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सामाजिक और आर्थिक आजादी के लिए जरूरी है शिक्षा

शिक्षा कोई लग्जरी नहीं है जो सिर्फ अमीरों को मिले, यह देश के हर बच्चे का अधिकार है

Kunjal Sehgal

70 साल हो गए आजादी को. यह वक्त है जश्न मनाने का. साथ ही, पीछे मुड़कर देखने का कि इन सालों में क्या कुछ पाया है. तमाम मोर्चों पर हमें कामयाबी मिली है. लेकिन हमारी विकास यात्रा बेहद शानदार या अद्वितीय नहीं रही है.

हम गंगा-जमुनी तहजीब की बात करते हैं. यह मुल्क सांस्कृतिक धरोहरों का देश है. लेकिन इसी बीच हमें जातिवाद भी याद आता है. राजनीति में तुष्टीकरण याद आता है. अंधविश्वास भी देश की बड़ी समस्या है. मुझे ऐसा लगता है कि इन सारी कमियों से पार पाने के लिए पढ़ा-लिखा समाज होना जरूरी है. ज्ञान से ही इन सारी बुराइयों पर काबू किया जा सकता है और विकास की यात्रा पर आगे बढ़ा जा सकता है.


शिक्षा कोई लग्जरी नहीं

हर किसी को शिक्षा मिलना उसका संवैधानिक अधिकार है. यह अब भी बड़ी तादाद में भारतीय बच्चों से दूर है. हम ऐसे समाज से आते हैं, जहां बच्चों को बेसिक सुविधाएं जैसे खाना, कपड़ा, घर और सुरक्षा मुहैया नहीं हैं. ऐसे में शिक्षा की उतनी अहमियत नहीं रहती. हालांकि हम कह सकते हैं कि गरीबी से जुड़ी सारी समस्याओं का हल शिक्षा के ही पास है. लेकिन उसके लिए हमें हर किसी को शिक्षा देने पर फोकस करना होगा.

शिक्षा कोई लग्जरी नहीं है, जो सिर्फ अमीरों को मिले. यह देश के हर बच्चे का अधिकार है. उम्मीदों और सपनों के लिए शिक्षा जरूरी है. जागरूकता के लिए शिक्षा जरूरी है. सामाजिक और आर्थिक बेड़ियां तोड़ने के लिए शिक्षा जरूरी है.

कोई पढ़ा-लिखा इंसान अपने बच्चे को अनपढ़ नहीं छोड़ता, क्योंकि उसे शिक्षा की अहमियत पता है. उसे पता है कि जिंदगी पर इसका क्या असर होने वाला है.  इसीलिए मुझे लगता है कि हर परिवार के एक जेनरेशन को शिक्षा देना जरूरी है. इससे परिवार में अशिक्षा हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी.

किस पर हो शिक्षा में फोकस

सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में गिरावट ही आई है. सरकारी स्कूलों की हालत दयनीय है. उसमें मूल सुविधाएं नहीं हैं. क्लासरूम भरे हुए हैं, जिनमें बैठने की जगह नहीं है. बहुत से शिक्षक पढ़ाने की जगह सिर्फ महीने की सैलरी लेने आते हैं. बच्चे पढ़ने के लिए खुद नहीं आते. उन्हें जबरन भेजा जाता है. बल्कि कुछ मामलों में तो वे मुफ्त खाना खाने की वजह से आते हैं. कुल मिलाकर स्कूल शिक्षा का मंदिर नहीं है. ऐसे में अनुशासन और शिक्षा पीछे छूट जाते हैं.

हम लोगों के सामने भी इसी तरह की चुनौतियां थीं. अधियज्ञ की शुरुआत हमने इसीलिए की थी. हमने चार बातों पर फोकस किया. शिक्षा, स्वास्थ्य और हाइजीन, राष्ट्रवाद और नैतिक मूल्य. क्या सिखाना चाहिए और क्या सिखा रहे हैं, इसके बीच का फर्क मिटाने की कोशिश है. इसीलिए हमने गरीब बच्चों को पढ़ाना शुरू किया.

वास्तविक फर्क लाने के लिए जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था को पूरी तरह बदला जाए. यह जरूरी है कि हर स्कूल स्तरीय शिक्षा दे. बच्चे का वो हक है. हमारा संविधान बच्चे को यह गारंटी देता है. यह समय है, जब हर तबके की जरूरत को समझा जाए और उसके मुताबिक तरीका अख्तियार किया जाए.

फोकस बेसिक एजुकेशन पर होना चाहिए, जहां स्कूल, शिक्षक, मां-बाप और बच्चे साथ काम करें और ज्ञान बांटने का काम करें. अगर हम अपने युवाओं को शिक्षित और स्किल्ड वर्कफोर्स में बदल सके, तो देश को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता. मुझे मजबूती से लगता है कि एक समाज के तौर पर हमारा फर्ज है कि बच्चों की मदद करें. उन्हें अशिक्षा के चंगुल से निकालें और ज्ञान पाने की राह पर आगे बढ़ाएं.

(कुंजल सहगल चार्टर्ड अकाउंटेंट हैं. उन्होंने कॉरपोरेट जॉब छोड़कर जनवरी 2015 में अधियज्ञ शुरू किया. उनका संस्थान करीब 40 वॉलंटियर के साथ पिछले करीब ढाई साल में दिल्ली और फरीदाबाद में बच्चों की जिंदगी में बदलाव की कोशिश कर रहा है)