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सुरीले गाने और विवादित बोल हैं जिस कलाकार की पहचान

कमाल के सुरीले गायक अभिजीत भट्टाचार्य के जन्मदिन पर खास

FP Staff

जी हां, प्लेबैक सिंगर अभिजीत भट्टाचार्य का सबसे सटीक परिचय यही है. उनके खाते में एक से बढ़कर एक हिट फिल्मी नगमे हैं. साथ ही साथ एक के बाद एक बयानों से उपजे विवाद. खैर, विवादों को छोड़ते हैं और बात करते हैं अभिजीत भट्टाचार्य के भीतर बसे एक खालिस गवैए की.

बतौर प्लेबैक सिंगर अभिजीत के करियर का एक सच है जो उनके आत्मविश्वास को दिखाता है. अभिजीत जब अपने करियर में हिंदी फिल्मों में गायकी का एक मौका भर पाने के लिए संघर्ष कर रहे थे तो उन्हें हमेशा से लगता था कि उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में अगर कोई ‘ब्रेक’ देगा तो राहुल देव बर्मन.


ये आत्मविश्वास उनमें शायद इसलिए रहा होगा क्योंकि पंचम दा किशोर कुमार के साथ काफी काम करते थे और अभिजीत किशोर की गायकी के दीवाने थे. मुंबई में अपने मुश्किल दिनों में अभिजीत का यही आत्मविश्वास उनके साथ रहा. उनका भरोसा एक दिन सच साबित हुआ जब 1984 में राहुल देव बर्मन ने अपने संगीत निर्देशन में अभिजीत भट्टाचार्य को प्लेबैक सिंगिंग का मौका दिया. फिल्म थी- आनंद और आनंद जिसे देव आनंद ने अपने बेटे सुनील आनंद को लॉन्च करने के लिए बनाया था.

इस फिल्म के बाकी गाने लता जी, आशा जी और किशोर कुमार जैसे दिग्गज कलाकारों ने गाए थे. अभिजीत के गुरु उनसे कहा करते थे कि वो खुद को शास्त्रीय संगीत में ही पूरी तरह ना झोंकें. बल्कि उनकी आवाज की जो ‘मेलोडी’ है उसे बचाकर रखें. अभिजीत याद करके बताते हैं कि उनके गुरु जी उनसे अक्सर वो गाना सुना करते थे- कहीं दूर जब दिन ढल जाए.

इस गाने को सुनने के बाद हमेशा अभिजीत को एक ही नसीहत मिलती थी कि क्लासिकल सिंगर मत बनना बॉम्बे जाकर किसी गुरू के यहां बैठकर दिन भर तानें मत मारते रहना. अभिजीत ने इस बात को गांठ बांधकर अपना करियर बनाया.

अभिजीत के करियर की बतौर प्लेबैक सिंगर शुरूआत हो गई थी. यानी एक बड़ा सपना पूरा हो गया लेकिन आगे का रास्ता अभी काफी चुनौतियों भरा था. दरअसल फिल्म ‘आनंद और आनंद’ को कामयाबी नहीं मिली. अभिजीत एक छोटी सी नौकरी के बल पर मायानगरी में अपनी जगह बनाने का सपना लिए संघर्ष करते रहे. संघर्ष का ये दौर लंबा चला. करीब 5-6 साल तक अभिजीत को वो पहचान बनाने का मौका ही नहीं मिला जिसके वो हकदार थे.

असल मायने में अभिजीत की किस्मत बदली 1990 में, 1990 में दीपक शिवदासानी एक फिल्म बना रहे थे- बागी. दीपक शिवदासानी के लिए भी उनके करियर की ये पहली बड़ी फिल्म थी. ऐसा इसलिए क्योंकि बागी में सलमान खान बतौर एक्टर काम कर रहे थे जो अपनी फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से काफी हिट हो चुके थे. बागी से पहले दीपक शिवदासानी के पास एक हिट फिल्म के तौर पर फिल्म ‘वो सात दिन’ थी जिसमें उन्होंने डायरेक्टर बापू के असिसटेंट के तौर पर काम किया था.

खैर, फिल्म बागी में आनंद मिलिंद ने अभिजीत भट्टाचार्य से तीन गाने गवाए. इन तीन गानों ने फिल्म इंडस्ट्री को प्लेबैक सिंगिग का एक नया स्टार दे दिया. वो स्टार अभिजीत ही थे और वो तीन गाने थे- चांदनी रात है तू मेरे साथ है, हर कसम से बड़ी है कसम प्यार की और इक चंचल शोख हसीना.

फिल्म का संगीत खूब सराहा गया. अगले साल नदीम श्रवण के संगीत निर्देशन में फिल्म ‘दिल है कि मानता नहीं’ में ‘दिल तुझपे आ गया’ गाना भी लोगों ने काफी पसंद किया. फिर खिलाड़ी के गाने ‘वादा रहा सनम होंगे जुदा ना हम’ ने भी उन्हें कामयाबी का नया आसमां दिखाया. 1981 में जब अभिजीत ने अपना शहर कानपुर छोड़ा था तो जो मायानगरी में कामयाबी के जो सपने उन्होंने देखे थे वो 1991 के आते-आते सही रास्ते पर आ गए.

खिलाड़ी फिल्म के बाद उनके पास लगभग हर बड़े संगीत निर्देशक के साथ काम करने का न्यौता था. अगले करीब 15 साल तक अभिजीत ने कई शानदार नगमे हिंदी फिल्मी संगीत के फैंस को दिए. इसी दौरान 1995 में उन्हें फिल्म ‘ये दिल्लगी’ के मौजमस्ती भरे गाने ‘जब भी कोई लड़की देखूं मेरा दिल दीवाना बोले ओले ओले’ के लिए फिल्मफेयर में नॉमिनेट किया गया, लेकिन पहली बार फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने के लिए उन्हें 1998 तक इंतजार करना पड़ा.

1998 में फिल्म ‘यस बॉस’ के लिए उन्होंने शाहरूख खान की आवाज बनकर गाया- ‘मैं कोई ऐसा गीत गाऊं कि आरजू जगाऊं’ और उनका बेस्ट प्लेबैक सिंगर का फिल्मफेयर अवॉर्ड जीतने का ख्वाब इसी गाने से पूरा हुआ. इसके अलावा इसी फिल्म का गाना और ‘बस इतना सा ख्वाब है’ भी सुपरहिट हुआ.

ये वो दौर था जब टेलीविजन पर रिएलिटी शो जमकर चल रहे थे. अभिजीत को भी ऐसे रिएलिटी शो में जज बनने का मौका मिला. इन्हीं कार्यक्रमों के दौरान नए-नए गायकों की गायकी पर टिप्पणी को लेकर अभिजीत चर्चा में आने लगे थे. उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि नए कलाकारों का एक सिंडीकेट है जो यहां वहां घूम-घूमकर रिएलिटी शो में हिस्सा लेते हैं. बहुत सारे लोगों को उनमें एक नकारात्मकता दिखने लगी थी. फिल्मों में गायकी का ‘सिनेरियो’ भी तेजी से बदल रहा था.

2005 के बाद इक्का दुक्का गानों को छोड़ दें तो उनके पास गिनाने के लिए हिट गाने नहीं थे. हां, उनके बयान जरूर आते थे, 'मेरी आवाज सिर्फ स्टार्स को सूट करती है. 'मैं सारे कलाकारों के लिए नहीं गाता' या 'मेरे अलावा बाकी सारे गायक सिंगर बने हैं मैं पैदाईशी सिंगर था.' एक बयान यह भी आया, 'सारे गायक और संगीतकार इन दिनों एक जैसा काम कर रहे हैं, इसमें बेसुरा और नाक से गाने वाले गायक ही पहचान बना पाते हैं.'

उन्होंने फिल्मी गानों के अलावा अपने अल्बम तैयार किए. जिसे औसत सफलता मिली. इसी दौर में वो अपनी गायकी से ज्यादा अपनी बातों से चर्चा में रहने लगे. सलमान खान के फैसले पर उन्होंने आपत्तिजनक बातें लिखीं. सोशल मीडिया में एक पत्रकार को लेकर उनकी टिप्पणी की वजह से उन्हें गिरफ्तार तक किया गया. उनका ट्विटर अकाउंट सस्पेंड किया गया.

हाल ही में वो अपने उस बयान को लेकर चर्चा में आए जिसमें उन्होंने सलमान खान से अपनी फिल्मों में पाकिस्तानी गायकों को मौका देने पर नाराजगी जताई थी. सलमान खान की फिल्मों में आतिफ असलम और राहत फतेह अली खान के गाने अक्सर होते हैं. इससे पहले अभिजीत करण जौहर पर भी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं.