पहलू है कि, अपने ही कोतवाल के घर में हुई लाखों की चोरी के मामले में दिल्ली पुलिस के कुछ सिपाही से लेकर आला पुलिस अफसरों तक ने आखिर चुप्पी क्यों साध रखी है? साथ ही इस हैरतंगेज पड़ताल का अंजाम तक पहुंचना इसलिए जरूरी है, क्योंकि यह पड़ताल एक अपने ही काबिल कोतवाल की है.

पूर्व कोतवाल रगड़े एड़ियां और साहब बांट रहे फूल’!

यहां इस बिंदु को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है कि, स्कॉटलैंड पुलिस की स्टाइल पर काम करने का दम भरने वाली दिल्ली पुलिस आखिर अपने ही एक पूर्व आला-कोतवाल के घर हुई लाखों की चोरी की वारदात को सुलझाने में आखिर इंट्रस्टिड क्यों नहीं है? कई साल से अधूरी पड़ी इस पड़ताल के बाबत पूर्वी दिल्ली जिले के मौजूदा डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त) पंकज कुमार सिंह (2008 बैच के AGMU कॉडर के आईपीएस) से कई बार इस संवाददाता ने बातचीत करने की कोशिश की.

डीसीपी को कई बार मोबाइल-कॉल की गईं, मगर परिणाम ढाक के तीन पात रहना था, वही रहा. ऐसे में किसी के भी जेहन में सवाल उठना लाजिमी है कि, आखिर अपने ही पूर्व कोतवाल की चोरी से संबंधित पड़ताल में जब ‘सिपाही’ से लेकर ‘साहब’ तक की बोलती इस कदर बंद है, तो सोचिए जिले की आम-जनता की ‘पड़तालों’ का हाल क्या होगा? हां, गाहे-ब-गाहे पूर्वी दिल्ली डीसीपी पंकज कुमार सिंह ने जब से जिले में चार्ज लिया है, वे मातहतों को ‘फूल’ थमा कर उनके अंदर ‘गांधीगिरी’ का भाव पैदा करने के लिए अक्सर ‘मीडिया’ के बीच अपने इस अजीब-ओ-गरीब काम के लिए चर्चाओं के केंद्र बिंदु में रहते हैं.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)